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August 15, 2016

आज़ादी के 69 वर्षों में क्या खोया क्या पाया (स्वतंत्रता दिवस पर विशेष)

आज़ादी के 69 वर्षों में क्या खोया क्या पाया (स्वतंत्रता दिवस पर विशेष)

Tiranga

"आज हम दुर्भाग्य के एक युग को समाप्त कर रहे हैं और भारत पुनः स्वयं को खोज पा रहा है। आज हम जिस उपलब्धि का उत्सव मना रहे हैं, वो केवल एक क़दम है, नए अवसरों के खुलने का। इससे भी बड़ी विजय और उपलब्धियां हमारी प्रतीक्षा कर रही हैं। भारत की सेवा का अर्थ है लाखों-करोड़ों पीड़ितों की सेवा करना। इसका अर्थ है निर्धनता, अज्ञानता, और अवसर की असमानता मिटाना। हमारी पीढ़ी के सबसे महान व्यक्ति की यही इच्छा है कि हर आँख से आंसू मिटे। संभवतः ये हमारे लिए संभव न हो पर जब तक लोगों कि आंखों में आंसू हैं, तब तक हमारा कार्य समाप्त नहीं होगा। आज एक बार फिर वर्षों के संघर्ष के बाद, भारत जागृत और स्वतंत्र है। भविष्य हमें बुला रहा है। हमें कहाँ जाना चाहिए और हमें क्या करना चाहिए, जिससे हम आम आदमी, किसानों और श्रमिकों के लिए स्वतंत्रता और अवसर ला सकें, हम निर्धनता मिटा, एक समृद्ध, लोकतान्त्रिक और प्रगतिशील देश बना सकें। हम ऐसी सामाजिक, आर्थिक और राजनीतिक संस्थाओं को बना सकें जो प्रत्येक स्त्री-पुरुष के लिए जीवन की परिपूर्णता और न्याय सुनिश्चित कर सके? कोई भी देश तब तक महान नहीं बन सकता जब तक उसके लोगों की सोच या कर्म संकीर्ण हैं।"
ट्रस्ट विद डेस्टिनी भाषण, जवाहरलाल नेहरू
Roadmap from 1947

इस भाषण को 20वीं सदी के महानतम भाषणों में से एक माना जाता है।इस भाषण में पंडित नेहरू ने जिस भारत की कल्पना की थी क्या वो साकार होता दिख रहा है ?

1947 में क्या हम वास्तव में स्वतंत्र हुए थे?

आजादी मिलने के बाद के 69 वर्षों में भारत ने बहुत अधिक आर्थिक और तकनीकी तरक्की की है, लेकिन आज भी उसकी गिनती विकसित देशों में नहीं की जाती. आर्थिक विकास का फल सभी को समान रूप से नहीं मिल पाया है, नतीजतन अमीर और गरीब के बीच की खाई और अधिक चौड़ी हुई है और धन कुछेक हाथों में केन्द्रित होता गया है. शिक्षा के क्षेत्र में उन्नति तो हुई है और भारत के कुछ शिक्षा संस्थान दुनिया भर में अपने उच्च स्तर के लिए जाने जाते हैं, लेकिन इसके साथ ही यह भी सही है कि प्राथमिक और माध्यमिक स्तर की शिक्षा की उपेक्षा की गई है. इस उपेक्षा के कारण शैक्षिक संरचना की नींव कमजोर रह गई है. इसी तरह सार्वजनिक स्वास्थ्य सेवाओं में लगातार कमी आई है

