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September 5, 2016

उत्तराखंड एक परिचय (Introduction of Uttarakhand)

उत्तराखंड एक परिचय

Char Dham of Uttarakhand

उत्तराखंड में भव्‍य हिमनद शाही बर्फ से ढके पहाड़, मखमली घास के मैदान, मदमस्‍त चोटियां और स्‍वच्छ पहाड़ी झील, एमरल हरा घना जंगल जो दनदनेदार गहरी नालों, कल-कल करते असंख्‍य झरने और नदियां जो नीचे मैदान की ओर अपना रास्‍ता बनाती है। वनस्‍पति और जीव जन्‍तुओं का भव्‍य समावेशन भी देखा जा सकता है। उत्तराखंड की पहाड़ियों में साहसिक कार्य के सभी तत्‍व मौजूद हैं जो उत्‍साह और उत्तेजना से भरे हैं। यह अनदेखी घाटी है, ऊंची -ऊंची चोटियां, बहती नदियां, बर्फ से ढके पहाड़ वनस्‍पति एवं जीव-जन्‍तुओं का भव्‍य समावेशन और कुछ बर्फ का विशाल भूभाग। इसमें साहसिक खेल के लिए सर्वोत्तम स्‍थल है जैसाकि स्‍कीइंग, रिवर राफ्टिंग, कैनोइंग पाराग्‍लाइडिंग और रोक क्‍लाइम्बिंग।

बहुत अधिक भारतीय धार्मिक विश्‍वास हिमाचल से निकलते हैं। प्रत्‍येक पहाड़, झील और नदी पौराणिक गाथाओं से भरा है। यह ''ईश्‍वर का निवास'' अनेक देवालय और तीर्थ स्‍थानों से भरा है। चार धाम, चार सबसे पवित्र और सम्‍माननीय हिंदु मंदिर : बद्रीनाथ, केदारनाथ, गंगोत्री और यमुनोत्री। सिक्‍खों का हेमकुंड साहिब, जो शक्तिशाली पहाड़ पर है, कुछ महत्‍वपूर्ण तीर्थ स्‍थान हैं।

पर्यटक आकर्षण
बद्रीनाथ
केदारनाथ
गंगोत्री
हरिद्वार
ऋषिकेश
नीलकंठ
स्‍कीइंग
ट्रेकिंग
राफ्टिंग

पर्वतीय स्‍थल (Tourist Place of Uttarakhand)

औली (Auli)

औली बर्फ से ढके पहाडों की गोद में बसा है यह स्‍थान इतना सुंदर है कि इसे शब्‍दों में वर्णन नहीं किया जा सकता है। औली का साहसिक स्‍थान उत्तराखंड राज्‍य के उत्तर में चमोली जिला में स्थित है जो गढ़वाल पर्वत श्रृंखला के एक भाग का निर्माण करता है। आवली जोशीमठ से 16 कि.मी. दूर है यह 2895 मीटर की ऊंचाई पर स्थित है। यह स्‍थान स्‍कीइंग के लिए सबसे अधिक जाना जाता है। औली ऐसा स्‍थान है जहां आनंद और साहसिक खेल, वन्‍य सौंदर्य और बर्फ क्षेत्रों की ढलान यहां प्रकृति की सुंदरता सजीव प्रतीत होती है। देवदार और ऑक के जंगल ढलानों को आच्‍छादित करते और ठंडी हवा की लहर कम कर देते हैं।

अल्‍मोड़ा (Almora)

अल्‍मोड़ा कुमाऊं क्षेत्र में नयनाभिराम जिला है, यह भारत में उत्तराखंड के पूर्व में बसा है। यहां से हिमालय का दृश्‍य आश्‍चर्यजनक है यह विश्‍व भर के पर्यटकों को अपनी प्राकृतिक सुंदरता से लुभाता है। यह उत्तराखंड के सुंदर कुमाऊं क्षेत्र से सटा है भव्‍य हिम अच्‍छादित पहाड़ों, झीलों और वनस्‍पति एवं जीव-जन्‍तुओं से समृद्ध न केवल हिमाचल के बारे सोचने में समर्थ बनाता है अपितु उसकी भव्‍यता को बार बार निहारने के लिए समर्थ बनाता है।

