नवीनतम अद्यतन

October 7, 2021

Navratri 2021 :: जय माता दी - नवरात्र में माँ भगवती के ९ स्वरूपों की पूजा की जाती है

जय माता दी - नवरात्र में माँ भगवती के ९ स्वरूपों की जानकारी

Happy Navratri 2021

सात अक्टूबर दिन गुरुवार से सुरु होने जा रहे है शारदीय नवरात्र हिन्दुओं का पावन नवरात्र पर्व। इस वर्ष दो तिथियों के एक होने से इस वर्ष नवरात्र ८ दिन के होंगे, नवरात्र साल मैं चार बार आते है जिनमे दो नवरात्र गुप्त होते है और दो नवरात्र एक चैत्र नवरात्र और दूसरा शारदीय नवरात्र होता है इन नवरात्रों मैं माँ दुर्गा के ९ स्वरूपों की पूजा की जाती है, यह हिन्दुओं का पावन पर्व है, हिन्दू धर्म मैं नवरात्र का विशेष महत्त्व होता है, नवरात्रों मैं माँ भवानी के ९ स्वरूपों शैलपुत्री, ब्रह्मचारिणी, चंद्रघंटा, कूष्माण्डा, स्कंदमाता, कात्यायनी, कालरात्रि, महागौरी, सिद्धिदात्री की पूजा की जाती है, आइये जानते है माँ दुर्गा के इन ९ स्वरूपों के बारे मैं -

एक श्लोक से शुरू करते है -
प्रथमं शैलपुत्री च द्वितीयं ब्रह्मचारिणी।
तृतीयं चन्द्रघण्टेति कूष्माण्डेति चतुर्थकम् ।।
पंचमं स्कन्दमातेति षष्ठं कात्यायनीति च।
सप्तमं कालरात्रीति महागौरीति चाष्टमम् ।।
नवमं सिद्धिदात्री च नवदुर्गा: प्रकीर्तिता:।
उक्तान्येतानि नामानि ब्रह्मणैव महात्मना ।।

ऐसे करें पूजास्थली की स्थापना - 

पूजा स्थल में तांबे या मिट्टी का कलश स्थापित किया जाता है, जो लगातार 9 दिन तक एक ही स्थान पर रखा जाता है। पूजास्थली के लिए गंगा जल, नारियल, लाल कपड़ा, मौली, रौली, चंदन, पान, सुपारी, धूपबत्ती, घी का दीपक, ताजे फल, फूल माला, बेलपत्रों की माला, एक थाली में साफ चावल ले कर स्थापना करें। पूजास्थली की स्थानपना का बहुत ही शुभ समय प्रातः 6 बजकर 10 मिनट से 7 बजकर 16 मिनट तक है साथ ही आप ९ बजकर २७ मिनट से ११ बजकर ४६ मिनट तक भी पूजास्थली की स्थापना कर सकते है।   


७ अक्टूबर - प्रथम च शैलपुत्री -

वन्दे वांछितलाभाय चन्द्रार्धकृतशेखरम्।
वृषारूढां शूलधरां शैलपुत्रीं यशस्विनीम्।।

नवरात्र मैं पहले दिन माँ के प्रथम स्वरूप मैं माँ शैलपुत्री की पूजा की जाती है। माता के एक हाथ में त्रिशूल और दूसरे हाथ में कमल का पुष्प विराजमान है। माँ नंदी नामक बैल पर सवार है और पुरे हिमालय पर विराजमान है। यह वृषभ वाहन शिव का ही स्वरूप है। घोर तपस्चर्या करने वाली शैलपुत्री समस्त वन्य जीव जंतुओं की रक्षक माता भी है। माँ शैलपुत्री उन समस्त भक्तगणों की इष्ट देवी माता है जो योग, साधना-तप और अनुष्ठान के लिए पर्वतराज हिमालय की शरण लेते है।

८ अक्टूबर - देवी ब्रह्मचारिणी - 

दधाना कपाभ्यामक्षमालाकमण्डलू।
देवी प्रसीदतु मयि ब्रह्मचारिण्यनुत्तमा।
नवदुर्गाओं में दूसरी दुर्गा का नाम माँ ब्रह्मचारिणी है। माँ ब्रह्मचारिणी की पूजा नवरात्र के दूसरे दिन की जाती है। माँ ब्रह्मचारिणी इस लोक के समस्त चर और अचर जगत की विद्याओं की ज्ञाता है। इनका स्वरूप श्वेत वस्त्र में लिप्टी हुई कन्या के रूप में है, जिनके एक हाथ में अष्टदल की माला और दूसरे हाथ में कमंडल है। यह अक्षयमाला और कमंडल धारिणी ब्रह्मचारिणी नामक दुर्गा शास्त्रों के ज्ञान और निगमागम तंत्र-मंत्र आदि से संयुक्त है। अपने भक्तों को यह अपनी सर्वज्ञ संपन्न विद्या देकर विजयी बनाती हैं। ब्रह्मचारिणी का स्वरूप बहुत ही सादा और भव्य है। अन्य देवियों की तुलना में वह अतिसौम्य, क्रोध रहित और तुरंत वरदान देने वाली देवी है।


