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September 9, 2021

उत्तराखंड के लोकप्रिय देवी मंदिर (Famous Devi Temples in Uttarakhand)

उत्तराखंड के लोकप्रिय देवी मंदिर 

(Famous Devi Temples in Uttarakhand)

उत्तराखंड देवभूमि के नाम से जाना जाता है और देवभूमि मैं देवी शक्ति के विभिन्न देवी अवतारों की पूजा के लिए जाना जाता है, उत्तराखंड के गढ़वाल, कुमाऊं और मैदानी क्षेत्रों मैं कई प्रसिद्ध देवी मंदिर है जिनमे नियमित रूप से भक्तों की भीड़ उमड़ती है, उत्तराखंड के ये देवी देवता भक्तों की अटूट आस्था के प्रतिक है और इन मंदिरों के साथ कई दंतकथाएं जुडी हुई है, आइये जानते है इन देवी मंदिरों के इतिहास, महत्व, भक्तों की आस्था और पौराणिक पृष्ठभूमि के बारे मैं......

Famous Devi Temples in Uttarakhand

नैना देवी मंदिर (Naina Devi Temple, Nainital)

नैनीताल में, नैनी झील के उत्त्तरी किनारे पर नैना देवी मंदिर स्थित है। 1880 में भूस्‍खलन से यह मंदिर नष्‍ट हो गया था। बाद में इसे दुबारा बनाया गया। यहां सती के शक्ति रूप की पूजा की जाती है। मंदिर में दो नेत्र हैं जो नैना देवी को दर्शाते हैं। नैनी झील के बारें में माना जाता है कि जब शिव सती की मृत देह को लेकर कैलाश पर्वत जा रहे थे, तब जहां-जहां उनके शरीर के अंग गिरे वहां-वहां शक्तिपीठों की स्‍थापना हुई। नैनी झील के स्‍थान पर देवी सती के नेत्र गिरे थे। इसीसे प्रेरित होकर इस मंदिर की स्‍थापना की गई है।
Naina Devi Temple

धारी देवी मंदिर (Dhari Devi Temple, Shrinagar)

धारी देवी मंदिर देवी काली माता को समर्पित एक हिंदू मंदिर है धारी देवी को उत्तराखंड की संरक्षक पालक देवी के रूप में माना जाता है  धारी देवी का पवित्र मंदिर बद्रीनाथ रोड पर श्रीनगर और रुद्रप्रयाग के बीच अलकनंदा नदी के तट पर स्थित है धारी देवी की मूर्ति का ऊपरी आधा भाग अलकनंदा नदी में बहकर यहां आया था तब से मूर्ति यही पर है तब से यहां देवी “धारी” के रूप में मूर्ति पूजा की जाती है मूर्ति की निचला आधा हिस्सा कालीमठ में स्थित है, जहां माता काली के रूप में आराधना की जाती है | माँ धारी देवी जनकल्याणकारी होने के साथ ही दक्षिणी काली माँ भी कहा जाता हैमाना जाता है कि धारी देवी दिन के दौरान अपना रूप बदलती है स्थानीय लोगों के मुताबिककभी एक लड़की, एक औरत, और फिर एक बूढ़ी औरत का रूप बदलती है पुजारियों के अनुसार मंदिर में माँ काली की प्रतिमा द्वापर युग से ही स्थापित है  कालीमठ एवं कालीस्य मठों में माँ काली की प्रतिमा क्रोध मुद्रा में है , परन्तु धारी देवी मंदिर में माँ काली की प्रतिमा शांत मुद्रा में स्थित है

Dhari Devi Temple

चन्द्रबदनी देवी मंदिर (Chandrabadni Devi Temple, Tehri)

चन्द्रबदनी मंदिर देवी सती की शक्तिपीठों में से एक एवम् पवित्र धार्मिक स्थान है | चन्द्रबदनी मंदिर टिहरी मार्ग पर चन्द्रकूट पर्वत पर स्थित लगभग आठ हजार फीट की ऊंचाई पर स्थित है | यह मंदिर देवप्रयाग से 33 कि.मी. की दुरी पर स्थित है | आदि जगतगुरु शंकराचार्य ने यहां शक्तिपीठ की स्थापना की धार्मिक ऐतिहासिक सांस्कृतिक दृष्टि में चन्द्रबदनी उत्तराखंड की शक्तिपीठों में महत्वपूर्ण है स्कंदपुराण, देवी भागवत महाभारत में इस सिद्धपीठ का विस्तार से वर्णन हुआ है प्राचीन ग्रन्थों में भुवनेश्वरी सिद्धपीठ के नाम से चन्द्रबदनी मंदिर का उल्लेख है  