बिन्‍सर (Binsar)

बिन्‍सर की पहाड़ियां जो झांदी धार के रूप में जानी जाती हैं इसकी ऊंचाई 2412 मीटर है, यहां से अल्‍मोड़ा शहर का उत्‍कृष्‍ट दृश्‍य देख सकते हैं कुमाऊं की पहाडियां और ग्रेटर हिमालय देखे जा सकते हैं। जटिलता से घने ऑक से गुजरना और घना जंगल शिखर की ओर ले जाते है जहां से हिमालय पर्वत श्रृंखला का अकाट्य दृश्‍य और चारों ओर की घाटी देखी जा सकती है।

चोपता (Chopta)

यह गोपेश्‍वर में स्थित है - उखिमठ रोड लगभग 40 कि.मी. गोपेश्‍वर से लगभग 2900 मीटर की ऊंचाई पर, चोपता समस्‍त गढ़वाल क्षेत्र में एक सबसे नयनाभिराम जगह है। यहां से हिमाचल श्रृंखला का भव्‍य दृश्‍य देखा जा सकता है और चारों ओर के क्षेत्र देखे जा सकते हैं। चोपता सर्दी में ठंडा और गर्मी में सुखद रहता है। भारत का स्विट्जरलैंड भी चोपता को बोला जाता है। 

चम्‍पावत (Champawat)

समुद्र तल से 1,615 मीटर की ऊंचाई पर स्थित चम्‍पावत किसी समय मूल रूप से कुमाऊं के चंद राज्‍य की राजधानी थी। यह पिथोरागढ़ से 76 कि.मी. दूर स्थित है। चम्‍पावत में ही ऐसा कहा जाता है कि भगवान विष्‍णु ने कुर्मावतार लिया था अत: कुमाऊं कुर्मांचल कहलाने लगा। एक छोटा सा किला और बलेश्‍वर का मंदिर चम्‍पादरी रत्‍नेश्‍वर और दुर्गा मंदिर शहर की शोभा बढ़ाते है। चंपावत न केवल ऐतिहासिक और भूगर्भ विज्ञानी दृष्टि से प्रसिद्ध है अपितु अपनी पर्याप्‍त दृश्‍य सुंदरता और आश्‍चर्यजनक मूर्ति कला के लिए भी प्रसिद्ध है।

धनौल्‍टी (Dhanolti)

यह नया बसा हुआ शहर टेहरी गढ़वाल का जिला मुख्‍यालय है। यह समुद्र तल से 1550 से 1950 मीटर की ऊंचाई के बीच स्थित है। आधुनिक और सुनियोजित नगर जो चंबा से केवल 11 कि.मी. और पुरानी टेहरी से 24 कि.मी. है। इसके नीचे विशाल कृत्रिम झील और बांध है। बांध पूरा होने पर यह जल्‍द ही आकर्षण का महत्‍वपूर्ण केंद्र बन गया है। लंबी जंगल भरी ढलान, शीतल बयार, जोशीले और अतिथि प्रिय निवासी, सुंदर मौसम और भव्‍य हिमाच्‍छादित पहाड़ विघ्‍न रहित अवकाश के लिए आदर्श जगह बनाते हैं।

कौसानी (Kausani)

यह अल्‍मोड़ा से 53 कि.मी. उत्‍तर में स्थित है। कौसानी नयनाभिराम पहाड़ी जगह है अपनी दृश्‍य की भव्‍यता के लिए प्रसिद्ध है और इसका दर्शनीय 300 कि.मी. चौड़ा हिमाचल का दृश्‍य। यहां घने पाइन के जंगल हैं शीर्ष पर संकीर्ण दर्रा हिमाच्‍छादित त्रिभुल एवं नंदादेवी का दृश्‍य इतना भव्‍य है कि किसी को भी बर्फ का दृश्‍य बिल्‍कुल निकट लगता है।

