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November 8, 2016

बुरांस या बुरुंश (रोडोडेंड्रॉन / Rhododendron)

बुरांस या बुरुंश (रोडोडेंड्रॉन / Rhododendron) 

क्या आप जानते है बुरांस या बुरुंश के बारे मैं 

Buransh Flower

बुरांस या बुरुंश (रोडोडेंड्रॉन / Rhododendron) सुन्दर फूलों वाला एक वृक्ष है। बुरांस का पेड़ जहां उत्तराखंड का राज्य वृक्ष है, वहीं नेपाल में बुरांस के फूल को राष्ट्रीय फूल घोषित किया गया है। बुरांस को अंग्रेजी में ‘रोडोडेण्ड्रन’ कहते हैं जबकि वनस्पति विज्ञान में इसे ‘रोडोडेण्ड्रन पोंटिकम’ कहते हैं। यह शब्द वास्तव में लेटिन भाषा का है जिसमें रोडो का अर्थ ‘गुलाब’ तथा डेण्ड्रन का अर्थ ‘पेड़’ होता है। बुरांस के फूल दूर से भले ही गुलाब से लगते हों परन्तु होते गुलाब से काफी बड़े। गर्मियों के दिनों में ऊंची पहाडिय़ों पर खिलने वाले बुरांस के सूर्ख फूलों से पहाडिय़ां भर जाती हैं। हिमाचल प्रदेश में भी यह पैदा होता है।

हिमालयी क्षेत्रों में 1500 से 3600 मीटर की ऊंचाई पर पाया जाने वाला बुरांस मध्यम ऊंचाई पर पाया जाने वाला सदाबहार वृक्ष है। बुरांस के पेड़ों पर मार्च-अप्रैल माह में लाल सूर्ख रंग के फूल खिलते हैं। बुरांस के फूलों का इस्तेमाल दवाइयों में किया जाता है, वहीं पर्वतीय क्षेत्रों में पेयजल स्त्रोतों को यथावत रखने में बुरांस महत्वपूर्ण भूमिका निभाता है। बुरांस के फूलों से बना शरबत हृदय रोगियों के लिए बेहद लाभकारी माना जाता है। बुरांस के फूलों की चटनी और शरबत बनाया जाता है, वहीं इसकी लकड़ी का इस्तेमाल कृषि यंत्रों के हैंडल बनाने में किया जाता है। ग्रामीण क्षेत्रों में आज भी बुजुर्ग सीजऩ के दौरान घरों में बुरांस की चटनी बनवाना नहीं भूलते। बुरांस की चटनी ग्रामीण क्षेत्रों में काफी पसंद की जाती है।

बुरांस के फूल जहां औषधीय व जूस के काम आता है वहीं बैसाखी के दिन बुरांस के फूल का घर में विशेष महत्त्व है। ऊपरी शिमला में बैसाखी के दिन बुरांस के फूल को घर के दरवाजे पर लगाया जाता है जो शुभ माना जाता है। ऊपरी शिमला में बैसाखी के दिन हर परिवार में यह फूल घर में मिलता है। गौरतलब है कि बुरांस के फूल का जूस हृदय रोग, किडनी और लिवर के अलावा रक्त कोशिकाओं को बढ़ाने और हड्डियों के सामान्य दर्द के लिए बहुत लाभकारी होता है। बुरांस के जूस की मांग हिमाचल प्रदेश के अलावा अन्य प्रदेशों में भी बहुत है। बुरांस की पत्तियां खाद बनाने में और इसकी लकड़ी फर्नीचर व कृषि उपकरण बनाने में प्रयोग होती हैं। इन दिनों बुरांस के फूल की रंगत से पहाड़ दमक रहे हैं। खूबसूरत होने के साथ यह फूल औषधि महत्त्व वाला भी है। बुरांस के फूल से जहां चटनी बनती है वहीं इसके फूल का जूस बड़ा स्वादिष्ट व गुणकारी होता है। गौर है कि प्रकृति का खजाना वैसे तो अनमोल है, पर बुरांस का फूल कई मायनों में विशेष है। इसके फूल से बना जूस हृदय संबंधी बीमारियों से जूझ रहे लोगों के लिए रामबाण से कम नहीं हैं। बुरांस का फूल हाई ब्लड प्रेशर में भी अचूक दवा है। हिमाचल प्रदेश में बुरांस का फूल राष्ट्रीय फूल का दर्जा हासिल है।