Chandrabadni Devi Temple, Tehri

मनसा देवी मंदिर (Mansa Devi Temple, Haridwar)

मनसा देवी को भगवान शिव और माता पार्वती की पुत्री हैं । इनका प्रादुर्भाव मस्तक से हुआ है इस कारण इनका नाम मनसा पड़ा। महाभारत के अनुसार इनका वास्तविक नाम जरत्कारु है और इनके समान नाम वाले पति महर्षि जरत्कारु तथा पुत्र आस्तिक जी हैं। इनके भाई बहन गणेश जी, कार्तिकेय जी , देवी अशोकसुन्दरी , देवी ज्योति और भगवान अय्यपा हैं ,इनके प्रसिद्ध मंदिर एक शक्तिपीठ पर हरिद्वार में स्थापित है। समय आने पर भगवान शिव ने अपनी पुत्री का विवाह जरत्कारू के साथ किया और इनके गर्भ से एक तेजस्वी पुत्र हुआ जिसका नाम आस्तिक रखा गया। आस्तिक ने नागों के वंश को नष्ट होने से बचाया। मनसा शिव की पुत्री हैं राजा नहुष इनके जीजा लगते हैं। इनके बड़े भाई भगवान कार्तिकेय और भगवान अय्यपा हैं तथा इनकी बड़ी बहन देवी अशोकसुन्दरी, और देवी ज्योति हैं। भगवान गणेश इनके छोटे भाई हैं। 
Mansa Devi Temple, Haridwar

चंडी देवी मंदिर (Chandi Devi Temple, Haridwar)

चंडी देवी मंदिर उत्तराखंड राज्य के पवित्र शहर हरिद्वार में स्थित प्रसिद्ध मंदिर है, जो कि चंडी देवी को समर्पित है| यह मंदिर हिमालय की दक्षिणी पर्वत श्रंखला के पहाडियों के पूर्वी शिखर पर मौजूद नील पर्वत के ऊपर स्थित है| यह मंदिर भारत में स्थित प्राचीन मंदिर में से एक है| चंडी देवी मंदिर 52 शक्तिपीठों में से एक है चंडी देवी मंदिर का निर्माण 1929 में सुचात सिंहकश्मीर के राजा ने अपने शासनकाल के दौरान करवाया था परंतू मंदिर में स्थित चंडी देवी की मुख्य मूर्ति की स्थापना 8वी शताब्दी में आदि शंकराचार्य ने की थी, जो कि हिन्दू धर्म के सबसे बड़े पुजारियों में से एक है | इस मंदिर को “नील पर्वत” तीर्थ के नाम से जाना जाता है |

Chandi Devi Temple, Haridwar

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माया देवी मंदिर हरिद्वार (Maya Devi Temple, Haridwar)

माया देवी मंदिर हरिद्वार की एक प्राचीन धार्मिक मंदिर स्थापना है , जिसे भारत में मौजूद एक शक्ति पीठ के रूप में गिना जाता है । यह 52 शक्तिपीठों में एवम् पंचतीर्थ स्थलों में से एक है, यह मंदिर हिंदू देवी सती या शक्ति द्वारा पवित्र किया गया भक्ति स्थल है। माया देवी मंदिर हरिद्वार में एक प्रसिद्ध धार्मिक केद्र है। यह मंदिर हिंदू देवी अधिष्ठात्री को समर्पित है एवम् इसका इतिहास 11वीं शताब्दी से उपलब्ध है। माया देवी मंदिर, भारत में उत्तराखंड राज्य के पवित्र शहर हरिद्वार में “देवी माया” को समर्पित है। यह माना जाता है कि देवी के हृदय और नाभि इस क्षेत्र में गिरे जहाँ आज मंदिर खड़ा है और इस प्रकार यह कभी-कभी शक्ति-पीठ के रूप में भी जाना जाता है| देवी माया हरिद्वार की अधिपतिथी देवता है। वह तीन प्रमुख और चार-सशक्त देवता है जो शक्ति का अवतार माना जाता है, हरिद्वार को पहले इस देवता के सम्मान में मायापुरी के नाम से जाना जाता था। मंदिर एक सिद्ध पीठ के रूप में भी जाना जाता है, इस मंदिर में पूजा करने एवम् मनोकामना करने पर इच्छा पूरी हो जाती है| माया देवी मंदिर हरिद्वार में स्थित तीन तरह के पीठों में से एक है, पहला “चंडी देवी मंदिर “और दूसरा “मनसा देवी मंदिर“ हैं। भक्त हरिद्वार के इस पवित्र मन्दिर में बैठकर अध्यक्षता करने वाले देवता की पूजा करने आते हैं।
Maya Devi Temple, Haridwar