लैंसडौन (Lansdowne)

लैंसडौन मूल रूप से ब्रिटिश जमाने की लोकप्रिय पहाड़ी जगह थी इसकी मनोरम अबोहवा और प्राकृतिक सुंदरता से आ‍कर्षित होकर उन्‍होंने यहां अपनी छावनी बनाई थी। भारतीय सेना का प्रसिद्ध गढ़वाल राइफल्‍स का कमान कार्यालय भी यहां है। लैंड्सडाउन समुद्री सतह से 6000 कि.मी. ऊंचाई पर स्थित हैं रास्‍ते में कोटद्वार, पौढ़ी रोड को कोटद्वार से 55 कि.मी. है। यहां घना ऑक और नीला पाइन जंगलों से घिरा हुआ है यह शांतमय अवकाश के लिए सुखद जगह है चूंकि यह हिल स्‍टेशनों की सामान्‍य भाग-दौड़ से दूर है।

मसूरी (Mussoorie)

मसूरी, एक पहाड़ी सैरगाह समुद्र तल से लगभग 7000 फीट की ऊंचाई पर बसा है, यह गढ़वाल हिमालय की पर्वत श्रेणी में फैला हुआ है यह क्षेत्र मुख्‍य पर्यटन स्‍थान के रूप में विकसित हो रहा है। मसूरी का बहुधा पहाड़ियों की रानी कहा जाता है। यह दून घाटी के ऊपर बसा है और देहरादून शहर इसके नीचे है जो मसूरी का गेट वे है और वस्‍तुव: समस्‍त गढ़वाल का। पर्वत श्रेणी के एक छोर से पवित्र और शक्तिशाली नदी गंगा दिखाई देती है और दूसरी छोर से दूसरी प्रसिद्ध नदी यमुना दिखाई देती है। मुख्‍य पर्यटकों के आकर्षण हैं - गन हिल, केंपटी प्रपात, कैमेल्‍स बैक रोड और नाग देवता मंदिर।

नैनीताल (Nainital)

नैनीताल हिमालय की हारमाला में चमकता कीमती आभूषण है, इसका प्रकृति दृश्‍य सौंदर्य से भरा है और यहां विभिन्‍न प्रकार के प्राकृतिक संसाधन हैं। यहां झीलों की भरमार है, और नैनीताल को भारत की झील जिला की उपमा मिली है नैनी झील अति प्रतिष्ठित झील है जो पहाड़ियों से घिरा है। भारतीय पौराणिक कथा में नैनीताल को 64 शक्तिपीठों में एक माना गया था। दंत कथा के अनुसार दुखित भगवान शिव सती का शरीर वाहन कर रहे थे और उनकी एक आंख यहां गिर गई। नैनीताल झील की आकृति आँख की तरह है और शहर का नाम नैना (आंख) तथा ताल (झील) से पड़ा। झील के एक ओर नैना देवी का मंदिर स्थित है।

देहरादून (Dehradun)

दून घाटी के स्‍वप्‍न लोक देहरादून में स्‍वागत है - यह भारत में उत्तराखंड राज्‍य का पहाड़ी सैरगाह है। यह हिमालय, शिवालिक, गंगा और यमुना के बीच स्थित है, देहरादून यकीनन एक पूर्ण छवि का सैरगाह है। देहरादून पर्यटक के रुचि के दूसरे कई स्‍थानों के लिए गेटवे है जैसे हरिद्वार, ऋषिकेश, बद्रीनाथ, केदारनाथ, गंगोत्री और यमुनोत्री। देहरादून युगों से लो‍कप्रिय रहा है। ब्रिटिशर्स देहरादून की आबोहवा से मोहित हो गए और उन्‍होंने इसे अपना निवास गृह बनाया। उन्‍होंने यहां अनेक यहां अनेक संस्‍थाएं और विद्यालय खोला।