सदाबहार पहाड़ी वृक्षों में बसंत के आगमन पर यदि कोई वृक्ष फूलों की बहार बिखेरता है तो वह है बुरांस। बुरांस का नाम आते ही एक ऐसे वृक्ष का दृश्य आंखों के आगे तैरने लगता है जो बड़े-बड़े गुच्छानुमा गहरे लाल रंग के फूलों से लदा है और जो दूर से ही सदाबहार हरे जंगलों के बीच अपनी आकर्षक उपस्थिति दर्शाता है। जी, हां! बुरांस का फूल है ही ऐसा जिसे हर कोई देखना चाहेगा, हर कोई उसे अपने ड्राइंग रूम में सजाना चाहेगा। अगर किसी जगह पर एक साथ दर्जनभर बुरांस के पेड़ खिले हों तो समूचा क्षेत्र ही इनकी चमक से उज्ज्वल होता है। यदि इन जंगलों के बीच से गुजरें तो इनकी सुवास से हृदय खिल उठता है।

इनकी पंखुडिय़ां एकदम सुर्ख लाल, खूब बड़ी और रस से सराबोर। बुरांस की विशेषता यह है कि इसमें फूल एक साथ आते हैं। इसी कारण यह फूलों से एकदम लद जाता है। फरवरी के अंतिम सप्ताह से इसमें फूल आने लगते हैं जो प्राय: अप्रैल के अन्त तक अपनी छटा बिखेरे रहते हैं। इस दौरान पहाड़ों में सर्दियां भी समाप्ति पर होती हैं और बुरांस के जंगलों में घूमने का अपना ही आनन्द होता है। यदि फूल झड़ भी जाएं तो इसके सख्त चौड़े नुकीले पत्ते इतने सुंदर होते हैं कि खाली पत्तों को दूसरे फूलों के बीच कमरे के एक कोने या गुलदस्ते में सजाया जा सकता है। महीनों तक ये पत्ते गुलदान में हरे रहते हैं। हमारे देश में बुरांस पर ध्यान बहुत देर बाद गया जबकि वनस्पति विज्ञानियों के लिये यह बहुत पहले से उनकी रुचि का विषय रहा है। बुरांस को सबसे पहले एशिया माइनर में देखा गया। उसके बाद मध्य चीन के पहाड़ों में। हमारे देश में बुरांस समस्त हिमालयी क्षेत्र जहां की ऊंचाई सात हजार से दस हजार फीट तक है, में पाया जाता है। उत्तर-पूर्व के पहाड़ी राज्यों, उत्तर प्रदेश के कुमांऊ, गढ़वाल तथा हिमाचल प्रदेश के शिमला तथा इससे ऊपर की ऊंचाई के क्षेत्रों में बुरांस के पेड़ देखे जा सकते हैं। समस्त समरहिल क्षेत्र, जाखू तथा नवबहार में तो बुरांस के जंगल ही हैं। लोग बुरांस के गुलदस्ते तो बनाते ही हैं परन्तु इसकी चटनी जैम और जैली आदि बड़े चाव से खाते हैं। बुरांस के फूलों का स्वाद आमतौर पर खट्टा-मीठा होता है। बुरांस का शरबत हृदय रोगियों के लिये उत्तम माना जाता है 

हमारे देश में बुरांस भले ही आज उपेक्षित है। परन्तु विदेशों में इस पर बहुत से अनुसंधान चल रहे हैं। वहां बुरांस की अनेक प्रजातियां विकसित की गई हैं, जिनको अलग-अलग नाम दिये गए हैं। इन देशों में लाल रंग के अतिरिक्त सफेद, गुलाबी और पीले रंग की बुरांस की किस्में भी विकसित की गई हैं। बुरांस का पेड़ बहुत धीरे बढ़ता है, इसकी पौध तैयार करना भी कम सरल नहीं है। इसके बीज इतने छोटे होते हैं कि यह पता करना तक कठिन होता है कि बीज जिन्दा है या मृत। पौधशाला में इसे टिकाए रखना बहुत कठिन होता है। विदेशों में तो इसकी बौनी किस्में भी विकसित की गई हैं। लोग बड़े शौक से इस प्रकार के बौने वृक्षों को ड्राइंग रूप में सजाते हैं। ऐसी धारणा है कि बुरांस के पेड़ बहुधा देवदार और राई के पेड़ों के बीच पैदा होते हैं। भारत में देहरादून स्थित वन अनुसंधान संस्थान में बुरांस पर अनुसंधान चल रहा है। 

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