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सुरकंडा देवी मंदिर (Surkanda Devi Temple, Tehri)

देवभूमि उत्तराखंड के टिहरी जनपद में स्थित जौनुपर के सुरकुट पर्वत पर सुरकंडा देवी का मंदिर है। यह मंदिर देवी दुर्गा को समर्पित है जो कि नौ देवी के रूपों में से एक है। यह मंदिर 51 शक्ति पीठ में से है। इस मंदिर में देवी काली की प्रतिमा स्थापित है। केदारखंड व स्कंद पुराण के अनुसार राजा इंद्र ने यहां मां की आराधना कर अपना खोया हुआ साम्राज्य प्राप्त किया था।यह स्‍थान समुद्रतल से करीब 3 हजार मीटर ऊंचाई पर है इस कारण यहां से बद्रीनाथ, केदारनाथ, गंगोत्री और यमनोत्री अर्थात चारों धामों की पहाड़ियां नजर आती हैं। इसी परिसर में भगवान शिव एवं हनुमानजी को समर्पित मंदिर भी है। ऐसी मान्यता है कि नवरात्रि व गंगा दशहरे के अवसर पर इस मंदिर में देवी के दर्शन से मनोकामना पूर्ण होती है।
Surkanda Devi Temple, Tehri

कुंजापुरी देवी मंदिर (Kunjapuri Temple, Tehri)

कुंजापुरी नाम एक शिखर पर स्थित मंदिर को दिया गया है जो समुद्र तल से 1676 मीटर की ऊंचाई पर स्थित है | कुंजापुरी मंदिर एक पौराणिक एवं पवित्र सिद्ध पीठ के रूप में विख्यात है | यह स्थल केवल देवी देवताओं से संबंधित कहानी के कारण ही नहीं बल्कि यहाँ से गढ़वाल की हिमालयी चोटियों के विशाल दृश्य के लिए भी प्रसिद्ध है | यहाँ से हिमालय पर्वतमाला के सुंदर दृश्य हिमालय के स्वर्गारोहनी, गंगोत्री, बंदरपूँछ, चौखंबा और भागीरथी घाटी के ऋषिकेश, हरिद्वार और दूनघाटी के दृश्य दिखाई देते हैं । यह नरेंद्र नगर से 7 किमी, ऋषिकेश से 15 किमी और देवप्रयाग से 93 किमी दूर है।

Kunjapuri Temple, Tehri

नंदादेवी मंदिर, अल्मोड़ा (Nanda Devi Temple, Almora)

नंदादेवी परिसर में जिस स्थान पर अल्मोड़ा का प्रसिद्ध नंदादेवी मंदिर वर्तमान में स्थापित है उस स्थान पर मंदिर को बने इस साल 200 साल पूरे हो चुके हैं। इस महत्व को देखते हुए इस बार नंदादेवी महोत्सव को भव्य रूप से मनाया जाएगा। 1670 में कुमाऊं के चंद वंशीय शासक राजा बाज बहादुर चंद ने बधाणगढ़ के किले से नंदादेवी की स्वर्ण प्रतिमा लाकर अपने मल्ला महल (वर्तमान कलक्ट्रेट) परिसर में प्रतिष्ठित किया और अपनी कुलदेवी के रूप में पूजना शुरू किया। 1815 में अंग्रेजों ने नंदादेवी की मूर्ति को मल्ला महल से वर्तमान नंदादेवी परिसर में स्थानांतरित कर दिया, लेकिन जब कमिश्नर ट्रेल कुछ समय बाद हिमालय क्षेत्र में ट्रैकिंग के दौरान नंदादेवी चोटी को देखने के बाद लौटे तो उनकी आंखों की रोशनी अचानक काफी कम हो गई। मान्यता है कि इसके बाद कुछ लोगों की सलाह पर उन्होंने 1816 में नंदादेवी का मंदिर बनवाकर (वर्तमान मंदिर) वहां नंदादेवी की मूर्ति स्थापित करवाई।
Nanda Devi Temple, Almora

