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September 8, 2021

Hiljatra Festival, Pithoragarh (हिलजात्रा पर्व)- आस्था, विश्वास, रहस्य और रोमांच का प्रतीक

हिलजात्रा पर्व 

(Hiljatra Festival, Pithoragarh)

दिखती है पहाड़ की विरासत, आस्था, विश्वास, रहस्य और रोमांच का प्रतीक

उत्तराखंड के पिथौरागढ़ में एक लोकपर्व आज भी आस्था, विश्वास, रहस्य और रोमांच का प्रतीक हैं, जहां आज भी पहाड़ की सांस्कृतिक विरासत को दर्शाया जाता हैं और लोगों को एकता के सूत्र में भी बांधता हैं. ऐसी ही एक पर्व है सोरघाटी पिथौरागढ़ का ऐतिहासिक हिलजात्रा, जो यहां 500 साल से मनाया जा रहा है. पहाड़ों में हिलजात्रा को कृषि पर्व के रूप में मनाने की परम्परा सदियों से चली आ रही है. सातू-आंठू से शुरू होने वाले कृषि पर्व का समापन में पिथौरागढ़ में हिलजात्रा के रूप में होता है. इस अनोखे पर्व में बैल, हिरन, लखिया भूत जैसे दर्जनों पात्र मुखौटों के साथ मैदान में उतरकर देखने वालों को रोमांचित कर देते हैं. हिलजात्रा सोर, अस्कोट और सीरा परगना में ही मनाया जाता है.
Hiljatra Festival, Pithoragarh

हिलजात्रा क्या है, हिलजात्रा दो शब्दों से मिलकर बना है ‘ हिल ' और ' जात्रा '। जिसमे कुमाउनी मैं हिल का अर्थ है कीचड़ वाली (दलदल वाली) जगह तथा जात्रा का अर्थ है यात्रा अर्थात् दलदली जगह पर किए जाने यात्रा है हिलजात्रा। यह पर्व बरसात की ऋतु के समापन और शरद ऋतु के आगमन पर मनाया जाता है. इस दिन लकड़ी के मुखौटों से सजे पात्र जिन्हें लखिया भूत नाम से जाना जाता है, इसमें घुड़सवार, सैनिक, झाडूवाला, मछेरा, दहीवाला, हलिया, बैलों की जोड़ी, धान रोपाई करती हुई पुतारियां, हिरन, चितल, नेपाली राजा, भालू, नाई, भजन मण्डली, लछिया भूत आदि पात्र होते हैं, पारम्परिक ढोल – नगाड़े के साथ लाल ध्वजा पताका लेकर नृत्य करते हैं. इसमें पात्र घास – फूस के घोड़े में सवारी करके आते है. आसपास के लोग नाचते -कूदते सभी लोग अक्षत और फूल चढ़ाकर लखिया भूत की पूजा करके अच्छी फसल की कामना करते हैं.
 

हिलजात्रा पर्व का इतिहास (History of Hiljatra Festival)

इस पर्व की शुरुआत पिथौरागढ़ जिले के कुमौड़ गाँव से हुई थी. इस गाँव में चार महर भाई कुंवर सिंह महर, चेह्ज सिंह महर, चंचल सिंह महर और जाख सिंह महर थे . 16 वीं सदी में इस गांव के ये चारों भाई हर साल पड़ोसी मुल्क नेपाल इंद्रजात्रा में शामिल होने जाते थे. जहां नेपाल के राजा इनकी वीरता से इतना प्रभावित हुए कि नेपाल नरेश ने यश के प्रतीक ये मुखौटे महर भाइयों को इनाम में दिए. साथ ही कृषि के प्रतीक रूप में हल भी दिया. तभी से पिथौरागढ़ की सोरघाटी में इन भाईयों ने हिलजात्रा पर्व प्रारंभ करवाया. इस पर्व को बड़ी धूमधाम से मनाया जाता हैं. हिलजात्रा के प्रमुख पात्र लखिया के तेवरों को देखते हुए इसे लखिया भूत कहा जाता है, परंतु ग्रामीण इसे भगवान शिव का सबसे प्रिय और बलवान गण वीरभद्र मानते हैं. 

हिलजात्रा पर्व का आगाज भले ही महरों की बहादुरी से हुआ हो, लेकिन अब इसे कृषि पर्व के रूप में मनाया जाने लगा है. हिलजात्रा में बैल, हिरन, चीतल और धान रोपती महिलाएं यहां के कृषि जीवन के साथ ही पशु प्रेम को भी दर्शाती हैं. समय के साथ आज इस पर्व की लोकप्रियता इस कदर बढ़ गई है कि हजारों की तादाo में लोग देखने आते हैं. लखिया भूत के गण का रोल करने वाले पवन महर बताते हैं कि पर्व के दौरान होने वाले कार्यक्रमों में वे घंटों लगातार अपना रोल अदा करते हैं. लेकिन उन्हें कोई थकान नही लगती, साथ ही वे कहते हैं कि लखिया बाबा का आशीर्वाद उन पर है, तभी वे ये भूमिका निभा पाते हैं. इसका आयोजन पिथौरागढ़ के कुमौड़ , बजेटी , भूरभूडी , मेल्दा , खतीगांव , सिल , चमू , अगन्या आदि गांवों में किया जाता है।

लखिया भूत है आकर्षण का केन्द्र बिंदू (Lakhiya Ghost)

घंटों तक चलने वाले हिलजात्रा पर्व का समापन उस लखिया भूत के आगमन के साथ होता है, जिसे भगवान शिव का गण माना जाता है. लखिया भूत अपनी डरावनी आकृति के बावजूद हिलजात्रा का सबसे बड़ा आकर्षण है. जो लोगों को सुख,समृद्दि और खुशहाली का आशीर्वाद देने के साथ अगले साल लौटने का वादा कर चला जाता है.


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