पिथोरागढ़ (Pithoragarh)

पिथोरागढ़ उत्तराखंड का सबसे पूर्वी जिला है। यहां भीतरी हिमालय में नयनाभिराम घाटी में 1851 फीट की ऊंचाई पर है जो छोटा कश्‍मीर कहलाता है। यह कैलाश-मनसरोवर के लिए रास्‍ता है। पिथोड़ागढ़ मनोहर मिलान हिमनद छोटा कैलाश और नामिक का गेटवे है। पिथोरागढ़ का सामरिक महत्‍व इस तथ्‍य से है कि तिब्‍‍बत के लिए छह रास्‍ते इसी जिले में हैं। पिथोरागढ़ इसके सांस्‍कृतिक धार्मिक मेलों के लिए प्रसिद्ध है। यह घाटी लंबाई में लगभग 8 कि.मी. और चौड़ाई में 5 कि.मी. है जो छोटे रूप में कश्‍मीर को प्रतिबिम्बित करता है।

रानीखेत (Ranikhet)

रानीखेत का पहाड़ी सैरगाह समुद्र तल से 1824 मीटर की ऊंचाई पर है। कुमाऊं पर्वत में रानीखेत का पहाड़ी सैरगाह नैनीताल से 59 कि.मी. और अल्‍मोड़ा से 50 कि.मी. की दूरी पर है। रानीखेत के चारों ओर स्थित वन-जंगल ने असंख्‍य लोगों को आकर्षित किया है। हिमालय के दृश्‍य प्राचीन मंदिरों, नयनाभिराम वनभोज स्थल, मनोहर चहल कदमी उत्तेजक ट्रेक के साथ रानीखेत भारत में लोकप्रिय पर्यटन स्‍थान है। यह माना जाता है कि रानी खेत का पहाड़ी सैरगाह का नाम रानी पद्मिनी राजा सुखदेव की रानी के नाम पर पड़ा। रानी इस जगह की सुंदरता से विस्‍मयाभिभूत हो गई थी। रानी इस जगह इतनी मुग्‍ध हो गई थी कि उसने वहां रहने का निश्‍चय किया और तब से इस जगह को रानीखेत अर्थात रानी का खेत, के नाम से जाना जाता है।

वन्‍य जीवन अभयारण्‍य ( Wildlife Sanctuaries) 

असन बराज पक्षी अभ्‍यारण्य 

असन बराज, जिसका लो‍कप्रिय नाम धालीपुर झील है, का सृजन धालीपुर विद्युत गृह के जरिए यमुना नदी तथा असन नदी के संगम पर असन बराज के निर्माण के परिणामस्‍वरूप वर्ष 1967 में किया गया था। असन बराज पक्षी अवलोकन के लिए प्रसिद्ध है। असन जलाशय जल पक्षियों की 53 प्रजातियों को आकृष्‍ट करता है जिनमें में 19 प्रजातियां यूरेशिया से आई शीत प्रवासी हैं। सर्दियों के महीनों में, जल पक्षियों की 90 प्रतिशत जनसंख्‍या में निम्‍न 11 प्रवासी प्रजातियां शामिल होती हैं नामत: ब्राह्मणी बत्तख, पिनटेल, रेड क्रेस्टिड पोचार्ड, गाडवॉल, कॉमन पोचर्ड, मालार्ड, कूट, विजियन, कॉमन टील, टफ्टिड बत्तख तथा शोवेलर

कोर्बेट नेशनल पार्क (Carbett National Park)

