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September 18, 2021

विश्वनाथ मंदिर, गुप्तकाशी (Vishwanath Temple- Guptkashi)

विश्वनाथ मंदिर, गुप्तकाशी 

(Vishwanath Temple, Guptkashi)


उत्तराखंड के जिला रुद्रप्रयाग के शहर गुप्तकाशी में एक मंदिर विख्यात है जिसका नाम है विश्वनाथ मंदिर। यह मंदिर समुद्रतट से 1319 मीटर की ऊँचाई पर स्थित भगवान शिव के पवित्र धाम केदारनाथ से गुप्तकाशी मात्र 47 किमी नीचे की ओर स्थित है। यह शहर उत्तराखंड का पवित्र शहर है यह मंदाकिनी नदी के समीप स्थित है। पौराणिक कथा अनुसार कौरवों और पांडवों में जब युद्ध हुआ तो वहाँ पर पांडवों ने कई व्यक्तियों को और अपने भाइयों का भी वध कर दिया था तो उसी वध के कारण उन्हें बहुत सारे दोष लग गए थे। पांडवों को उन्हीं दोषों के निवारण करने के लिए भगवान शिव से माफ़ी मांग उनका आशीर्वाद लेना था, लेकिन वह पांडवों से रुष्ठ हो गए थे क्योंकि उस युद्ध के दौरान पांडवों ने भगवान शिव के भी भक्तों का वध कर दिया था। उन्हीं दोषों से मुक्ति पाने के लिए पांडवों ने पूजा-अर्चना की और भगवान शंकर के दर्शन करने के लिए निकल पड़े। भगवान शिव हिमालय के इसी स्थान पर ध्यान मग्न थे और जब भगवान को पता चला कि पांडव इसी स्थान पर आ रहे है तो वह यहीं बैल नंदी का रूप धारण कर अंतर्ध्यान हो गए या यूं कहें गुप्त हो गए इसलिए इस जगह का नाम गुप्तकाशी पड़ा। यह मंदिर उन्हीं का प्रतीक है।

पौराणिक कथा अनुसार कौरवों और पांडवों में जब युद्ध हुआ, तो वहाँ पर पांडवों द्वारा अपने ही भाई-बंधुओ का भी वध कर दिया था तो उसी कारण उन्हें बहुत सारे दोष लग गए थे। पांडवों को उन्हीं दोषों के निवारण हेतु भगवान शिव से माफ़ी मांग कर उनका आशीर्वाद लेना था, लेकिन शिव पांडवों से रुष्ठ हो गए थे क्योंकि उस युद्ध के दौरान पांडवों ने भगवान शिव के भी कई भक्तों का वध कर दिया था। उन्हीं दोषों से मुक्ति पाने के लिए पांडवों ने पूजा-अर्चना की और भगवान शंकर के दर्शन करने के लिए निकल पड़े। भगवान शिव हिमालय के इसी स्थान पर ध्यान मग्न थे और जब भगवान को पता चला कि पांडव इसी स्थान पर आ रहे है तो वह यहीं बैल नंदी का रूप धारण कर अंतर्ध्यान हो गए या यूं कहें गुप्त हो गए इसलिए इस जगह का नाम गुप्तकाशी पड़ा। यह मंदिर उन्हीं का प्रतीक है। इसके बाद भगवान शिव विलुप्त होकर पंचकेदार यानि मदमहेश्वर, रुद्रनाथ, तुंगनाथ, कल्पेश्वर और केदारनाथ में अनेकों भागों में प्रकट हुए। इसलिए इस मंदिर की भी उतनी ही मान्यता है जितनी कि पंचकेदार की। यहाँ एक अन्य मंदिर स्थित है अर्धनारीश्वर यानि आधा पुरूष, आधा नारी। यह भगवान शिव और माता पार्वती को समर्पित है। माना जाता है कि भगवान शिव ने माता पार्वती के समक्ष विवाह का प्रस्ताव यहीं रखा था और उसके ततपश्चात विवाह त्रियुगीनारायण में सम्पन्न हुआ था, इस मंदिर की स्थापत्य शैली भी उत्तराखंड में अन्य मंदिरों के समान है, केदारनाथ मंदिर जैसा यह मंदिर जिसमे प्रवेश द्वार पर दोनों ओर दो द्वारपाल है और बाहरी मुखौटा कमल के साथ चित्रित किया गया है। प्रवेश द्वार के सर्वोच्च पर भैरव की एक छवि है, जो कि भगवान शिव का एक भयानक रूप है। मंदिर परिसर में एक कुंड है जिसे मणिकर्णिका कुंड कहा जाता है। जो कि एक पवित्र कुंड है। जहाँ दो जल धाराएं सदैव बहती रहती है। इस कुंड का जल गंगा (भागीरथी) और यमुना नदी का प्रतिनिधित्व करती है। यमुना नदी का पानी गोमुख से उत्पन्न होता है और भागीरथी नदी का पानी रणलिंग से हाथी के सूंड से बहता है। भगवान विश्वनाथ जी का यह मंदिर बहुत ही सुंदर है साथ में अर्द्धनारीश्वर मंदिर है और बाहर विराजमान है नंदिदेव।

कैसे पहुंचे -  

हवाई मार्ग से – यहाँ का सबसे नजदीकी हवाई अड्डा जॉली ग्रांट है जो की गुप्तकाशी से 190 किमी की दूरी पर स्थित है सड़क मार्ग द्वारा जुड़ा हुआ है, 
रेल मार्ग से – सबसे नजदीकी रेलवे स्टेशन ऋषिकेश और हरिद्वार है जो की यहाँ से लगभग 168 किमी की दूरी पर स्थित है 
सड़क मार्ग से – गुप्तकाशी सड़क मार्ग द्वारा राज्य के सभी बड़े शहरों से एन एच 109 द्वारा जुड़ा हुआ है यहाँ के लिए आपको दिल्ली से भी उत्तराखंड परिवहन निगम की सीधी बस सर्विस मिलती है और ऋषिकेश से किसी भी समय सर्विस उपलब्ध रहती है।  

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