माया देवी मंदिर हरिद्वार
(Maya Devi Temple, Haridwar)
प्राचीन मायापुरी की अधिष्ठात्री देवी हैं मायादेवी। उनका पौराणिक मंदिर हरिद्वार के मध्य में स्थित है। मनसा और चंडी देवी मंदिरों को मिलाकर मायादेवी में शक्ति का अनोखा त्रिभुज बनता है। इस त्रिभुज का केंद्र धरती के भीतर है। यही वह स्थान है जहां काल के किसी खंड में राजा दक्ष की पुत्री और भगवान शिव की अद्धांग्नि भगवती सती की दग्ध देह रखी गई थी। भगवान शिव ने यहीं से प्राण प्रिया की मृत देह कंधे पर उठाकर आकाश के रास्ते क्रोध विचरण किया। शिव पुराण की कथा के अनुसार शिव घूमते रहे और सती के अंग टूट टूटकर गिरते रहे। इन्हीं अंगों से देश में 52 शक्तिपीठ बने। इन तमाम शक्तिपीठों का केंद्र बिंदु माया देवी है। मनसा, चंडी और माया को मिलाकर बना यह त्रिभुज केंद्र शक्ति का संचार करता है। माया देवी का यह पावन स्थल भगवान शिव और कनखल के राजा दक्ष से जुड़ा है। कनखल के जगजीतपुर में हुए विराट यज्ञ में पति के अपमान से क्षुब्ध होकर सती ने यज्ञकुंड में स्वयं को अपमान की अग्नि में दग्ध कर लिया था। माया देवी मंदिर उसी इतिहास से जोड़ता है।
हरिद्वार में त्रिदेव वास करते हैं, लेकिन मोक्ष की इस नगरी में ही एक शक्तिपीठ भी है जो सती के त्याग की गवाह है. यह शक्तिपीठ सती के शिव के प्रति प्रेम का भी गवाह है. हरिद्वार का माया देवी शक्तिपीठ 51 शक्तिपीठों में से एक है, जहां सती की नाभि गिरी थी. हरिद्वार में त्रिदेव वास करते हैं, लेकिन मोक्ष की इस नगरी में ही एक शक्तिपीठ भी है जो सती के त्याग का गवाह है. यह शक्तिपीठ सती के शिव के प्रति प्रेम का भी गवाह है. हरिद्वार का माया देवी शक्तिपीठ 51 शक्तिपीठों में से एक है, जहां सती की नाभि गिरी थी. देवनगरी हरिद्वार में पतित पावनी गंगा भक्तों के पाप धोती है. शिव की जटाओं से निकली मोक्षदायिनी गंगा के स्पर्श से महाकुंभ की इस नगरी का महत्व और ज्यादा बढ़ जाता है. कहते हैं यहीं ब्रह्मा, विष्णु और महेश वास करते हैं और इसी धर्म नगरी में बसा है वो स्थान जो सुनाता है सती के क्रोध और शिव का अपमान न झेल पाने के बाद सती के आत्मदाह की कहानी. सती और शिव का संबंध अटूट है. भगवान भोले में बसती हैं सती और शक्ति के हृदय में रहते हैं शिव. लेकिन सती की अग्निसमाधि के बाद जब शिव, सती का शरीर लेकर समूचे ब्रह्मांड में भटक रहे थे तब भगवान विष्णु ने अपने सुदर्शन चक्र से सती के शरीर के टुकड़े-टुकड़े कर दिए. धरती पर ये टुकड़े जहां-जहां गिरे वो स्थान शक्तिपीठ कहलाए. उन 51 शक्तिपीठों में से एक है हरिद्वार का माया देवी मंदिर जहां गिरी थी सती की नाभि. पौराणिक मान्यता के अनुसार जब सती ने अपने पिता के यज्ञ में अपने पति को नहीं बुलाए जाने से अपमानित होने पर आत्मदाह कर लिया था और अपने शरीर को वहीं सतीकुंड पर छोड़कर महामाया रूप में हरिद्वार के इसी स्थान पर आ गई थीं. इसीलिए इस जगह का नाम मां मायादेवी पड़ा. इसी के बाद से हरिद्वार को भी मायापुरी के नाम से जाना जाने लगा और ये स्थान देश की सात पुरियों में शामिल हो गया.