चमोली जिले में स्थित  नौटी  गांव  में नंदा देवी का प्राचीन  और मूल स्थान माना जाता है पवार वंश  के राजा कसुआ के कुँवर नंदा देवी की पूजा अर्चना करने  इसी मंदिर में आते है।  नौटी गांव  में राजवंश  के पुरोहित  नौटियाल  ब्राह्मण  रहते है प्रत्येक 12 वर्षो बाद होने वाली   नंदा राजजात यात्रा  नौटी से ही शुरू होती है चार सींगो वाला  मेढ़ा ( चो सिंग्या खाडूइस यात्रा की अगवानी करता है   नौटी  से शुरू होने वाली 280 किलोमीटर की यह यात्रा  इडाबधाणी , कसुआ , कोटिभोगोती, कुलसारी  आदि  स्थानों से होते हुए होमकुंड  तक जाती है  नंदा राजजात  माँ नंदा को मायके से ससुराल विदा करने की यात्रा है   नौटी  क्षेत्र में नंदा  को ध्याड़ (विवाहित  पुत्रीमानकर  कैलाश  के लिए भीगे  मन से विदा किया जाता है  

Nanda Devi Temple, Nauti, Chamoli

पूर्णागिरि मन्दिर (Purnagiri Temple, Tanakpur)

पूर्णागिरि मन्दिर भारत के उत्तराखण्ड प्रान्त के टनकपुर में अन्नपूर्णा शिखर पर ५५०० फुट की ऊँचाई पर स्थित है। यह १०८ सिद्ध पीठों में से एक है। यह स्थान महाकाली की पीठ माना जाता है। कहा जाता है कि दक्ष प्रजापति की कन्या और शिव की अर्धांगिनी सती की नाभि का भाग यहाँ पर विष्णु चक्र से कट कर गिरा था। प्रतिवर्ष इस शक्ति पीठ की यात्रा करने आस्थावान श्रद्धालु कष्ट सहकर भी यहाँ आते हैं।
Purnagiri Temple, Tanakpur

दूनागिरी मंदिर (Dunagiri Temple, Almora)

उत्तराखंड के अल्मोड़ा जिले में बहुत पौराणिक और सिद्ध शक्तिपीठ है | उन्ही शक्तिपीठ में से एक है दूनागिरि वैष्णवी शक्तिपीठ| वैष्णो देवी के बाद उत्तराखंड के कुमाऊं में “दूनागिरि” दूसरी वैष्णो शक्तिपीठ है | उत्तराखंड राज्य के अल्मोड़ा जिले के द्वाराहाट क्षेत्र से 15 km आगे माँ दूनागिरी माता का मंदिर अपार आस्था और श्रधा का केंद्र है | मंदिर निर्माण के बारे में  यह कहा जाता है कि त्रेतायुग में जब लक्ष्मण को मेघनात के द्वारा मूर्छित कर दिया गया था तब सुशेन वैद्य ने हनुमान जी से द्रोणाचल नाम के पर्वत से संजीवनी बूटी लाने को कहा था | हनुमान जी उस स्थान से पूरा पर्वत उठा रहे थे तो वहा पर पर्वत का एक छोटा सा टुकड़ा गिरा और फिर उसके बाद उसी स्थान में दूनागिरी का मंदिर बनाया गया|
Dunagiri Temple, Almora

मां हरियाली देवी मंदिर (Hariyali Devi Temple)

देवभूमि उत्तराखंड के रुद्रप्रयाग (rudraprayag) जिले में मां हरियाली देवी (hariyali devi temple) का प्रसिद्ध और पवित्र धार्मिक स्थल है। समुद्र की सतह से लगभग 1400 मीटर की उंचाई पर स्थित मां हरियाली देवी मंदिर (hariyali devi temple) हिमालय श्रंखलाओं से घिरा हुआ है। मां हरियाली देवी मंदिर देश के 58 सिद्धपीठ मंदिरों में से एक है। मंदिर की देवी को सीता माता, बाला देवी और वैष्णो देवी के नाम से जाना जाता है। मंदिर में मां हरियाली देवी के साथ-साथ क्षत्रपाल और हीट देवी की मूर्तियां भी हैं। यात्रा करने के लिए यह एक महत्वपूर्ण स्थल है। जन्माष्टमी और दिवाली के शुभ अवसर पर हजारों की संख्या में श्रद्धालु यहां आते हैं।
Hariyali Devi Temple

सती माता अनसूइया मन्दिर (Sati Mata Ansuya Devi Temple, Chamoli)