कोर्बेट को सही मायने में गुर्राहट, चिंघाड़ तथा गीत की भूमि कहा गया है, यह उल्‍लेखनीय सौंदर्यपूर्ण परिदृश्‍य का द्योतक है। कोर्बेट नेशनल पार्क उत्‍तरी भारत में उत्तरांचल के पहाड़ी राज्‍य में दो जिलों - नैनीताल तथा पौड़ी में अवस्थित है। इसके अंतर्गत 521 वर्ग किलोमीटर का क्षेत्रफल आता है तथा पड़ोसी सोननदी वन्‍य जीवन अभयारण्‍य तथा आरक्षित वन क्षेत्रों के साथ मिलकर निर्मित कोर्बेट चीता प्रारक्षित वन को क्षेत्रफल 1288 वर्ग किलोमीटर है।
कोर्बेट को भारत में परियोजना टाइगर के उद्घाटन के लिए स्‍थल के रूप में चुना जाना इसकी गौरवमय सुभिन्‍नता है। इस प्रारक्षित क्षेत्र की समृद्ध जैव विविधता का कारण अंशत: यहां पाए जाने वाले पशु-पक्षियों की विविधता है। इस प्रारक्षित क्षेत्र के केंद्रीय हिमाचल की निचली पहाडियों में अवस्थित होने के कारण हिमालयी तथा पठारी, दोनों प्रकार के पशु पक्षी तथा वनस्‍पति इस प्रारक्षित क्षेत्र में पाए जाते हैं। कोर्बेट तीन राष्‍ट्रव्‍यापी संरक्षण परियोजनाओं का स्‍थल है जिनका लक्ष्‍य प्रमुख लुप्‍तप्राय: प्रजातियों को समाप्‍त होने से बचाना तथा उनके लिए एक सुरक्षित निवास स्‍थल की व्‍यवस्‍था करना है। ये परियोजनाएं है :- परियोजना टाइगर, क्रोकोडाइल कंजर्वेशन प्रोजेक्‍ट (घडियाल संरक्षण परियोजना) तथा परियोजना हाथी।
कोर्बेट नेशनल पार्क के पशु पक्षियों में अत्‍यधिक विविधता है; आप यहां पक्षियों की 575 से अधिक प्रजातियां, रेंगने वाले जीवों की 25 प्रजातियां, स्‍तनधारी पशुओं की 50 प्रजातियां तथा एम्‍फीबियनों की 7 प्रजातियां, प्रचुर खाद्य स्रोत तथा मानव हस्‍तक्षेप से आधी से अधिक सदी से आश्रय एवं संरक्षण पाएंगे। कोर्बेट नेशनल पार्क में पाए जाने वाले कुछ प्रमुख स्‍तनधारी है - चीतल, हाथी, जंगली सुअर, बार्किंग डियर, सांभर, चीता, आम लंगूर, रिसस मेकक, गीदड़ तथा तेंदुका इत्‍यादि।

गोविंद नेशनल पार्क (Govind National Park)

गोविंद वन्‍य जीवन अभ्‍यारण्‍य, जो उत्तराखंड के उत्तरकाशी जिले में अवस्थित है, की स्‍थापना पहली मार्च, 1955 को की गई थी। यह 957.969 किलोमीटर के क्षेत्रफल में फैला हुआ है। राष्‍ट्रीय पार्क के संपूर्ण क्षेत्र में हल्‍के से लेकर भारी हिमपात होता है।
यह क्षेत्र अनेकों लुप्‍तप्राय: पशुओं का गृहस्‍थल है तथा पड़ोसी वन प्रभागों के घने जंगलों के साथ इसका विशाल क्षेत्रफल आनुवंशिकी विविधता बनाए रखने में सहायता करता है। इस क्षेत्र में औषधीय पौधों की प्रचुरता है जिनमें से अनेकों पौधे कुछ जीवन रक्षी औषधों का आधार बनते है।
स्‍तनधारियों की 15 से अधिक प्रजातियां तथा पक्षियों की 150 प्रजातियां अभयारण्‍य में विद्यमान है। महत्‍वपूर्ण स्‍तनधारी हैं - हिम तेंदुआ, काला भालू, ब्राउन भालू, मस्‍क डियर, भरल, हिमालयी थार, सिरो, तथा कामन तेंदुआ, हिम तेंदुआ 3500 मीटर की ऊंचाई में ऊपर भीतरी हिमालय क्षेत्र में निवास करता है। आठवीं योजना में, भारत सरकार ने इस विरली बिल्‍ली के दीर्घावधिक संरक्षण के लिए हिम तेंदुआ परियोजना शुरू की है। इस क्षेत्र में पाए जाने वाले लुप्‍तप्राय: पक्षी है - मोनल फीजेंट, कोकलास फीजेंट, पश्चिमी ट्रेजोपान, हिमालयी हिम मुर्गा, स्वर्णिम चील, स्‍टेपे चील, काली चील तथा बर्डिड गिद्ध, अन्‍य महत्‍वपूर्ण पक्षी समूह है - कबूतर, पैराकीट, कुकुत्र, उल्‍लू मिनीवेट, बुलबुल, टिट्स, वारबलर्स थ्रशिस, फिंचिस बंटिंग्‍स इत्‍यादि।

