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October 12, 2021

Uttarakhand Most Popular Fairs/Festival (उत्तराखंड के प्रमुख मेले / त्यौहार / कौथिग)

उत्तराखंड के प्रमुख मेले / कौथिग (Uttarakhand Popular Fairs)

रंगीलो कुमाऊं अर छबीलो गढ़वाल ऐसो है हमारा उत्तराखंड यानि मेरा उत्तराखंड जो अपनी संस्कृति के लिए प्रख्यात है, उन्ही संस्कृतियों की झलकियां देखने मिलती यहाँ के त्योहारों, मेलों मैं, यहाँ के मेलों मैं गढ़वाल और कुमाऊं की संस्कृति बस्ती है, हरे भरे गढ़वाल और रंगबिरंगे कुमाऊं के मेलों मैं उत्तराखंड का सांस्कृतिक स्वरूप निखरता है, धर्म, संस्कृति और कला के व्यापक सामंजस्य के कारण उत्तराखंड मैं मनाये जाने वाले त्यौहार और मेलों की प्रकृति बहुत ही कलात्मक होती है, यहाँ पर मेलों को कौथिग भी कहा जाता है, उत्तराखंड मैं अधिकतर मेले देवी देवताओं के सम्मान मैं आयोजित किये जाते है तो कुछ पौराणिक, सांस्कृतिक झलक, व्यापारिक महत्त्व रखते है, पूरे उत्तराखंड में सैकड़ों मेलों का आयोजन किया जाता है जिसमें लोक जीवन, लोक नृत्य, गीत और परंपराओं की भागीदारी सुनिश्चित की जाती है। उत्तराखंड मैं कहीं भी मेले का आयोजन हो रहा है, उसका वातावरण कुछ भी हो, उसका परिवेश जो भी हो, चाहे अवसर ऐतिहासिक, सांस्कृतिक, धार्मिक हो या कोई अन्य, ग्रामीण आज भी उल्लास के साथ इन मेलों मैं बढ़ चढ़कर हिस्सा लेते रहते है, ये मेले उनकी संस्कृति, उनके धार्मिक आस्था, उनके लोग, उनके अपने रंग, उनके उत्साह, उनके परिवार को एक दूसरे से मिलाने का काम करती है। तो आइये बात करते है उत्तराखंड मैं लगने वाले कुछ बहुत चर्चित या प्रमुख मेलों के बारे मैं -


कुंभ मेला हरिद्वार (Kumbh Fair, Haridwar) -

उत्तराखंड के हरिद्वार मैं लगता है हिन्दुओं की आस्था का सबसे बड़ा व लोकप्रिय पर्व महा कुम्भ मेला, लाखों करोडो भक्त गंगा के पवित्र जल में डुबकी लगाने हेतु यहाँ पहुंचते है, यह महायोजन हर ६ और १२ वर्षों मैं आयोजित होता है १२ वर्ष बाद कुम्भ और ६ वर्ष बाद अर्धकुम्भ का आयोजन होता है, जोकि मकरसंक्रांति को शुरू होकर लगभग तीन महीने तक चलता है हिंदू पौराणिक कथाओं के अनुसार, हरिद्वार उन चार स्थानों में से एक है जहां देवताओं और राक्षसों के बीच युद्ध के दौरान अमृत गिरा था, और यही कारण है कि हरिद्वार की इस भूमि को धन्य माना जाता है।