माया देवी को हरिद्वार की अधिष्ठात्री देवी माना जाता है, जिसका इतिहास 11 शताब्दी से उपलब्ध है. प्राचीन काल से माया देवी मंदिर में देवी की पिंडी विराजमान है और 18वीं शताब्दी में इस मंदिर में देवी की मूर्तियों की प्राण प्रतिष्ठा की गई. इस मंदिर में धार्मिक अनुष्ठान के साथ ही तंत्र साधना भी की जाती है. हरिद्वार में भगवती की नाभि गिरी थी, इसलिए इस स्थान को ब्रह्मांड का केंद्र भी माना जाता है. हरिद्वार की रक्षा के लिए एक अद्भुत त्रिकोण विद्यमान है. इस त्रिकोण के दो बिंदु पर्वतों पर मां मनसा और मां चंडी रक्षा कवच के रूप में स्थित है तो वहीं त्रिकोण का शिखर धरती की ओर है और उसी अधोमुख शिखर पर भगवती माया आसीन हैं. मां के इस दरबार में मां माया के अलावा मां काली और देवी कामाख्या के दर्शनों का भी सौभाग्य भक्तों को प्राप्त होता है. जहां मां काली देवी माया के बायीं और तो वहीं दाहिंनी ओर मां कामाख्या विराजमान हैं. मां माया के आशीर्वाद से बिगड़े काम भी बन जाते हैं और सफलता की राह में आ रही बाधाएं दूर हो जाती हैं. मां के चमत्कारों की कहानी लंबी है और महिमा अनंत. मां माया के द्वार पर एक बार जो आ गया, वो फिर कहीं और नहीं जाता. मां माया देवी मंदिर के साथ ही भैरव बाबा का मंदिर भी मौजूद है और मान्यता है कि मां की पूजा तब तक पूर्ण नहीं मानी जाती जब तक भक्त भैरव बाबा का दर्शन पूजन कर उनकी आराधना नहीं कर लेते. भगवती की सुबह शाम होने वाली आरती में जो लोग शामिल होते हैं वो अखंड पुण्य के भागी होते हैं. आरती की लौ में मां का असीम आशीर्वाद है. और आरती के लौ की रौशनी जीवन के तमाम कष्टों का अंधियारा हर कर भक्तों के जीवन में खुशियों का उजियारा लाती है. माना जाता है कि मां मायादेवी मंदिर में पूजा कभी निष्फल नहीं जाती है. नवरात्रों के दौरान इस मंदिर में पूजा अर्चना का विशेष महत्व है. यहां आने वाले भक्तों की मां मायादेवी मंदिर के प्रति अगाध श्रद्धा है और मान्यता है कि जिसने भी सच्चे मन से पूजा करके मां के दरबार में गुहार लगायी है मां ने उसकी पुकार कभी अनसुनी नहीं की.
कैसे पहुंचे (How to Reach Maya Devi Temple) -
हवाई मार्ग द्वारा (By Air) - निकटतम हवाई अड्डा जॉली ग्रांट (35 किमी) है जो की देहरादून में स्थित है।
ट्रेन द्वारा (By Train) - सबसे नजदीकी रेलवे स्टेशन हरिद्वार रेलवे स्टेशन है जोकि मात्र 1 किमी की दुरी पर स्थित है।
सड़क मार्ग से (By Road) - माया देवी मंदिर हर की पौड़ी के पास स्थित है जो हरिद्वार बस स्टैंड से लगभग १ किमी की दुरी पर स्थित है जहाँ से ऑटो रिक्शा द्वारा आसानी से पहुंचा जा सकता है।
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