नंदादेवी नेशनल पार्क (Nanda Devi National Park)

अभ्‍यारण्‍य को नेशनल पार्क में रूपांतरित कर दिया गया है तथा पर्यावरणीय विचारणाओं के आधार पर यह अस्‍थायी रूप से अतिथियों के लिए बंद है। इसकी औसत ऊंचाई 4500 मीटर से अधिक है तथा यह कुल मिलाकर सत्तर ऊंची चोटियों से घिरा हुआ है जिनमें से सबसे ऊंची चोटी नंदादेवी (7817 मीटर) है। इसका आकार एक कप की भांति है जिसमें लहलहाते हरे घास के मैदान है, ढालू श्‍वेत जल प्रपात है तथा समृद्ध जंगली फलफूल वनस्‍पति तथा पशु पक्षी है। सर एडमंड हिलेरी ने इस अभ्‍यारण्‍य को ईश्‍वर प्रदत्‍त जंगली स्‍थल कहा था जो जीवन के लिए भारत की प्रशिक्षण भूमि है - तथा यह सत्‍य भी है।
इस पार्क में पाए जाने वाले वन्‍य जीवों में ये शामिल हैं - हिम तेंदुआ, भूरा तथा हिमालयी काला भालू, भरल, हिमालयी तहार, सेरो, मोनाल तथा चिर फीजेंट।

फूलों की घाटी नेशनल पार्क (Valley of Flowers National Park) 

फूलों की घाटी नेशनल पार्क उत्‍तरांचल की हिमालयी चोटियों में बसाया गया है। यह पार्क 87.50 वर्ग कि.मी. के क्षेत्रफल में विस्‍तारित है तथा वर्ष 1982 में इसे राष्‍ट्रीय पार्क के रूप में घोषित किया गया था। वर्ष 1988 में यूनेस्‍को ने नंदा देवी नेशनल पार्क के साथ भारत के फूलों की घाटी नेशनल पार्क को नंदा देवी तथा फूलों की घाटी नेशनल पार्क विरासत स्‍थल के रूप में घोषित किया था। पार्क की ऊंचाई 3,250 मीटर तथा 6,750 मीटर के बीच है।
जंगली फूलों की 300 से अधिक प्रजातियों फूलों की घाटी नेशनल पार्क में परिलक्षित की जा सकती हैं। इनमें से शामिल हैं - मार्श मेरीगोल्‍ड, लिलियम, कैम्‍पानूला, पेडीक्‍यूलारीस, आरीसेमा, जिरेनियम, निस्‍टोर्टा, लिगुलेरिया, एपीलोबियन, रोडेंड्रोंस, कोरीडलीस, इनुला, ब्रह्म कमल, सिप्री पेडियम इत्‍यादि यहां के वन्‍य जीवों में स्‍नो लेपर्ड, हिमालयन बीयर, हिमालयन चूहा हारे, मूस्‍क डीयर, ब्‍ल्‍यू शीप आदि शामिल हैं। इस पार्क में अनेक तितली प्रजातियों का वास भी है।

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