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September 10, 2021

नंदादेवी मंदिर, नौटी, चमोली (Nanda Devi Temple, Chamoli)

नंदादेवी मंदिर, नौटी, चमोली 

(Nanda Devi Temple, Chamoli)

नंदा देवी समूचे गढ़वाल और कुमाऊं  तथा उत्तराखंड   के अन्य भागों के  जन मानस  की लोकप्रिय देवी हैं। नंदा की उपासना प्राचीन काल से ही किये जाने के प्रमाण धार्मिक ग्रंथों, उपनिषदों , दुर्गा  सप्तसती और    पुराणों में मिलते हैं। रूप मंडन ग्रन्थ  में पार्वती को  माँ गौरी के छ: रुपों में एक बताया गया है। भगवती की 6  अंगभूता शक्तियों  में नंदा भी एक है। नंदा को नवदुर्गाओं में से भी एक बताया गया है। भविष्य पुराण में जिन दुर्गा के स्वरूपों का उल्लेख है उनमें महालक्ष्मी, नंदा, क्षेमकरी, शिवदूती, महाटूँडा, भ्रामरी, चंद्रमंडला, रेवती और हरसिद्धी हैं। शिवपुराण में वर्णित नंदा तीर्थ वास्तव में कूर्माचल  ( कुमाऊं ) ही है। शक्ति के रूप में नंदा ही सारे हिमालय में पूजित हैं। नंदा के इस शक्ति रूप की पूजा गढ़वाल में करुली, कसोली, नरोना, हिंडोली, तल्ली दसोली, सिमली, तल्ली धूरी, नौटी, चांदपुर, गैड़लोहवा , भगोती , कुलसारी , कोटि आदि स्थानों में होती है। गढ़वाल में राज जात यात्रा का आयोजन भी नंदा के सम्मान में होता है। यह यात्रा माँ नंदा को मायके से  ससुराल विदा करने की यात्रा है, जिसका पहला पड़ाव नौटी से शुरू होता है नंदादेवी की यह ऐतिहासिक यात्रा चमोली जनपद के नौटी गांव से शुरू होती है। जहाँ पवार वंश  के पुरोहित नौटियाल लोग रहते है। नौटियाल ब्राह्मण  नौटी  में भगवती नंदा की पूजा करते है और यात्रा की शुरुवात करते है।  यह यात्रा  नौटी से पैदल रहस्यमयी रूपकुंड होकर होमकुंड तक जाती है,

Nanda Devi Temple, Nauti, Chamoli

कुमाऊं क्षेत्र के उत्तराखंड राज्य के अल्मोड़ा जिले के पवित्र स्थलों में से एक “नंदा देवी मंदिर” का विशेष धार्मिक महत्व है। इस मंदिर में देवी दुर्गा का अवतार विराजमान है। यह समुद्रतल से 7816 मीटर की ऊँचाई पर स्थित है। यह मंदिर चंद वंश की ईष्ट देवी माँ नंदा देवी को समर्पित है। नंदा देवी माँ गढ़वाल एवं कुमाऊं की मुख्य देवी के रूप में पूजी जाती है। नंदा देवी गढ़वाल के राजा दक्षप्रजापति की पुत्री है, इसीलिए इन्हें पर्वतांचल की पुत्री भी कहा जाता है। माँ नंदा देवी मंदिर की उत्तराखंड में इतनी विषेशता इस कारण भी है, क्योंकि नंदा देवी को “बुराई के विनाशक” और "कुमुण के घुमन्तु" का रूप माना जाता है। इसका इतिहास 1000 साल से भी अधिक पुराना है।

लोक इतिहास के अनुसार नन्दा गढ़वाल के राजाओं के साथ-साथ कुँमाऊ के कत्युरी राजवंश की ईष्टदेवी थी । ईष्टदेवी होने के कारण नन्दादेवी को राजराजेश्वरी कहकर सम्बोधित किया जाता है। नन्दादेवी को पार्वती की बहन के रुप में देखा जाता है परन्तु कहीं-कहीं नन्दादेवी को ही पार्वती का रुप माना गया है। नन्दा के अनेक नामों में प्रमुख हैं शिवा, सुनन्दा, शुभानन्दा, नन्दिनी। पूरे उत्तराँचल में समान रुप से पूजे जाने के कारण नन्दादेवी के समस्त प्रदेश में धार्मिक एकता के सूत्र के रुप में देखा गया है । रूपकुण्ड के नरकंकाल, बगुवावासा में स्थित आठवीं सदी की सिद्ध विनायक भगवान गणेश की काले पत्थर की मूर्ति आदि इस यात्रा की ऐतिहासिकता को सिद्ध करते हैं, साथ ही गढ़वाल के परंपरागत नन्दा जागरी (नन्दादेवी की गाथा गाने वाले) भी इस यात्रा की कहानी का बखान करते हैं। नन्दादेवी से जुडी जात (यात्रा) दो प्रकार की हैं। वार्षिक जात और राजजात। वार्षिक जात प्रतिवर्ष अगस्त-सितम्बर मॉह में होती है। जो कुरूड़ के नन्दा मन्दिर से शुरू होकर वेदनी कुण्ड तक जाती है और फिर लौट आती है, लेकिन राजजात 12 वर्ष या उससे अधिक समयांतराल में होती है। मान्यता के अनुसार देवी की यह ऐतिहासिक यात्रा चमोली के नौटीगाँव से शुरू होती है और कुरूड़ के मन्दिर से भी दशोली और बधॉण की डोलियाँ राजजात के लिए निकलती हैं। इस यात्रा में लगभग 250 किलोमीटर की दूरी, नौटी से होमकुण्ड तक पैदल करनी पड़ती है। इस दौरान घने जंगलों पथरीले मार्गों, दुर्गम चोटियों और बर्फीले पहाड़ों को पार करना पड़ता है।



कैसे पहुंचे (How to Reach Nanda Devi Temple Nauti) -
हवाई मार्ग से (By Air) - सबसे नजदीकी एयरपोर्ट जॉलीग्रांट एयरपोर्ट है जोकि यहाँ से लगभग २०० किमी की दुरी पर स्थित है। 

ट्रेन द्वारा (By Train) - ऋषिकेश / हरिद्वार रेलवे स्टेशन सबसे नजदीकी रेलवे स्टेशन है जो की याना से लगभग १९० किमी की दुरी पर स्थित है, 

सड़क के द्वारा (By Road) - नंदा देवी मंदिर नौटी, कर्णप्रयाग से लगभग २५ किमी दुरी पर स्थित है जोकि सड़क मार्ग द्वारा जुड़ा हुआ है, कर्णप्रयाग सड़क मार्ग द्वारा सभी प्रमुख शहरों से सही तरह से जुड़ा हुआ है यहाँ से टेक्सी की सुविधाएँ आसानी से मिल जाती है, कर्णप्रयाग के लिए दिल्ली से भी सार्वजानिक परिवहन की सुविधाएँ उपलब्ध है। 



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