सती माता अनसूइया मन्दिर भारत के उत्तराखण्ड राज्य के चमोली जिले के मण्डल नामक स्थान में स्थित है। नगरीय कोलाहल से दूर प्रकृति के बीच हिमालय के उत्तुंग शिखरों ऋषिकुल पर्वत की तलहटी पर स्थित इस स्थान तक पहुँचने में आस्था की वास्तविक परीक्षा तो होती ही है, साथ ही आम पर्यटकों के लिए भी ये यात्रा किसी रोमांच से कम नहीं होती। यह मन्दिर हिमालय की ऊँची दुर्गम पहडियो पर स्थित है इसलिये यहाँ तक पहुँचने के लिये पैदल चढाई करनी पड़ती है। यात्री जब मन्दिर के करीब पहुँचता है, तो सबसे पहले उसे गणेश जी की भव्य मूर्ति के दर्शन होते हैं, जो एक शिला पर बनी है। कहा जाता है कि यह शिला यहां पर प्राकृतिक रूप से है। इसे देखकर लगता है जैसे गणेश जी यहां पर आराम की मुद्रा में दायीं ओर झुककर बैठे हों। यहां पर अनसूइया नामक एक छोटा सा गांव है, जहां पर भव्य मन्दिर है। मन्दिर कत्यूरी शैली में बना है।
Sati Mata Ansuya Devi Temple, Chamoli

बधाणगढ़ी मंदिर (Badhangarhi Temple, Chamoli)

बधाणगढ़ी मंदिर उत्तराखंड के चमोली जिले में स्थित है एवम् यह मंदिर एक ताल में स्थित है जो कि ग्वालधाम से 4 किलोमीटर की दूरी पर स्थित है। यह मंदिर काफी ऊचाई पर स्थित है और बहुत ही सुंदर है भगवान काली माता और भगवान शिव मंदिर (भगवान एक लिंग कहा जाता हैऔर कालीमाता मंदिर के मंदिर को “बधाण” कहा जाता है और यह मंदिर एक ही पहाड़ पर स्थित है इसलिए यही कारण है कि इस मंदिर को “बधाणगढ़ी मंदिर” कहा जाता है यह मंदिर देवी काली को समर्पित है, जिसे दक्षिण कली और भगवान शिव के रूप में भी जाना जाता है इस मन्दिर को कत्युरी वंश के शासन के दौरान बनाया गया था जिनका 8वी और 12वी शताब्दी तक इस क्षेत्र पर शासन था यह मंदिर इस क्षेत्र का लोकप्रिय मंदिर भी है, जिसे चिल्ला घाटी भी कहा जाता है बधाणगढ़ी मंदिर समुन्द्र स्तर से ऊपर 2260 मीटर की ऊँचाई पर स्थित है इस मंदिर के बारे में यह भी कहा जाता है कि यहाँ मांगी जाने वाले हर मनोकामना जरुर पूरी होती है

Badhangarhi Temple, Chamoli


चैती देवी मन्दिर (Chati Devi Temple, Kashipur)

चैती देवी मन्दिर (जिसे माता बालासुन्दरी मन्दिर भी कहा जाता है) उत्तराखण्ड के नैनीताल जिले में काशीपुर कस्बेे में कुँडेश्वरी मार्ग पर स्थित है। यह स्थान महाभारत से भी सम्बन्धित रहा है और इक्यावन शक्तिपीठों में से एक है। यहां प्रतिवर्ष चैत्र मास की नवरात्रि में चैती मेला (जिसे चैती का मेला भी कहा जाता है) का आयोजन किया जाता है। यह धार्मिक एवं पौराणिक रूप से ऐतिहासिक स्थान है और पौराणिक काल में इसे गोविषाण नाम से जाना जाता था। मेले के अवसर पर दूर-दूर से यहाँ श्रद्धालु आते हैं।
Chati Devi Temple, Kashipur
उत्तराखंड के पौड़ी गढ़वाल जिले में श्री नीलकंठ महादेव मंदिर से लगभग डेढ़ किलोमीटर दूर ब्रह्मकूट पर्वत के शिखर पर बसे भौन गांव में माता सती को समर्पित श्री मां भुवनेश्वरी सिद्धपीठ (Maa Bhuvneshwari Siddhpeeth) है। भौन गांव प्रकृति की गोद में बसा एक मनोरम पहाड़ी गांव है। इसके मध्य में श्री भुवनेश्वरी सिद्धपीठ स्थित है। यहां माता भुवनेश्वरी का रूप लाल बजरंगी के रूप में प्रदर्शित है। यह धार्मिक स्थल क्षेत्र में स्थित करीब आठ गांवों के लोगों की आस्था का प्रमुख केंद्र है। यहां माता के दर्शन करने के लिए बड़ी संख्या में श्रद्धालु पहुंचते हैं। श्रावण मास तथा शारदीय नवरात्र के दौरान यहां मेले का आयोजन भी होता है। इस दौरान यहां की खूबसूरती देखने लायक होती है।
Bhuvneshwari Devi Temple, Bhoun, Neelkanth

डाटकाली मंदिर (Datkali Temple, Dehradun)