९ अक्टूबर - देवी चंद्रघण्टा

पिण्डज प्रवरारूढ़ा चण्डकोपास्त्रकैर्युता।
प्रसादं तनुते महयं चन्द्रघण्टेति विश्रुता।।
मां दुर्गा की तीसरे स्वरूप का नाम चंद्रघण्टा है। नवरात्र के तीसरे दिन माँ देवी चन्द्रघण्टा की पूजा की जाती है। इनका स्वरूप परम शांतिदायक और कल्याणकारी है। इनके मस्तक में घंटे के आकार का अर्धचंद्र है। इसी कारण इस देवी का नाम चंद्रघण्टा पड़ा है। इनके शरीर का रंग स्वर्ण के समान चमकीला और वाहन सिंह है। इनकी उपासना से भक्तगण समस्त सांसारिक कष्टों से छूटकर सहज ही परमपद के अधिकारी बन जाते हैं। इनके 10 हाथों में कमल, धनुष, बाण, कमंडल, तलवार, त्रिशूल और गदा जैसे अस्त्र है। इनके कंठ में श्वेत पुष्प की माला और शीर्ष पर रत्नजड़ित मुकुट विराजमान है।

९ अक्टूबर -  देवी कूष्माण्डा 

सुरासंपूर्णकलशं, रुधिराप्लुतमेव च।
दधाना हस्तपद्माभ्यां, कूष्मांडा शुभदास्तु मे।।
नवरात्री के चौथे दिन पूजा होती है माँ कूष्माण्डा की,  कूष्माण्डा देवी ब्रह्मांड से पिण्ड को उत्पन्न करने वाली दुर्गा कहलाती है। अपनी मंद हल्की हंसी से ब्रह्मांड को उत्पन्न करने के कारण इनका नाम कूष्माण्डा पड़ा। दुर्गा माता का यह चैथा स्वरूप है। इसलिए नवरात्र में चतुर्थी तिथि को इनकी पूजा होती है। लौकिक स्वरूप में यह बाघ की सवारी करती हुई, अष्टभुजाधारी, मस्तक पर रत्नजटित स्वर्ण मुकुट वाली, एक हाथ में कमंडल और दूसरे हाथ में कलश लिए हुए उज्जवल स्वरूप की दुर्गा है। इनके अन्य हाथों में कमल, सुदर्शन, चक्र, गदा, धनुष बाण और अक्षमाला विराजमान है।

१० अक्टूबर - देवी स्कंदमाता

सिंहासानगता नितयं पाश्रितकरद्वया।
शुभदास्तु सदा देवी स्कन्दमाता यशस्विनी।। 
पांचवे स्वरूप मैं पूजा होती है माँ स्कन्दमाता की, कल्याणकारी माता शक्ति की अधिष्ठात्री देवी को पांचवी दुर्गा स्कंदमाता के रूप में पूजा जाता है। अपने सांसारिक स्वरूप में यह देवी सिंह पर विराजमान है। इस दुर्गा का स्वरूप दोनों हाथों में कमलदल लिए हुए और एक हाथ से अपनी गोद में ब्रह्मस्वरूप सनत्कुमार को थामे हुए है। यह दुर्गा समस्त ज्ञान, विज्ञान, धर्म, कर्म और कृषि उद्योग संहित पंच आवरणों से समाहित विद्यावाहिनी दुर्गा भी कहलाती है।। 

११ अक्टूबर - देवी कात्यायनी 

चन्द्रहासोज्जवलकरा शाईलवरवाहना।
कात्यायनी शुभं दद्याद्देवी दानवघातिनी।।
मां दुर्गा के छठे स्वरूप को माँ कात्यायनी कहते हैं। कात्यायनी महर्षि कात्यायन की कठिन तपस्या से प्रसन्न होकर उनकी इच्छानुसार उनके यहां पुत्री के रूप में पैदा हुईं थीं। महर्षि कात्यायन से सर्वप्रथम इनकी पूजा की थी, इसलिए ये कात्यायनी के नाम से प्रसिद्ध हुईं। मां कात्यायनी अमोघ फलदायिनी है। यह दुर्गा देवताओं के और ऋषियों के कार्यों को सिद्ध करने के लिए महर्षि कात्यायन के आश्रम में प्रकट हुईं थीं। अपने सांसरिक स्वरूप में यह शेर यानि सिंह पर सवार चार भुजाओं वाली सुसज्जित आभा मंडल युक्त देवी कहलाती है। इनके बाएं हाथ में कमल और तलवार दाहिने हाथ में स्वस्तिक और आर्शीवाद का मुद्रा अंकित है।

