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September 10, 2021

मनसा देवी मंदिर (Mansa Devi Temple, Haridwar)

मनसा देवी मंदिर

(Mansa Devi Temple, Haridwar)

हरिद्वार शहर से लगभग 3 किमी दूर पहाड़ी पर स्थित है। हिंदू देवी मनसा देवी, यह मंदिर शिवालिक पहाड़ियों के बिल्व पर्वत पर स्थित है और इस मंदिर में देवी की दो मूर्तियाँ हैं। एक मूर्ती की पांच भुजाएं एवं तीन मुहं है एवं दूसरी अन्य मूर्ती की आठ भुजाएं हैं। 52 शक्तिपीठों(हिंदू देवी सती या शक्ति की पूजा किये जाने वाले स्थल) में से एक यह मंदिर सिद्ध पीठ त्रिभुज के चरम पर स्थित है। यह त्रिभुज माया देवी, चंडी देवी एवं मनसा देवी मंदिरों से मिलकर बना है। इस मंदिर में भ्रमण के दौरान भक्त एक पवित्र वृक्ष के चारों ओर एक धागा बांधते हैं एवं भगवान् से अपनी मनोकामना पूर्ण करने की प्रार्थना करते हैं। मनोकामना पूर्ण होने के बाद वृक्ष से इस धागे को खोलना आवश्यक है। पर्यटक इस मंदिर तक केबल कार द्वारा पहुँच सकते हैं। केबल कार यहाँ ‘देवी उड़नखटोला’ के नाम से प्रसिद्ध है।
Mansa Devi Temple, Haridwar

मनसा देवी के जन्म की दो कथाएं मिलती हैं।
एक कथा के मुताबिक भगवान शिव और पार्वती मानसरोवर में जल क्रीड़ा कर रहे थे। तब दोनों का तेज इकट्ठा होकर कमल के एक पत्ते पर जमा हो गया। जिसका संरक्षण करने के लिए वहां मौजूद पांच सर्पिणियों ने इस तेज को अपनी कुंडली में लपेट कर किया। समय आने पर महादेव और जगदंबा का यह तेज एक कन्या के रुप में बदल गया। जिसे बड़ी होने पर मनसा देवी के रुप में जाना गया।
दूसरी कथा के अनुसार एक बार भगवान शिव सुंदर योगी का रुप धारण करके धरती पर विचरण कर रहे थे। उनका सुंदर रुप देखकर कपड़े धो रही एक ग्रामीण स्त्री उनपर मोहित हो गई और उन्हें अपने वश में करने के लिए भगवान शिव के ही बनाए शाबर वशीकरण मंत्र का ही प्रयोग कर दिया। अपने बनाए तंत्र की मर्यादा रखने के लिए शिव उस स्त्री के वशीकरण पाश में बंध गए। इस संबंध से एक बच्ची उत्पन्न हुई, जो मनसा देवी के नाम से प्रसिद्ध हुईं। इस कथा के अनुसार मनसा माता का आधा अंश दैवी है तो आधा अंश मनुष्य का। बाद में जब मनसा देवी भगवान शिव और माता पार्वती के पास कैलाश पहुंचीं तो महादेव के गले में लटके नागराज वासुकि ने भगवान शिव से प्रार्थना की, कि मनसा देवी को नागलोक भेज दिया जाए। क्योंकि विश्व के प्रमुख अष्टनागों(अनंत, वासुकि, पद्य, महापद्य, तक्षक, कुलीर, कर्कोटक और शंख) की कोई बहन नहीं है। भगवान शिव ने वासुकि की बात मानते हुए उन्हें नागलोक का साम्राज्य प्रदान किया। इस प्रकार मनसा देवी संपूर्ण नाग जाति की बहन और पुत्री मानी गईं और संपूर्ण नागजाति को उनके अधिकार में माना जाता है। कोई भी सर्प उनके आदेश को टाल नहीं सकता है। नाग जाति पर मनसा देवी का एक बड़ा अहसान यह भी है कि भगवान कृष्ण के भांजे परीक्षित को तक्षक नाग ने जब डंस लिया तो उनके बेटे जनमेजय ने सर्प यज्ञ कराया। जिसकी वजह से दुनिया से सर्प जाति के विलुप्त होने लगी। इस यज्ञ को मनसा देवी के बेटे आस्तीक ने बंद करा दिया। जिसकी वजह से धरती पर सर्प जाति का अस्तित्व बचा।
मनसा देवी का आसन हंस माना जाता है। उनके मुकुट और अंगरक्षक के तौर पर विशिष्ट सर्प उन्हें घेरे हते हैं। उनके दो हाथो में अमृत भरा सफेद और विष भरा लाल कमल होता है। जिनके जरिए वो लोगों को उनके कर्मों के अनुसार फल प्रदान करती हैं। इनके सात नामों के जाप से सर्प का भय नहीं रहता। ये नाम इस प्रकार है जरत्कारू, जगतगौरी, मनसा, सियोगिनी, वैष्णवी, नागभगिनी, शैवी, नागेश्वरी, जरत्कारुप्रिया, आस्तिकमाता और विषहरी। हरिद्वार और चंडीगढ़ में मनसा देवी के विश्वप्रसिद्ध मंदिर है। मनसा देवी की उत्पत्ति से पहले धरती पर सर्पों की पूजा नहीं होती थी लेकिन मनसा देवी ने अपने पिता भगवान शिव से जिद करके मनुष्यों से सर्प पूजा शुरु कराई। जिसके बाद भारत के अलग अलग हिस्सों में कई जगह सर्प मंदिर भी बनाए गए। पश्चिम बंगाल में भी मनसा देवी की पूजा की परंपरा प्रचलित है।


कैसे पहुंचे (How to Reach Mansa Devi Temple) -

हवाई मार्ग द्वारा (By Air) -  निकटतम हवाई अड्डा जॉली ग्रांट (40 किमी) है जो की देहरादून में स्थित है।

ट्रेन द्वारा (By Train) -  सबसे नजदीकी रेलवे स्टेशन हरिद्वार रेलवे स्टेशन है जोकि मात्र ३.५ किमी की दुरी पर स्थित है।

सड़क मार्ग से (By Road) - मनसा देवी मंदिर हरिद्वार बस स्टैंड से लगभग ३.५ किमी की दुरी पर स्थित है और मुख्य सड़क से 3 किमी पैदल मार्ग से जा सकते है या फिर उड़न खटोला से आप सीधे मंदिर तक पहुंच सकते है।



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