डाटकाली मंदिर हिन्दुओ का एक प्रसिद्ध मंदिर है , जो कि सहारनपुर देहरादून हाईवे रोड पर स्थित है | डाट काली मंदिर देहरादून के प्रसिद्ध मंदिरों में से एक है तथा देहरादून नगर से 14 किमी की दुरी पर स्थित है | यह मंदिर माँ काली को समर्पित है इसलिए मंदिर को काली का मंदिर भी कहा जाता है एवम् काली माता को भगवान शिव की पत्नी “देवी सती” का अंश माना जाता है | माँ डाट काली मंदिर को “मनोकामना सिध्पीठ” व “काली मंदिर” के नाम से भी जाना जाता है | डाट काली मंदिर के बारे में यह माना जाता है कि माता डाट काली मंदिर देहरादन में स्थित मुख्य सिध्पीठो में से एक है | डाट काली मंदिर में एक बड़ा सा हाल भी स्थित है , जिसमे मंदिर में आये श्रद्धालु व भक्त आदि लोग आराम कर सकते है | इस मंदिर का निर्माण 13 वीं शताब्दी में 13 जून 1804 में किया गया था | जब मंदिर का निर्माण कार्य किया जा रहा था तो ऐसा माना जाता है कि माँ काली एक इंजीनियर के सपने में आई थी और जिन्होंने मंदिर की स्थापना के लिए महंत सुखबीर गुसैन को देवी काली की मूर्ति दी थी , जो कि वर्तमान समय में घाटी के मंदिर में स्थापित है | इसलिए इस मंदिर को ” डाट काली मंदिर “ कहा जाता है |
Datkali Temple, Dehradun

झूला देवी मंदिर (Jhula Devi Temple, Ranikhet)

रानीखेत और आसपास के क्षेत्र के लिए आशीर्वाद है यहाँ स्थित झूला देवी मंदिर। पवित्र मंदिर देवी दुर्गा को समर्पित हैऔर इसे झूला देवी के रूप में नामित किया गया है क्योंकि यहाँ प्रसिद्ध देवी को पालने पर बैठा देखा जाता है।स्थानीय लोगों के अनुसार यह मंदिर 700 वर्ष पुराना है और 1959 में मूल देवी चोरी हो गई थी। चिताई गोलू मंदिर की तरह, इस मंदिर को इसके परिसर में लटकी घंटियों की संख्या से पहचाना जाता है। यह माना जाता है कि झूला देवी अपने भक्तों की इच्छाओं को पूरा करती हैं और इच्छाऐं पूरी होने के बाद, भक्त यहाँ तांबे की घंटी चढाते हैं।
Jhula Devi Temple, Ranikhet

कालीमठ मंदिर (Kalimath Temple, Rudraprayag)

मां भगवती का असीमित 'शक्तिपुंज' देवभूमि उत्तराखंड में ऊंचाई पर मौजूद है। कालीमठ मंदिर रुद्रप्रयाग में स्थित है। यहां से करीब आठ किमी. खड़ी चढ़ाई के बाद कालीशिला के दर्शन होते हैं। विश्वास है कि मां दुर्गा शुंभ-निशुंभ और रक्तबीज का संहार करने के लिए कालीशिला में 12 वर्ष की कन्या के रूप में प्रकट हुई थीं। कालीशिला में देवी-देवताओं के 64 यंत्र हैं। मान्यता है कि इस स्थान पर शुंभ-निशुंभ दैत्यों से परेशान देवी-देवताओं ने मां भगवती की तपस्या की थी। तब मां प्रकट हुई। असुरों के आतंक के बारे में सुनकर मां का शरीर क्रोध से काला पड़ गया और उन्होंने विकराल रूप धारण कर लिया। मां ने युद्ध में दोनों दैत्यों का संहार कर दिया। मां को इन्हीं ६४ यंत्रों से शक्ति मिली थी
Kalimath Temple, Rudraprayag

कामख्या देवी मंदिर (Kamakhya Devi Temple, Pithoragarh)

देवभूमि के नाम से प्रसिद्ध उत्तराखंड धार्मिक दृष्टि से दुनियाभर में प्रसिद्ध है, जिस वजह से यहां हर साल श्रद्धालुओं की संख्या बढ़ती रहती है। उत्तराखंड के पिथौरागढ़ जिले से 10 किलोमीटर दूर “कसुली” नामक स्थान पर कामख्या देवी मंदिर है। यह स्थान सुंदर चोटियों से घिरा हुआ है, जिस वजह से यहां की खूबसूरती को देखने के लिए हर साल बड़ी संख्या में पर्यटक आते हैं। कामख्या देवी मंदिर की स्थापना 1972 में मदन मोहन शर्मा के प्रयासों से हुई थी। 1972 में मदन मोहन शर्मा ने जयपुर से छः सिरोंवाली मूर्ति लाकर यहां स्थापित की थी। कामाख्या देवी को नारित्व के प्रतीक के रूप में भी जाना जाता है। एक छोटे से मंदिर के रूप में शुरू हुए इस मंदिर का सफर स्थानीय लोगों के प्रयास से बेहद सुन्दर और विशाल मंदिर में तब्दील हो गया है। इस मंदिर की विशेषता यह है कि यह उत्तराखंड में कामख्या देवी का सिर्फ यह एक मात्र मंदिर है।
Kamakhya Devi Temple, Pithoragarh

