चन्द्रबदनी देवी मंदिर
(Chandrabadni Temple, Tehri)
उत्तराखंड राज्य के टिहरी जिले के, हिंडोलाखाल विकासखंड में, चंद्रकूट पर्वत पर समुद्रतल से लगभग 8000 फुट की ऊँचाई पर, देवप्रयाग - टिहरी मोटर मार्ग तथा श्रीनगर - टिहरी मोटर मार्ग के बीच में स्थित है चंन्द्रबदनी मन्दिर जो की उत्तराखंड के सबसे लोकप्रिय धार्मिक स्थल में से एक है यह देवी सती के 52 शक्तिपीठों में से एक पवित्र हिन्दू मंदिर है। इस मंदिर को और भी आकर्षक बनाता है इसकी चोटी से सुरकंडा, केदारनाथ, बद्रीनाथ पर्वत की चोटी का बहुत ही मनमोहक दृश्य दिखना ।
मंदिर के गर्भगृह में एक शिला पर श्रीयंत्र बना हुआ है, जिसके ऊपर चाँदी का एक बड़ा छत्र रखा गया है। जगत गुरु शंकराचार्य ने श्रीयंत्र से प्रभावित होकर ही इस शिद्धपीठ की स्थापना की थी, मंदिर परिसर में माता की पूजा श्रीयंत्र के रूप में होती है। वैसे तो हर दिन दूर - दूर से श्रद्धालु यहाँ आते रहते हैं, परन्तु नवरात्रों में यहाँ हजारों की संख्या में भीड़ उमड़ती है, नवरात्रों की अष्टमी और नवमी के दिन नवदुर्गा के रूप में नों कन्याओं की यहाँ पूजा - अर्चना की जाती है, वैसे पूरे भारतवर्ष में कन्याओं को देवी का रूप ही मन जाता है। अप्रैल महीने में प्रत्येक वर्ष यहाँ एक भव्य मेले का आयोजन किया जाता है, जिसमें सभी भक्तगण माता के जयकारे लगाते हुये यहाँ पहुँचते है। मान्यता है कि जो भी भक्त यहाँ भक्तिभाव से मन्नतें माँगने आता है, माता उनकी मन्नतें को पूर्ण करती है जिसके फलस्वरूप भक्तगण मन्नते पूर्ण हो जाने पर कन्द, मूल , फल , अगरबत्ती , धूपबत्ती , चुनी , चाँदी के छतर आदि चढ़ा कर माँ के नाम के रूप में समर्पित करते हैं।
श्री चंद्रबदनी सिद्धपीठ की स्थापना की पौराणिक कथा मां सती से जुड़ी हुई है। एक बार सती के पिता राजा दक्ष ने यज्ञ का आयोजन किया, जिसमें उन्होंने भगवान शंकर को छोड़ देवता, ऋषि, मुनि, गंधर्व सभी को आमंत्रित किया। सती ने भगवान शंकर से वहां साथ जाने की इच्छा जाहिर की। भगवान शंकर ने उन्हें वहां न जाने की सलाह दी, परंतु वह मोहवश अकेली चली गईं। सती की मां के अलावा किसी ने भी वहां सती का स्वागत नहीं किया। यज्ञ मंडप में भगवान शंकर को छोड़कर सभी देवताओं का स्थान था। सती ने भगवान शंकर का स्थान न होने का कारण पूछा तो राजा दक्ष ने उनके बारे में अपमानजनक शब्द सुना डाले। जिस पर गुस्से में सती यज्ञ कुंड में कूद गईं। सती के भस्म होने का समाचार पाकर भगवान शिव वहां आए और दक्ष का सिर काट दिया। भगवान शिव विलाप करते हुए सती का जला शरीर कंधे पर रख कर तांडव करने लगे। उस समय प्रलय जैसी स्थिति आ गई। सभी देवता शिव को शांत करने के लिए भगवान विष्णु से आग्रह करने लगे। तब भगवान विष्णु ने अपना अदृश्य सुदर्शन चक्र शिव के पीछे लगा दिया। जहां-जहां सती के अंग गिरे वे स्थान शक्तिपीठ कहलाए। मान्यता है कि चंद्रकूट पर्वत पर सती का बदन (शरीर) गिरा, इसलिए यहां का नाम चंद्रबदनी पड़ा। कहते हैं कि आज भी चंद्रकूट पर्वत पर रात में गंधर्व, अप्सराएं मां के दरबार में नृत्य और गायन करती हैं।
भक्त कभी भी इस मूर्ति के दर्शन नहीं कर सकते। भक्त सिर्फ श्रीयंत्र के ही दर्शन करते हैं। चैत्र, आश्विन में अष्टमी और नवमी के दिन नवदुर्गा के रूप में नौ कन्याओं की यहां पूजा की जाती है। भारत में वैसे भी कन्याओं को देवी का स्वरूप कहा गया है। खास तौर पर उत्तराखंड में ये मान्यता अहम है। चन्द्रबदनी मंदिर सघन जंगलों और कई गुफाओं के बीच है। उत्तराखंड को वैसे भी अपनी मान्यताओं को चमत्कारों की वजह से देवभूमि कहा जाता है। इस भूमि पर आपको कदम कदम पर बड़े चमत्कार मिलेंगे। इन दैवीय चमत्कारों में से एक चमत्कार खुद मां चंद्रवदनी देवी का मंदिर है। कहा जाता है कि इस मंदिर में सच्चे दिल से मांगने पर मनचाहा आशीर्वाद मिलता है। देवी मां कभी भी किसी को खाली हाथ नहीं जाने देती। कुल मिलाकर कहें तो आपको मौका लगे तो एक बार जरूर देवी मां के इस मंदिर में जाएं।
कैसे पहुंचे (How to Reach Chandrabadni Devi Temple) -
हवाई मार्ग द्वारा (By Air) - निकटतम हवाई अड्डा जॉली ग्रांट (120 किमी) है जो की देहरादून में स्थित है।
ट्रेन द्वारा (By Train) - सबसे नजदीकी रेलवे स्टेशन ऋषिकेश रेलवे स्टेशन है जोकि 85 किमी की दुरी पर स्थित है।
सड़क मार्ग से (By Road) - चंद्रबदनी मंदिर देवप्रयाग से 33 किमी और श्रीनगर से 45 किमी दूर स्थित है। देवप्रयाग से हिंडोलाखल होते हुए और श्रीनगर से लछमोली-हिसरियाखाल होते हुए दोनों जगहों से पहुंचा जा सकता है। मुख्य सड़क से मंदिर तक १ किमी पहाड़ी पर पैदल मार्ग से पंहुचा जा सकता है, देवप्रयाग और श्रीनगर से चंद्रबदनी मंदिर पहुंचने के लिए टैक्सी सुविधाएँ उपलब्ध रहती है जो की किराये पर ली जा सकती है।
इतनी सरल भाषा में इतना गहराई से समझाने के लिए आपका धन्यवाद। मेरा यह लेख भी पढ़ें चंद्रबदनी मंदिर उत्तराखंड
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