नंदा देवी मेला (Ma Nanda Devi Fair, Uttarakhand) - 

नंदा देवी, हिमालय की बेटी और भगवान शिव की पत्नी हैं। माँ नंदा देवी समस्त उत्तराखंड की इष्टदेवी है और हिन्दुओं की माँ नंदा मैं बहुत बड़ी आस्था है, माँ नन्दा की पूजा गढ़वाल में नौटी, कुरुड़, दसोली, बधाणगढी, हिंडोली, तल्ली दसोली, सिमली, देवराड़ा, बालपाटा, कांडई दशोली, चांदपुर, गैड़लोहवा आदि स्थानों में बड़ी धूम धाम से होती है। गढ़वाल में माँ नंदा की राज जात यात्रा का १२ वर्षों मैं आयोजन होता है, साथ ही अल्मोड़ा मैं नंदा देवी का मंदिर है, जहाँ हर वर्ष भाद्र शुक्ल अष्टमी के अवसर पर तीन दिवसीय माँ नंदा देवी के मेले का आयोजन बड़ी धूमधाम से किया जाता है। 


देवीधुरा का बगवाल मेला (Devidhura Bagwal Fair, Champawat) - 

उत्तराखंड के चंपावत जिले के लोहाघाट से 45 किमी की दूरी पर स्थित देवीधुरा में मां वारही देवी मंदिर में बगवाल मेला मनाया जाता है। देवीधुरा अल्मोड़ा, पिथौरागढ़ और नैनीताल जिलों के त्रिकोण को भी चिह्नित करता है और अपनी समृद्ध सांस्कृतिक विरासत के लिए प्रसिद्ध है। बगवाल मेला एक ऐसा सांस्कृतिक मेला है जिसे बड़े उत्साह और भक्ति के साथ मनाया जाता है। यह मेला रक्षा बंधन की दिन श्रावण मास की पूर्णिमा को बड़े हर्षोउल्लास के साथ मनाया जाता है। 

कांवड़ मेला (Kanwad Mela, Haridwar, Rishikes, Neelkanth, Gangotri, Gaumukh) - 

हर साल श्रावण मास में लाखों की तादाद में कांवडिये सुदूर स्थानों से आकर गंगा जल से भरी कांवड़ लेकर पदयात्रा करके अपने गांव वापस लौटते हैं इस यात्राको कांवड़ यात्रा बोला जाता है . श्रावण की चतुर्दशी के दिन उस गंगा जल से अपने निवास के आसपास शिव मंदिरों में शिव का अभिषेक किया जाता है. कहने को तो ये धार्मिक आयोजन भर है, लेकिन इसके सामाजिक सरोकार भी हैं. कांवड के माध्यम से जल की यात्रा का यह पर्व सृष्टि रूपी शिव की आराधना के लिए है.

गेंद मेला (Gend Mela, Pauri Garhwal) 

उत्तराखंड राज्य के जनपद पौड़ी गढ़वाल के यमकेश्वर व दुगड्डा व द्वारीखाल आदि ब्लाक के कुछ स्थानों में मकरसंक्रांति को एक अनोखा खेल खेला जाता है | इस खेल का नाम ही गेंद मेला, यह एक सामूहिक शक्ति परीक्षण का मेला है, दो पट्टियों के बीच खेला जाता है यह अनोखा खेल, चमड़े से बनी बॉल को अपने क्षेत्र मैं पहुंचने का खेल है, उत्तराखंड के पौड़ी जिले के कई क्षेत्रों में आज भी इन मेलो की लोकप्रियता काम नहीं हुई है।  

फूल देई उत्सव (Fuldei Festival) - 

उत्तराखंड राज्य मैं फसल उत्सव के रूप में जाना जाता है फुल देई का शुभ लोक त्योहार है जो राज्य में वसंत के मौसम के स्वागत मैं मनाया जाता है। यह त्योहार हिंदू महीने चैत्र के पहले दिन मनाया जाता है। फूल देई फूलों और वसंत ऋतु के बारे में है। यह त्यौहार विशेष रूप से बच्चो द्वारा मनाया जाता है जिसमे बच्चे सुबह सुबह जंगलो से फूल तोड़कर गांव के सभी परिवारों के चौखट पर फूल ड़ाल कर मनाया जाता है साथ मैं बच्चे कुछ लाइनों को गाकर चलते है - फूलदेई, छम्मा देई जतुकै देला, उतुकै सही दैणी द्वार, भर भकार। 


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