माता भगवती माँ मठियाणा (मैथियाना) देवी मन्दिर (Mathiyana Devi Temple, Rudraprayag)

रुद्रप्रयाग भरदार मैठणा-खाल स्थित सिद्धपीठ माता भगवती माँ मठियाणा (मैथियाना) देवी मन्दिर (Maa Mathiyana Devi Temple)। ऊंचाइयों में जंगलो से घिरा यह मन्दिर आपको यहां आने के लिए एक बार उत्साहित जरूर करेगा। मठियाणा देवी मंदिर (Maa Mathiyana Devi Temple) माता सती का काली रूप है तथा यह स्थान देवी का सिद्ध-पीठ है। यह अपने आप में आस्था और विश्वास का प्रतीक है। मठियाणा माँ उत्तराखंड की सबसे शक्तिशाली देवियों में से एक मानी जाती है और रुद्रप्रयाग और भरदार पति की रक्षक मानी जाती है।
Mathiyana Devi Temple, Rudraprayag

संतला देवी मंदिर (Santala Devi Temple, Dehradun)

संतला देवी मंदिर (Santala Devi Temple) प्राचीन और लोकप्रिय धार्मिक स्थल प्रदेश की राजधानी देहरादून (Dehradun) से लगभग 15 किलोमीटर दूर हरे घने जंगलों के बीच में सन्तौर नामक जगह पर स्थित है। संतला देवी मंदिर इस क्षेत्र में रहने वाले लोगों के विश्वास का प्रतीक है। इसका बहुत सांस्कृतिक और धार्मिक महत्व है। संतला देवी मंदिर को शांतला देवी मंदिर के नाम से भी जाना जाता है। संतला देवी मंदिर, देवी संतला और उनके भाई संतूर को समर्पित है। इस धार्मिक स्थल के प्रति लोगों की गहरी आस्था है। भक्तों का विश्वास है कि यहां आकर यदि कोई भक्त या श्रद्धालु सच्चे मन से मनोकामना करता है तो उसकी मनोकामना देवी संतला जरुर पूरी करती है। शनिवार को संतला देवी मंदिर में बड़ी संख्या में श्रद्धालु पहुंचते हैं। मान्यता है कि इस दिन संतला देवी की मूर्ति पत्थर में बदल जाती है।
Santala Devi Temple, Dehradun
उत्तरवाहिनी नारद गंगा की सुरम्य घाटी पर यह प्राचीनतम आदिशक्ति मां भुवनेश्वरी का मंदिर पौड़ी गढ़वाल में कोटद्वार सतपुली-बांघाट मोटर मार्ग पर सतपुली से लगभग 13 किलोमीटर की दूरी पर ग्राम विलखेत व दैसण के मध्य नारद गंगा के तट पर मणिद्वीप (सांगुड़ा)में स्थित है। शिव पुराण में भी बिल्व क्षेत्र का वर्णन है। यह बिल्व क्षेत्र "बिलखेत" है। दक्ष प्रजापति का छह महीने का निवास स्थान दैसण है। दक्ष का जहां गला कटा, वह निवास स्थल अथवा उत्पत्तिस्थल सतपुली हुआ। अत: सती का यह मंदिर भुवनेश्वरी का मंदिर कहलाया, ऐसा लक्षित होता है। चूंकि सती अग्नि समाधि अवस्था में उत्तर की ओर मुंह करके बैठी थीं, इसीलिए इस मंदिर का प्रवेश द्वार उत्तर की ओर है। इसी मंदिर के समीप अभी भी विशालकाय वट वृक्ष विद्यमान है जिसके नीचे बैठकर भगवान शंकर ने सती को अमर कथा सुनाई थी।
Sanguda Devi Temple

मां विंध्यवासिनी देवी मंदिर (Ma Vindhyavasini Temple, Yamkeshwar)