१२ अक्टूबर - कालरात्रि 

एक वेधी जपाकरर्णपूरा नग्ना खरास्थित ।
लम्बोष्ठी कर्णिकाकणी तैलाभयुक्तशरीरिणी ।।
वामपदोल्लसल्लोहलताकण्टक भूषणा।
वर्धनमूर्धध्वजा कृष्णा कालरात्रिर्भयंकारी।।
अपने महा विनाशक गुणों से शत्रुओं और दुष्टों का संहार करने वाली सातवीं दुर्गा का नाम कालरात्रि है। विनाशिका होनें के कारण इनका नाम कालरात्रि पड़ा। आकृति और सांसरिक स्वरूप में यह कालिका का अवतार यानि काले रंग रूप और अपनी विशाल केश राशि को फैलाकर चार भुजाओं वाली दुर्गा है जो वर्ण और वेश में अर्द्धनारीशवर शिव की तांडव मुद्रा में नजर आती हैं। इनकी आंखों से अग्नि की वर्षा होती है। एक हाथ में शत्रुओं की गर्दन पकड़कर और दूसरे हाथ में खड़क तलवार से युद्ध स्थल में उनका नाश करने वाली कालरात्रि अपने विकट रूप में नजर आती है। इनकी सवारी गर्दभ यानि गधा है। जो समस्त जीवजन्तुओं में सबसे ज्यादा परिश्रमी और निर्भय होकर अपनी अधिष्ठात्री देवी कालराात्रि को लेकर इस संसार में विचरण करा रहा है।

१३ अक्टूबर - महागौरी 

श्वेते वृषे समारूढा, श्वेताम्बरधरा शुचि:।
महागौरी शुभं दद्यात्, महादेवप्रमोद दाद।।
नवरात्र के आठवें दिन मां महागौरी की पूजा की जाती है। अपनी तपस्या से इन्होंने गौर वर्ण प्राप्त किया था। उत्पत्ति के समय यह आठ वर्ष की आयु की थी। इसलिए उन्हें नवरात्र के आठवें दिन पूजा जाता है। अपने भक्तों के लिए यह अन्नपूर्णा स्वरूप है। यह धन वैभव और सुख शांति की अधिष्ठात्री देवी है। सांसारिक रूप में इनका स्वरूप बहुत ही उज्जवल कोमल, श्वेतवर्ण और श्वेत वस्त्रधारी है। देवी एक हाथ में त्रिशूल और दूसरे हाथ में डमरू लिए हुए है। देवी महागौरी को गायन-संगीत प्रिय है और यह सफेद वृषभ यानि बैल पर सवार है। इन दिन कन्या पूजन का भी विधान है। कुछ लोग नवमी के दिन भी कन्या पूजन करते है लेकिन अष्ठमी के दिन कन्या पूजना करना श्रेष्ठ रहता है। कन्याओं की संख्या 9 हो तो अति उत्तम है, नहीं तो दो कन्याओं के साथ भी पूजा की जा सकती है।

१४ अक्टूबर - देवी सिद्धिधात्री

सिद्धगंधर्वयक्षाद्यैरसुरैररमरैरपि।
सेव्यमाना सदा भूयात सिद्धिदा सिद्धिदायिनी।।
सिद्धि और मोक्ष देने वाली दुर्गा को सिद्धिदात्री कहा जाता है। यह देवी भगवान विष्णु की प्रियतमा लक्ष्मी के समान कमल के आसन पर विराजमान है। हाथों में कमल, शंख, गदा, सुदर्शन चक्र धारण किए हुए है। नवें दिन सिद्धिदात्री की पूजा करने के लिए नवाहन का प्रसाद और नवरस युक्त भोजन और नौ प्रकार के फल फूल आदि का अर्पण करके नवरात्र का समापन करना चाहिए। सिद्धिदात्री देवी सरस्वती का भी स्वरूप है।

१५ अक्टूबर - विजयादशमी अपराजिता पूजन 

वियज दशमी को ही अपराजिता पूजा का पर्व भी कहते है। नवदुर्गाओं की माता अपराजिता सम्पूर्ण ब्रह्मांड की शक्तिदायिनी और ऊर्जा उत्सर्जन करने वाली है। देवी अपराजिता का पूजन तब से शुरू हुआ जब चारों युगों की शुरूआत हुई थी। देवी की पूजा के समय रात्रिकाल में शिव और पार्वती सहित गणेश की पूजा करनी भी जरूरी है। देवी के पाठ में स्तोत्र श्लोक और स्तुति गान के पाठ की व्यवस्था मार्कण्डेय पुराण सहित दुर्गासप्तशती में दी गई है। दुर्गा की पूजा में बैठने के लिए उनकी मूर्ति या चित्र को अपने आसन से अधिक ऊंचे आसन में रखना जरूरी है। वहीं, दशहरे के पूजन का समय पूर्वाह्न 11:30 बजे से दोपहर 2:30 बजे तक का है।



यह भी पढ़ें - उत्तराखंड के लोकप्रिय देवी मंदिर (Famous Devi Temples in Uttarakhand)



Tags : #Navratri, #JaiMataDi, #Navdurga, #Devi Ma, #Durgama,

No comments:

Post a Comment