हम अपनी स्वतंत्रता के 70 वें वर्ष में प्रवेश करने जा रहे हैं. मेरा मानना है कि स्वतंत्रता दिवस के मनाने में यह संदेश होना चाहिए कि हम अब स्वतंत्र हैं. हमारा खुद का तंत्र है. हम पर “कोई” राज नहीं कर रहा है, “हम” ही अपने पर राज कर रहे हैं. इसमें प्रत्येक नागरिक की सहभागिता है. यदि कुछ सही नहीं है तो उसे उजागर करना और सही करने का हर संभव प्रयास करना हर एक नागरिक का कर्तव्य है. लेकिन हम पर “हम” राज सही मायने में कर ही नहीं रहे. कुछ मुट्ठी भर राजनेता देश पर राज चला रहे हैं. जो पार्टी जीत कर आती है उसी का तंत्र चलता है, उन्हीं का “स्व-तंत्र” है. पार्टी अपना और अपनों का हित साधती है. आम जनता के “स्व – तंत्र” का किसी को ध्यान ही नहीं है. तंत्र तो कुछ रसूखदारों का हुआ “भारतीयों" का तो नहीं है |

14 अगस्त 1947 की रात को जो कुछ हुआ है वो आजादी नहीं आई बल्कि पंडित नेहरु और लोर्ड माउन्ट बेटन के बीच में सत्ता के हस्तांतरण का एग्रीमेंट हुआ था |स्वतंत्रता और सत्ता का हस्तांतरण ये दो अलग चीजे है | और सत्ता का हस्तांतरण कैसे होता है ? ये जो तथाकथित आज़ादी आयी, इसका कानून अंग्रेजों के संसद में बनाया गया और इसका नाम रखा गया Indian Independence Act यानि भारत के स्वतंत्रता का कानून | और ऐसे धोखाधड़ी से अगर इस देश की आजादी आई हो तो वो आजादी, आजादी है कहाँ ? महात्मा गाँधी 14 अगस्त 1947 की रात को दिल्ली में नहीं आये थे | वो नोआखाली में थे | और कांग्रेस के बड़े नेता गाँधी जी को बुलाने के लिए गए थे | गाँधी जी ने मना कर दिया था , गाँधी जी कहते थे कि मै मानता नहीं कि कोई आजादी आ रही है गाँधी जी ने स्पस्ट कह दिया था कि ये आजादी नहीं आ रही है सत्ता के हस्तांतरण का समझौता हो रहा है | और इस सम्बन्ध में गाँधी जी ने नोआखाली से प्रेस विज्ञप्ति जारी की थी |उस प्रेस स्टेटमेंट के पहले ही वाक्य में गाँधी जी ने ये कहा कि मै हिन्दुस्तान के उन करोडो लोगों को ये सन्देश देना चाहता हु कि ये जो तथाकथित आजादी (So Called Freedom) आ रही है ये मै नहीं लाया |

अंग्रेजों की विरासत आज भी कायम है

गोरों ने भारत को सत्ता का हस्तांतरण विवशता में लेकिन अपनी शर्तों पर किया था। अन्तरराष्ट्रीय परिस्थितियाँ भी सत्ता हस्तान्तरण के लिए अंग्रेज़ों को बाध्‍य कर रही थीं। दूसरे महायुध्द में यूरोपीय अर्थव्यवस्थाएँ धवस्त हो चुकी थीं, जबकि अमेरिका और मज़बूत होकर उभरा था। अपनी विपुल वित्तीय पूँजी के बल पर वह अपना राजनीतिक-सामरिक वर्चस्व स्थापित कर चुका था और ब्रिटेन, फ्रांस, स्पेन, हॉलैण्ड और पुर्तगाल के उपनिवेशों को अपना बाज़ार बनाने के लिए आतुर था। प्रत्यक्ष औपनिवेशिक लूट के स्थान पर ”बिना उपनिवेश के साम्राज्यवाद” का दौर अब कायम होने जा रहा था। आर्थिक कारणों के अतिरिक्त वर्ग-संघर्ष का वैश्विक परिदृश्य भी एक अहम कारण था। नात्सी सत्ता के विरुध्द लाल सेना के विजयी अभियान के बाद पूरा पूर्वी यूरोप समाजवादी शिविर में शामिल हो चुका था। चीन, कोरिया, वियतनाम और मंगोलिया में कम्युनिस्ट नेतृत्व में राष्ट्रीय जनवादी क्रान्तियों की विजय आसन्न थी। चारों ओर से उठ रहा लाल बवण्डर राष्ट्रीय मुक्ति-युध्दों की ऑंधी के साथ मिलकर चक्रवाती तूफान का माहौल रच रहा था। भयाक्रान्त साम्राज्यवादी शिविर आत्म-रक्षा के लिए नयी महाशक्ति अमेरिका की चौधराहट स्वीकारने को विवश था।

