सुरकंडा देवी मंदिर
(Surkanda Devi Temple, Tehri)
देवभूमि उत्तराखंड के टिहरी जनपद में स्थित जौनुपर के सुरकुट पर्वत पर सुरकंडा देवा का मंदिर स्थित है। यह मंदिर देवी दुर्गा को समर्पित है जो कि नौ देवी के रूपों में से एक है। यह मंदिर 51 शक्ति पीठ में से है। इस मंदिर में देवी काली की प्रतिमा स्थापित है। केदारखंड व स्कंद पुराण के अनुसार राजा इंद्र ने यहां मां की आराधना कर अपना खोया हुआ साम्राज्य प्राप्त किया था। यह स्थान समुद्रतल से करीब 3 हजार मीटर ऊंचाई पर है इस कारण यहां से बद्रीनाथ, केदारनाथ, गंगोत्री और यमनोत्री अर्थात चारों धामों की पहाड़ियां नजर आती हैं। इसी परिसर में भगवान शिव एवं हनुमानजी को समर्पित मंदिर भी है। ऐसी मान्यता है कि नवरात्रि व गंगा दशहरे के अवसर पर इस मंदिर में देवी के दर्शन से मनोकामना पूर्ण होती है।
पौराणिक कथाओं के अनुसार, देवी सती ने उनके पिता दक्षेस्वर द्वारा किए यज्ञ कुण्ड में अपने प्राण त्याग दिए थे, तब भगवान शंकर देवी सती के मृत शरीर को लेकर पूरे ब्रह्माण के चक्कर लगा रहे थे। इसी दौरान भगवान विष्णु ने अपने सुदर्शन चक्र से सती के शरीर को 51 भागों में विभाजित कर दिया था, जिसमें सती का सिर इस स्थान पर गिरा था, इसलिए इस मंदिर को श्री सुरकंडा देवी मंदिर कहा जाता है। सती के शरीर भाग जिस जिस स्थान पर गिरे थे इन स्थानों को शक्ति पीठ कहा जाता है। सुरकंडा देवी मंदिर की एक खास विशेषता यह बताई जाती है कि भक्तों को प्रसाद के रूप में दी जाने वाली रौंसली की पत्तियां औषधीय गुणों भी भरपूर होती हैं। धार्मिक मान्यता के अनुसार इन पत्तियों से घर में सुख समृद्धि आती है। क्षेत्र में इसे देववृक्ष का दर्जा हासिल है। इसीलिए इस पेड़ की लकड़ी को इमारती या दूसरे व्यावसायिक उपयोग में नहीं लाया जाता। सिद्वपीठ मां सुरकंडा मंदिर में वैसे तो हर समय मां के दर्शन कर पुण्य लाभ प्राप्त होता है, लेकिन गंगादशहरे व नवरात्र के मौके पर मां के दर्शनों का विशेष महत्व माना गया है। मां के दर्शन मात्र से समस्त कष्टों का निवारण होता है। जहां गंगादशहरे पर विशाल मेला लगता है और दूर-दूर से लोग मां के दर्शन करने मंदिर पहुंचते है, केदारखंड व स्कंद पुराण के अनुसार राजा इंद्र ने यहां मां की आराधना कर अपना खोया हुआ साम्राज्य प्राप्त किया था। इस कारण ऐसा माना जाता है कि जो भी सच्चे मन से माता के दर्शन करने यहां आता है मां उसकी सारी मनोकामनाएं पूरी करती हैं। मां के दरबार से बद्रीनाथ, केदारनाथ, तुंगनाथ, चौखंबा, गौरीशंकर, नीलकंठ आदि सहित कई पर्वत श्रृखलाएं दिखाई देती हैं। मां सुरकंडा देवी के कपाट साल भर खुले रहते हैं।
कैसे पहुंचे (How to Reach Surkanda Devi Temple) -
हवाई मार्ग से (By Air) - सबसे नजदीकी एयरपोर्ट जॉलीग्रांट एयरपोर्ट है जोकि यहाँ से लगभग 85 किमी की दुरी पर स्थित है।
६५ 83
ट्रेन द्वारा (By Train) - सबसे नजदीकी रेलवे स्टेशन देहरादून रेलवे स्टेशन जोकि लगभग ६५ किमी दुरी पर स्थित है और ऋषिकेश रेलवे स्टेशन लगभग 80 किमी की दुरी पर स्थित है,
सड़क के द्वारा (By Road) - सुरकंडा देवी मंदिर प्रयटन स्थल धनोल्टी से ८ किमी दुरी पर मसूरी चंबा मोटर मार्ग पर कद्दूखाल नमक स्थान से २.५ किमी ऊपर पहाड़ी पर स्थित है जहा पैदल मार्ग से ही पंहुचा जा सकता है, नरेंद्र नगर से लगभग ६० किमी दुरी और नई टिहरी मुख्यालय से ४१ किमी की दुरी पर स्थित है, सुरकंडा देवी मंदिर के लिए ऋषिकेश, मसूरी, चम्बा और अन्य शहरो से आसानी से सड़क मार्ग से पंहुचा जा सकता है आसानी से टेक्सी सुविधाएँ उपलब्ध हो जाती है,
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