ताड़केश्वर महादेव मंदिर
(Tadkeswar Mahadev Temple, Lansdowne)
लैंसडाउन से 38 किमी की दूर, समुन्द्र तल से 1800 मीटर की ऊंचाई पर स्थित यह ताड़केश्वर महादेव मंदिर देवदार के पेड़ों और शांत वातावरण से घिरा हुआ है, जोकि भगवान शिव को समर्पित, हिन्दुओं की आस्था का प्रतिक है, मंदिर परिसर मैं एक कुंड भी है, मान्यताओं के अनुसार देवी लक्ष्मी ने इस कुंड को खोदा था, इस जल से भगवान शिव का अभिषेक किया जाता है, भगवान शिव को प्रशन्न करने के लिए तारकासुर नमक राक्षस ने इसी जगह पर तपस्या की थी और अमरता का वरदान पाया था, कार्तिकेय द्वारा जब तारकासुर का वध किया गया तो उसने फिर माफ़ी मांगने हेतु इसी स्थान पर तपस्या की थी तभी से इस स्थान का नाम तारकेश्वर हुआ। पहले ताड़केश्वर महादेव मंदिर में एक शिवलिंग मौजूद था, लेकिन अब तांडव करने वाली एक भगवान शिव की मूर्ति की पूजा की जाती है। यह भगवान शिव की मूर्ति कुछ साल पहले उसी स्थान पर खोजी गई थी जहां शिवलिंग मौजूद था। कई भक्तों का मानना था कि भगवान शिव अभी भी वहां हैं और गहरी नींद में हैं। हजारों घंटियों ने मंदिर को घेर लिया जो भक्तों द्वारा चढ़ाया जाता है।
पौराणिक कथाओ अनुसार - भगवान शिव 'महादेव' के साथ एक राक्षस 'तारकेश्वर या ताड़केश्वर' का नाम जोड़कर जाना जाता है, तारकेश्वर महादेव भगवान शिव के प्रति गहरी आस्था और भक्ति का मंदिर है। किंवदंतियों के अनुसार, तारकासुर एक राक्षस था जिसने एक वरदान के लिए इस स्थान पर भगवान शिव का ध्यान और पूजा की थी। तारकासुर की अपार भक्ति और पूजा से प्रसन्न होकर, भगवान शिव ने तारकासुर को भगवान शिव के पुत्र को छोड़कर अमरता का वरदान दिया भगवान् शिव ने तरकारसुर को एक वरदान दिया की उनके पुत्र के अलावा उसका का कोई वध नहीं कर पायेगा। तारकासुर ने भगवान शिव के इस अमरता (क्योंकि तारकासुर जनता था की भगवन शिव बैराग्य जीवन व्यतीत करते है) का वरदान स्वीकार कर लिया। तारकासुर ने संतों को मारकर और पृथ्वी पर शांतिपूर्ण वातावरण को नष्ट करके हाहाकार मचाना शुरू कर दिया । संतों और ऋषियों ने भगवान शिव से मदद मांगी। तारकासुर के गलत कार्यों से परेशान होकर भगवान शिव ने पार्वती से विवाह किया और कार्तिकेय का जन्म हुआ। कार्तिकेय ने जल्द ही तारकासुर को मार डाला लेकिन मृत्यु के समय तारकासुर ने भगवान शिव से प्रार्थना की और क्षमा मांगी। तब महादेव ने अपना नाम उस मंदिर से जोड़ दिया जहां तारकासुर ने एक बार तपस्या की थी और उन्हें कलयुग में भी प्रार्थना करने का वरदान दिया था। उस स्थान का नाम ताड़केश्वर है।
वहीं ये भी माना जाता है कि ताड़कासुर से युद्ध व कार्तिकेय द्वारा उसका वध किए जाने के बाद भगवान शिव ने यहां पर विश्राम किया था। विश्राम के दौरान भगवान शिव पर सूर्य की तेज किरणें पड़ रही थीं। भगवान शिव पर छाया करने के लिए स्वयं माता पार्वती सात देवदार के वृक्षों का रूप धारण कर वहां प्रकट हुईं। इसलिए आज भी मंदिर के पास स्थित 7 देवदार के वृक्षों को देवी पार्वती का स्वरूप मानकर पूजा जाता है।
कैसे पहुंचे -
यहाँ पहुंचने के लिए आपको कोटद्वार से लैंसडौन जो की सड़क मार्ग से सभी प्रमुख शहरों से जुड़ा हुआ है, सबसे नजदीकी रेलवे स्टेशन कोटद्वार मैं ही है, ताड़केश्वर महादेव मंदिर लैंसडाउन से 38 किलोमीटर की दूरी पर स्थित है, और लैंसडाउन से गुंडलखेत गांव तक आसानी से पहुंचा जा सकता है। गांव से मंदिर सिर्फ 1 किमी आगे है जिसे आसानी से ट्रेक किया जा सकता है।
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