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September 30, 2021

Ma Jwalpa Devi Temple, Pauri Garhwal (माँ ज्वाल्पा देवी मंदिर)

माँ ज्वाल्पा देवी मंदिर

 (Jwalpa Devi Temple, Pauri Garhwal)

उत्तराखंड के सबसे प्रमुख शक्तिपीठों मैं से एक है ज्वाल्पा देवी मंदिर, माता शक्ति को समर्पित शक्तिपीठ मैं माता की पूजा ज्वाल्पा रूप मैं की जाती है। पौड़ी-कोटद्वार मार्ग पर नवलिका नदी (नायर) के तट पर स्थित यह शक्तिपीठ पौड़ी गढ़वाल जिला मुख्यालय से ३५ किलोमीटर की दुरी पर स्थित है, ज्वाल्पा देवी मंदिर गढ़वाल के सबसे खूबसूरत धार्मिक स्थलों में से एक है। स्कंद पुराण की किंवदंतियों के अनुसार, राक्षस राजा पुलोम की बेटी - सुची इंद्र से शादी करना चाहती थी। इसलिए उन्होंने इस मंदिर में देवी शक्ति की पूजा की। देवी माँ भगवती उनके समक्ष ज्वाला रूप यानि अग्नि रूप मैं प्रकट हुई थी। एक अन्य मान्यता के अनुसार, आदि गुरु शंकराचार्य ने एक बार इस मंदिर में जाकर प्रार्थना की थी। उनकी प्रार्थना और भक्ति से संतुष्ट होकर देवी माँ ज्वाला रूप मैं उनके सामने प्रकट हुईं। ज्वाला रूप में दर्शन देने की वजह से इस स्थान का नाम ज्वालपा देवी पड़ा था। देवी माँ दीप्तिमान ज्वाला के रूप में जब से प्रकट हुई है तब से यहाँ पर अखंड दीपक निरंतर मंदिर में प्रज्ज्वलित रहती है। हर साल, लाखों लोग इस मंदिर में दर्शन के लिए आते हैं, विशेष रूप से अविवाहितायें, क्योंकि मान्यता ​​है कि ज्वालपा देवी के मंदिर मैं प्रार्थना करने से अविवाहित कन्याओं की सुयोग्य वर की कामना पूर्ण होती है,


ज्वाल्पा देवी मंदिर का इतिहास (History of Jwalpa Devi Temple)

पुराणों के अनुसार, सतयुग में दैत्यराज पुलोम की पुत्री शची ने देवराज इंद्र को पति रूप में प्राप्त करने के लिए नयार नदी के तट ज्वाल्पा धाम में हिमालय की अधिष्ठात्री देवी मां पार्वती की तपस्या की थी। मां पार्वती ने शची की तपस्या पर प्रसन्न होकर उसे ज्वाला यानि अग्नि के रूप में दर्शन देते हुए उसकी मनोकामना पूर्ण की। ज्वाला रूप में दर्शन देने के कारण इस स्थान का नाम ज्वाल्पा पड़ा। इसके अलावा एक और कथा अनुसार आदि गुरु शंकराचार्य ने इस स्थान पर माता की पूजा की थी, शंकराचार्य की पूजा से प्रसन्न होकर माता ने उनको ज्वाला रूप मैं दर्शन दिए, तब से ही माता की ज्वाला निरंतर जलती आ रही है। इसके अलावा एक स्थानीय कथा (Local Story of Jwalpa Devi Temple) भी प्रचलित है की पहले इस स्थान को अमकोटि के नाम से जाना जाता था यह आसपास के पट्टियों मवालस्यूं,  खातस्यूं, गुराडसयूं , कफोलस्यूं,  रिंगवाड़स्यूं और घुडदौडस्यूँ आदि कई गाँवों का रुकने का बिश्राम स्थल हुआ करता था, एक ग्रामीण जो की बिष्ट जाती के थे यहाँ पर नमक की बोरी लेकर ब्रिश्राम हेतु रुके, थोड़ी देर विश्राम करते करते उनकी आँख लग गयी और वे सो गए, कुछ समय बाद नींद खुली तो नमक की बोरी उठानी चाही तो बहुत भारी होने के कारण नहीं उठा पाए, उत्सुकता वस बोरी खोल कर देखा तो पाया इसमें माता की एक मूर्ति है, वे उस मूर्ति को वही छोड़ के चले गए, कुछ समय बाद अंनेथ गाँव के एक ग्रामीण को सपने मैं माता ने दर्शन दिए और उनकी मूर्ति बनाये जाने की इच्छा प्रकट की। ज्वाल्पा थपलियाल और बिष्ट जाति के लोगों की कुलदेवी है। इस दीप को निरंतर जलते रहने की परंपरा जारी रखते है कफोलस्यूं, मवालस्यूं, रिंगवाडस्यूं, खातस्यूं, घुड़दौड़स्यूं और गुराडस्यूं पट्टियों के गावों  के लोग। इन गांवों के लोग सरसों की खेती से अखंड दीप को प्रज्ज्वलित रखने के लिए तेल की व्यवस्था करते है। इस सिद्धपीठ में चैत्र और शारदीय नवरात्रों में विशेष पाठ का आयोजन होता है। लोगो का मानना है कि मां ज्वालपा का मंदिर धरती के सबसे जागृत मंदिरों में से एक है।

कैसे पहुंचे (How to Reach Ma Jwalpa Devi Temple) 

हवाई मार्ग से (By Air) - सबसे नजदीकी एयरपोर्ट जॉली ग्रांट एयरपोर्ट है जो की यहाँ से लगभग १४५ किमी की दुरी पर स्थित है । 
रेल मार्ग से (By Train) - सबसे नजदीकी रेलवे स्टेशन कोटद्वार है जो की यहाँ से ७३ किमी दुरी पर स्थित है।  
सड़क मार्ग से (By Road) - पौड़ी-कोटद्वार मार्ग पर स्थित है माँ ज्वाल्पा देवी का सिद्धपीठ जोकि कोटवार से ७३ किमी और पौड़ी से ३३ किमी की दुरी पर और सतपुली से २० किमी की दुरी पर स्थित है, मंदिर मुख्य सड़क से १०० मीटर की दुरी पर है, यह मंदिर सड़क मार्ग से सभी बड़े छोटे शहरों से पूरी तरह जुड़ा हुआ है, आप यहाँ के लिए आसानी से कोटद्वार, पौड़ी, सतपुली से सार्वजानिक परिवहन या टेक्सी ले सकते है जोकि आसानी से उपलब्ध है, दिल्ली से सीधे पौड़ी की बस लेकर भी आप इस स्थान पर उतर सकते है। 



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