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September 22, 2021

उत्तराखंड का राज्य पुष्प - ब्रह्म कमल (Brahma Kamal - Saussurea Obvallata)

उत्तराखंड का राज्य पुष्प - ब्रह्म कमल (Saussurea Obvallata)

भगवान शिव और माँ नंदा देवी का प्रिय पुष्प

Brahma Kamal - Saussurea Obvallata

ब्रह्म कमल (वानस्पतिक नाम : Saussurea obvallata), उत्तराखंड का राज्य पुष्प जो की भगवान शिव का प्रिय पुष्प है, जिसे विशेष शुभअवसरों पर शिव को चढ़ाने से पूर्ण होती है हर मनोकामना। उत्तराखंड के हिमालयी क्षेत्रों फूलों की घाटी, केदारनाथ, पिंडारी ग्लेशियर, वासुकि ताल, बेदनी बुग्याल, तुंगनाथ, मद्महेश्वर, हेमकुंठ साहिब, रूप कुंड, मन्दाकिनी घाटी, अलकनंदा घाटी, गंगोत्री घाटी, भागीरथी घाटी, बद्रीनाथ धाम एवं नंदा राज यात्रा मार्गों आदि मैं यह पुष्प पाया जाता है, भारत के अन्य भागों मैं भी इसे कई नामों से पुकारा जाता है जैसे- हिमाचल में दूधाफूल, कश्मीर में गलगल और उत्तर-पश्चिमी भारत में बरगनडटोगेस।  यह नंदा देवी का भी प्रिय पुष्प है इसे तोड़ने के नियम बहुत सख्त होते है, इसे नन्दाष्टमी को तोडा जाता है इस पुष्प के खिलने का समय जुलाई से सितम्बर होता है, दुनिआ भर मैं लगभग २०० प्रजातियां पाई जाती है भारत मैं लगभग ६० जातीय पाई जाती है जिनसे उत्तराखंड मैं इसकी २४ जातीय पाई जाती है, मगर जानकर सासेरिया ओब्लाटा को ही वास्तविक ब्रह्मकमल मानते है, माना जाता है कि ब्रह्मकमल के पौधे में एक साल में केवल एक बार ही फूल आता है जो कि सिर्फ रात्रि में ही खिलता है। दुर्लभता के इस गुण के कारण से ब्रह्म कमल को शुभ माना जाता है। ब्रह्म कमल के पौधों की ऊंचाई 70 से 80 सेंटीमीटर होती है बैगनी रंग का इसका पुष्प टहनियों में ही नहीं बल्कि पीले पत्तियों से निकले कमल पात के पुष्पगुच्छ के रूप मे खिलता है जिस समय यह पुष्प खिलता है उस समय वहां का वातावरण सुगंधित से भर जाता है। 


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औषधीय गुण - कहा जाता है कि इसकी पंखुड़ियों से टपकने वालीं बूंदें अमृत सामान है, इससे निकलने वाले पानी को पीने से थकान मिट जाती है। इससे पुरानी (काली) खांसी का भी इलाज किया जाता है ब्रह्म कमल पौधे के फूल व पत्ते खांसी और सर्दी (cough and cold) के इलाज में मदद कर सकते हैं। फूल के एंटी इन्फ्लेमेटरी (anti-inflammatory) और एंटी माइक्रोबियल (antimicrobial) गुण श्वसन मार्ग (respiratory tract) में होने वाली सूजन को कम करने और माइक्रोबेस को रोकने में मदद कर सकते हैं, इसलिए खांसी और सर्दी का इलाज कर सकते हैं। ब्रह्मा फूल अस्थमा और ब्रोंकाइटिस जैसी अन्य श्वसन समस्याओं के इलाज में भी हेल्प करता है। इससे कैंसर सहित कई खतरनाक बीमारियों का भी इलाज होता है। ब्रह्मकमल मूत्र रोग, वात रोग समेत कई अन्य बीमारियों के इलाज में भी इस्तेमाल किया जाता है। एक शोध से पता चला है की यह लिवर पर फ्री रेडिकल्स के हानिकारक प्रभावों को कम करने में मदद करता है। ब्रह्म कमल के फूल से तैयार सूप लिवर की सूजन (inflammation) का इलाज करने और शरीर में रक्त की मात्रा बढ़ाने में मदद कर सकता है। यह तालों या पानी के पास नहीं बल्कि ज़मीन में उगता है। ब्रह्म कमल को ससोरिया ओबिलाटा भी कहते हैं और इसका वानस्पतिक नाम एपीथायलम ओक्सीपेटालम है। इसमें कई एक औषधीय गुण होते हैं। चिकित्सकीय प्रयोग में इस फूल के लगभग 174 फार्मुलेशनस पाए गए हैं। वनस्पति विज्ञानियों ने इस दुर्लभ-मादक फूल की 31 प्रजातियां पाई जाती हैं।

पौराणिक कथा - ब्रह्मा कमल का उल्लेख महाभारत व बाल्मीकि रामायण जैसे धार्मिक ग्रंथों में भी मिलता है। ब्रह्म कमल को महाभारत के वन पर्व में सौगंधित पुष्प कहा गया है। कहा जाता है की इसे पाने के लिए द्रोपदी ब्याकुल हो गयी थी तब भीम इसे प्राप्त करने हिमालय की वादियों मैं गए थे तभी उनकी भेंट हनुमान जी से हुई थी जिसका वर्णन ग्रंथों मैं मिलता है, साथ ही बाल्मीकि रामायण की अयोध्या कांड में भी इसका उल्लेख मिलता  है। पौराणिक कहानियों के अनुसार ब्रह्मकमल भगवान शिव का सबसे प्रिय पुष्प है। केदारनाथ और बद्रीनाथ के मंदिरों में ब्रह्म कमल ही प्रतिमाओं पर चढ़ाए जाते हैं। किवदंति है कि जब भगवान विष्णु हिमालय क्षेत्र में आए तो उन्होंने भोलेनाथ को 1000 ब्रह्म कमल चढ़ाए, जिनमें से एक पुष्प कम हो गया था। तब विष्णु भगवान ने पुष्प के रुप में अपनी एक आंख भोलेनाथ को समर्पित कर दी थी। तभी से भोलेनाथ का एक नाम कमलेश्वर और विष्णु भगवान का नाम कमल नयन पड़ा। फूल भगवान ब्रह्मा का प्रतिरूप माना जाता है और इसके खिलने पर विष्णु भगवान की शैय्या दिखाई देती है। 

इन्ही औषदीय गुणों के चलते अब उत्तराखंड के कुछ क्षेत्रों मैं इसकी खेती करने लगे है साथ ही घरों मैं गमलों मैं भी इसे उगाने लगे है, 


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