क्या आप जानते हैं ब्रिटेन की महारानी हमारे भारत की भी महारानी है और वो आज भी भारत की नागरिक है और हमारे जैसे 71 देशों की महारानी है वो | Commonwealth में 71 देश है और इन सभी 71 देशों में जाने के लिए ब्रिटेन की महारानी को वीजा की जरूरत नहीं होती है।

आज भी हमारे यहाँ शिक्षा व्यवस्था अंग्रेजों की है क्योंकि ये इस संधि में लिखा है और मजे क़ि बात ये है क़ि अंग्रेजों ने हमारे यहाँ एक शिक्षा व्यवस्था दी और अपने यहाँ अलग किस्म क़ि शिक्षा व्यवस्था रखी है | हमारे यहाँ शिक्षा में डिग्री का महत्व है और उनके यहाँ ठीक उल्टा है | मेरे पास ज्ञान है और मैं कोई अविष्कार करता हूँ तो भारत में पूछा जायेगा क़ि तुम्हारे पास कौन सी डिग्री है ?

आज भी देश में आजादी के 69 सालों बाद भी जातिवाद, धार्मिक असहिष्णुता, भ्रष्टाचार, आर्थिक और सामाजिक असमानता, गरीबी, अज्ञानता, अशिक्षा, अनियंत्रित जनसंख्या जैसी अनेक भीषण समस्यायें देश के सामने व्यवधान बनके के खड़ी हैं| हालांकि हमने काफी उन्नति भी हासिल की है कई क्षेत्रों में लेकिन अब भी समाज का समग्र रूप से विकास नहीं हो पाया है| कुछ लोग एकमत होकर इसका दोष हमारे जनप्रतिनियों को देने लगेंगे, वैसे यह भी आधा ही सच है क्योंकि भ्रष्ट नेताओं को हम ही चुनते है या उन्हें भ्रष्ट बनने का अवसर मुहैय्या कराते हैं| भारत जिसकी छवि विश्व में इस तरह प्रचारित की गयी है कि यहां की विशेषता विविधता में एकता है| हांलाकि विविधता के मामले में यह बात पूर्णतया सत्य है सदियों से लोग यहां आते रहे हैं और बसते रहे हैं जिसने यहां की विविधता को समृद्ध किया है| देश में बदलाव की बयार तो बह रही है। महसूस कौन कितना कर पा रहा है, यह दीगर बात है। सूचना प्रवाह के इस युग में समूची दुनिया से जुड चुके है , भारत देश में हर जगह, हर वर्ग एवं स्तर बदलाव की अनुभूति कर रही है।लेकिन इस बदलाव की बहार के बीच यह बुनियादी सवाल उठाये जाने की जरूरत है कि हम जिस सम्प्रभु, समाजवादी जनवादी (लोकतान्त्रिक) गणराज्य में जी रहे हैं, वह वास्तव में कितना सम्प्रभु है, कितना समाजवादी है और कितना जनवादी है? पिछले 69 वर्षों के दौरान आम भारतीय नागरिक को कितने जनवादी अधिकार हासिल हुए हैं? हमारा संविधान आम जनता को किस हद तक नागरिक और जनवादी अधिकार देता है और किस हद तक, किन रूपों में उनकी हिफाजत की गारण्टी देता है? संविधान में उल्लिखित मूलभूत अधिकार अमल में किस हद तक प्रभावी हैं? संविधान में उल्लिखित नीति-निर्देशक सिध्दान्तों से राज्य क्या वास्तव में निर्देशित होता है? ये सभी प्रश्न एक विस्तृत चर्चा की माँग करते हैं। 1947 में देश को राजनीतिक आज़ादी तो मिली, पर साम्राज्यवादियों के आर्थिक हित (लूट के अवसर) सुरक्षित रहे। राज्यसत्ता अब भारतीय पूँजीपति वर्ग के हाथों में थी, लेकिन यह राज्यसत्ता साम्राज्यवादी विश्व से आमूल विच्छेद करने के बजाय उनके भी आर्थिक हितों की गारण्टर थी। यह सीमित आज़ादी और खण्डित सम्प्रभुता वाला देश था। भारतीय पूँजीपति वर्ग को यह सुविधा मिल गयी थी कि वह कई साम्राज्यवादी ताकतों से पूँजी और तकनीक लेते हुए मोलतोल कर सके। आज भारत अभी भी अन्य देशों काफी पिछड़ा हुआ है और यह उन देशो से भी काफी पिछड़ गया है जो आजादी के समय इसके समकक्ष या इससे भी पिछड़े हुए थे.इनमे से कुछ ऐसे देश हैं जो दूसरे विश्व युद्ध में बुरी तरह बर्बाद हो गये थे कुछ उनमे से चीन व कोरिया जैसे देश भी है जो भारत से भी पिछड़े थे ,परंतु आज भारत से मीलो मील आगे हैं |

