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September 10, 2021

दूनागिरी मंदिर (Dunagiri Temple, Almora)

दूनागिरी मंदिर 

(Dunagiri Temple, Almora)

उत्तराखण्ड राज्य के अल्मोड़ा जिले के द्वाराहाट क्षेत्र से 15 km आगे मां दूनागिरी मंदिर (Dunagiri temple ) अपार आस्था का केंद्र है । कुमांऊँ क्षेत्र के अल्मोड़ा जिले में एक पौराणिक पर्वत शिखर का नाम है, द्रोण, द्रोणगिरी, द्रोण-पर्वत, द्रोणागिरी, द्रोणांचल, तथा द्रोणांचल-पर्वत। वैसे तो मंदिर के बारे मे बहुत सी कथाये प्रचलित है।जिससे यहाँ माँ वैष्णव के विराजमान होने का प्रतीक मिलता है। द्रोणागिरी को पौराणिक महत्त्व के सात महत्वपूर्ण पर्वत शिखरों में से एक माना जाता है। दूनागिरी पर्वत पर अनेक प्रकार की वनस्पतियॉं उगतीं है।कुछ महौषधि रूपी वनस्पतियॉं रात के अधेरे में दीपक की भॉंति चमकती है। आज भी पर्वत पर घूमने पर हमें विभिन्न प्रकार की वनस्पतियॉं दिखायी देती हैं।जो स्थानीय लोगों की पहचान में भी नहीं आती हैं। दूनागिरी मंदिर (Dunagiri temple ) द्रोणगिरी पर्वत की चोटी पर स्थित है। यह मंदिर समुद्र तल से 8000 फीट की ऊंचाई पर स्थित है। सडक से लगभग 365 सीढ़ीयों है ।
Dunagiri Temple, Almora

दूनागिरी मंदिर से हिमालय पर्वत की पूरी श्रृंखला को देखा जा सकता है।उत्तराखंड के अल्मोड़ा जिले में बहुत पौराणिक और सिद्ध शक्तिपीठ है। उन्ही शक्तिपीठ में से एक है द्रोणागिरी वैष्णवी शक्तिपीठ है वैष्णो देवी के बाद उत्तराखंड के कुमाऊं में द्रोणागिरि पर्वत "दूनागिरि” दूसरी वैष्णो शक्तिपीठ है। दूनागिरी मंदिर में कोई मूर्ति नहीं है। प्राकृतिक रूप से निर्मित सिद्ध पिण्डियां माता भगवती के रूप में पूजी जाती हैं  दूनागिरी मंदिर(Dunagiri temple ) में अखंड ज्योति का जलना मंदिर की एक विशेषता है। दूनागिरी माता का वैष्णवी रूप में होने से, इस स्थान में किसी भी प्रकार की बलि नहीं चढ़ाई जाती है। यहाँ तक की मंदिर में भेट स्वरुप अर्पित किया गया नारियल भी, मंदिर परिसर में नहीं फोड़ा जाता है।

पुराणों में वर्णित महर्षि वेदव्यास के अनुसार कौशिकी (कोसी नदी) तथा रथवाहिनी (रामगंगा नदी) के इन दोनों नदियों के मध्य में स्थित पर्वत द्रोणगिरी है। द्रोण आदि आठों वसु यानि देवतागण इस पर्वतराज की आराधना करते हैं। इस पर्वत पर विभिन्न प्रकार के विलक्षित पशु पक्षियों का आवास है। नाना प्रकार की वनस्पतियॉं उगतीं है, कुछ महौषधि रूपी वनस्पतियॉं रात के अधेरे में दीपक की भॉंति चमकती है। आज भी पर्वत पर घूमने पर हमें विभिन्न प्रकार की वनस्पतियॉं दिखायी देती हैं, जो स्थानीय लोगों की पहचान में भी नहीं आती हैं।
ईशान कोण की दिशा में समुद्र सतह से लगभग 8000 फुट की ऊँचाई पर, इसी पर्वत पर, मॉं वैष्णवी का प्राचीनतम शक्तिपीठ मन्दिर है। इसको अब स्थानीय कुमांऊँनी बोली-भाषा में माँ दूनागिरी के नाम से जाना जाता है। अत्यन्त प्राचीन काल से दूनागिरी के इस सिद्ध शक्तिपीठ के साथ भारतीय इतिहास और संस्कृति के अनेक महात्म्य जुड़े हुए हैं। देवी के गूढ़ रहस्यों का चिन्तन करने वाले ऋषि मुनियों ने हिमालय के इस पर्वत पर धूँनी रमाकर अष्टिधात्री के दर्शन किये। दूनागिरी मॉं वैष्णवी शक्तिपीठ मन्दिर का पुनर्निर्माण कत्यूरी राजवंश के तत्कालीन शासक सुधारदेव ने 1318 ईसवी में करवाया था। इतना ही नहीं मन्दिर में शिव व पार्वती की मूर्तियाें की प्राण प्रतिष्ठा भी तत्कालीन ही है। दूनागिरी में अनेक वर्षों से योगसाधना करने वाले स्वामी श्री श्री सत्येश्वरानन्द गिरीजी महाराज के अनुसार भारत में वैष्णवी शक्तिपीठ दो ही हैं एक वैष्णो देवी के नाम से जम्मू-कश्मीर में तथा दूसरा गुप्त शक्तिपीठ दूनागिरी की वैष्णवी माता के रूप में प्रतिष्ठित हैं।


कैसे पहुचें (How to Reach Dunagiri Temple) - 
हवाई मार्ग से (By Air) - सबसे नजदीकी एयरपोर्ट पंत नगर एयरपोर्ट है जो यहाँ से लगभग १६० किमी दुरी पर स्थित है, 
रेल मार्ग से (By Train) - सबसे नजदीकी रेलवे स्टेशन काठगोदाम है जोकि लगभग १४० किमी की दुरी पर स्थित है, 
सड़क मार्ग से (By Road) - दूनागिरी मंदिर द्वाराहाट से लगभग ६-७ किमी की दुरी पर स्थित है, सड़क मार्ग द्वारा सभी प्रमुख शहरो से जुड़ा हुआ है, दिल्ली से लगभग ४०० किमी की दुरी पर स्थित है, पहले द्वाराहाट पहुंच कर फिर ६-७ किमी दुरी पर स्थित है दुनागिरि मंदिर। 





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