ऋषिकेश से १० किमी और गंगा भोगपुर से ५ किमी दूर, ताल घाटी, यमकेवश्वर ब्लॉक मैं राजाजी नेशनल के जंगल में स्थित है मां विंध्यवासिनी देवी के मंदिर। यह मंदिर सिद्धि साधना के लिए भी जाना जाता है. कंस के वध की भविष्यवाणी के बाद यशोदा की बेटी इसी स्थान पर गिरी थीं. यहां पर गुड़ की भेली चढ़ाने और मां विंध्यवासिनी के दर्शन मात्र करने से भक्तों के सभी कष्ट दूर हो जाते हैं. साथ ही माता सभी की मनोकामनाएं भी पूरी करती हैं.
Ma Vindhyavasini Temple, Yamkeshwar

गर्जिया देवी मन्दिर (Garjiya Devi Temple, Ramnagar)

गर्जिया देवी मन्दिर उत्तराखंड राज्य में रामनगर से 15 km दूर सुंदरखाल गांव में स्थित है। जिसे गिरिजा देवी मंदिर के नाम से भी जाना जाता है, यह प्राचीन मंदिर कोसी नदी के किनारे एक छोटी सी पहाड़ी के टीले पर बना हुआ है. जो माता पार्वती के स्वरूप गर्जिया देवी को समर्पित है। गिरिराज हिमालय की पुत्री होने के कारण इन्हें “गिरिजा” नाम से पुकारा जाता है। इस मंदिर को माता पार्वती के प्रमुख मंदिरों में से एक कहा जाता है। पुराने इतिहासकारों के अनुसार जहां पर वर्तमान में रामनगर बसा हुआ है पहले कभी वहा कोसी नदी के “वैराट नगर” यहा “वैराट पत्तन” बसा हुआ था, पहले यहां पर कुरु राजवंश के राजा राज करते थे तथा बाद में कत्यूरी राजा ने राज किया जो इन्द्रप्रस्थ (दिल्ली ) के साम्राज्य में रहते थे। कत्यूरी राजवंश के बाद गर्जिया की इस पवित्र भूमि पर चन्द्र राजवंश, गोरखा वंश और अंग्रेज़ शासकों ने राज किया है। 1940 से पहले गर्जिया नामक का यह क्षेत्र भयंकर जंगलों से भरा पड़ा था। ऐसा बताते है की 1940 से पहले इस मन्दिर की स्थिति आज जैसी नहीं थी तब इस देवी को उपटा देवी के नाम से जाना जाता था।
Garjiya Devi Temple, Ramnagar



माँ ज्वाल्पा देवी मंदिर (Ma Jwalpa Devi Temple, Pauri)

उत्तराखंड के सबसे प्रमुख शक्तिपीठों मैं से एक है ज्वाल्पा देवी मंदिर, माता शक्ति को समर्पित शक्तिपीठ मैं माता की पूजा ज्वाल्पा रूप मैं की जाती है। पौड़ी-कोटद्वार मार्ग पर नवलिका नदी (नायर) के तट पर स्थित यह शक्तिपीठ पौड़ी गढ़वाल जिला मुख्यालय से ३५ किलोमीटर की दुरी पर स्थित है, ज्वाल्पा देवी मंदिर गढ़वाल के सबसे खूबसूरत धार्मिक स्थलों में से एक है। स्कंद पुराण की किंवदंतियों के अनुसार, राक्षस राजा पुलोम की बेटी - सुची इंद्र से शादी करना चाहती थी। इसलिए उन्होंने इस मंदिर में देवी शक्ति की पूजा की। देवी माँ भगवती उनके समक्ष ज्वाला रूप यानि अग्नि रूप मैं प्रकट हुई थी। एक अन्य मान्यता के अनुसार, आदि गुरु शंकराचार्य ने एक बार इस मंदिर में जाकर प्रार्थना की थी। उनकी प्रार्थना और भक्ति से संतुष्ट होकर देवी माँ ज्वाला रूप मैं उनके सामने प्रकट हुईं। ज्वाला रूप में दर्शन देने की वजह से इस स्थान का नाम ज्वालपा देवी पड़ा था। देवी माँ दीप्तिमान ज्वाला के रूप में जब से प्रकट हुई है तब से यहाँ पर अखंड दीपक निरंतर मंदिर में प्रज्ज्वलित रहती है। हर साल, लाखों लोग इस मंदिर में दर्शन के लिए आते हैं, विशेष रूप से अविवाहितायें, क्योंकि मान्यता ​​है कि ज्वालपा देवी के मंदिर मैं प्रार्थना करने से अविवाहित कन्याओं की सुयोग्य वर की कामना पूर्ण होती है,
Ma Jwalpa Devi Temple, Pauri Garhwal






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