आजादी के बाद से भारत की कुछ उपलब्धियां -

भारत विश्‍व की सबसे पुरानी सम्‍यताओं में से एक है जिसमें बहुरंगी विविधता और समृद्ध सांस्‍कृतिक विरासत है। इसके साथ ही यह अपने-आप को बदलते समय के साथ ढ़ालती भी आई है। आज़ादी पाने के बाद पिछले 69 वर्षों में भारत ने बहुआयामी सामाजिक और आर्थिक प्रगति की है। भारत कृषि में आत्‍मनिर्भर बन चुका है और अब दुनिया के सबसे औद्योगीकृत देशों की श्रेणी में भी इसकी गिनती की जाती है।

इन 69 सालों में भारत ने विश्व समुदाय के बीच एक आत्मनिर्भर, सक्षम और स्वाभिमानी देश के रूप में अपनी जगह बनाई है. सभी समस्याओं के बावजूद अपने लोकतंत्र के कारण वह तीसरी दुनिया के अन्य देशों के लिए एक मिसाल बना रहा है. उसकी आर्थिक प्रगति और विकास दर भी अन्य विकासशील देशों के लिए प्रेरक तत्व बने हुए हैं |

हम दुनिया में एकमात्र राष्ट्र है जिसने हर वयस्क नागरिक को स्वतंत्रता पहले दिन से ही मतदान का अधिकार दिया है। अमेरिका जो दुनिया का दूसरा सबसे बड़े लोकतंत्र है ने स्वतंत्रता के 150 से अधिक वर्षों बाद इस अधिकार को अपने नागरिकों को दिया। 560 छोटे रियासतों का भारत संघ में (विलय) | किसी भी एक देश में बोली जाने वाली भाषाओं की सबसे अधिक संख्या भारत में है करीब २९ भाषाएँ पूरे भारत में बोली जाती है। करीब 1650 बोलियां भारत के लोग बोते हैं। एक दलित द्वारा तैयार संविधान भारत में है। जातीय समूहों की सबसे अधिक संख्या भारत में है।दुनिया में सबसे ज्यादा निर्वाचित व्यक्तियों (एक लाख) की संख्या भारत में हैं , धन्यवाद पंचायती राज।निर्वाचित महिलाओं (पंचायतों, आदि) की संख्या सबसे अधिक।स्वदेशी परमाणु तकनीक विकसित की दुनिया का बहिष्कार झेला ।सबसे कम लागत की परमाणु ऊर्जा ($: 1700 किलोवाट प्रति) उत्पन्न करने वाला देश भारत है ।थोरियम आधारित परमाणु ऊर्जा विकसित करने वाला एकमात्र देश भारत है ।अंतरिक्ष में वाणिज्यिक उपग्रहों सबसे काम कीमत में लांच करने वाला देश भारत है। परमाणु पनडुब्बी लांच करनेवाले पांच देशों में से एक भारत है। चांद और मंगल पर मानव रहित मिशन भेजने वाले पांच देशों में से एक भारत है। एल्यूमीनियम सीमेंट उर्वरक एवं इस्पात का सबसे कम लागत निर्माता भारत है ।सबसे बड़ा तांबा स्मेल्टर।वायरलेस टेलीफोनी का सबसे कम लागत वितरण भारत में है ।सबसे तेजी से बढ़ते दूरसंचार बाजार। दुनिया के सबसे कम लागत सुपर कंप्यूटर।निम्नतम लागत वाली कार (नैनो)।दुनिया के दो पहिया वाहनों का सबसे बड़ा उत्पादक।सबसे कम लागत उच्च गुणवत्ता वाले नेत्र शल्य चिकित्सा।दैनिक मोतियाबिंद आपरेशन के रिकार्ड संख्या, ब्रिटेन के एक प्रतिशत कीमत पर।सबसे बड़ा तेल रिफाइनरी की क्षमता लगभग 70m टन।सबसे बड़ा दूध उत्पादक देश (100 मीटर टन)।मक्खन का सबसे बड़ा उत्पादक | विश्व के सबसे बड़ा दुग्ध सहकारी संस्था (2.6 लाख सदस्य) भारत में ।दालों का सबसे बड़ा उत्पादक और उपभोक्ता।चीनी का दूसरा सबसे बड़ा उत्पादक है। तीसरा कपास का सबसे बड़ा उत्पादक।सोने का सबसे बड़ा आयातक (700 टन)। सोने का सबसे बड़ा उपभोक्ता है।संसाधित सभी हीरे का 43. 90 प्रतिशत भारत उत्पादक है ।तीसरा (लेनदेन की संख्या से) के सबसे बड़े शेयर बाजार।डाकघरों का सबसे बड़ा संख्या (1.5 लाख । ​​बैंक खाता धारकों की संख्या सबसे अधिक।कृषि भूखंड धारकों (100 करोड़) की संख्या सबसे अधिक।गैर निवासियों (52 अरब $) से सबसे बड़ा आवक विप्रेषण रिसीवर।सबसे बड़ा अंतर-देश प्रेषण।दुनिया का तीसरा सबसे बड़ा रेलवे नेटवर्क है।सबसे बड़ा एकल नियोक्ता भारतीय रेल (1.5 करोड़ डॉलर)। दैनिक रेल यात्रियों की संख्या सबसे ज्यादा। विश्व का दूसरा सबसे बड़ा हवाई अड्डा (दिल्ली)।भारत की मिड-डे मील योजना दुनिया का सबसे बड़ा भोजन कार्यक्रम है। राष्ट्रीय ग्रामीण रोजगार कार्यक्रम दुनिया में सबसे बड़ा रोजगार देने वाला कार्यक्रम है। भारत की सामरि‍क क्षमता में एक और शक्‍ति‍ इस वर्ष जोड़ी गई जि‍सका नाम है- अरि‍हंत। भारत इस परियोजना पर करीब दो दशक से काम कर रहा है। भारतीय वैज्ञानि‍को के अथक प्रयासों से भारत की नौसेना में इस अत्‍याधुनि‍क शस्‍त्र को शामि‍ल कि‍या गया जि‍सके जरि‍ये आज भारत हर तरह की सामरि‍क चुनौती का सामना करने में सक्षम है।

वर्तमान दशा और दिशा-

स्वतंत्रता हासिल करने पर जिन उच्च आदर्शों की स्थापना हमें इस देश व समाज में करनी चाहिए थी, हम आज ठीक उनकी विपरीत दिशा में जा रहे हैं और भ्रष्टाचार, दहेज, मानवीय घृणा, हिंसा, अश्लीलता और कामुकता जैसे कि हमारी राष्ट्रीय विशेषतायें बनती जा रही हैं ।समाज मे ग्रामों से नगरों की ओर पलायन की तथा एकल परिवारों की स्थापना की प्रवृत्ति पनप रही है इसके कारण संयुक्त परिवारों का विघटन प्रारम्भ हुआ उसके कारण सामाजिक मूल्यों को भीषण क्षति पहुँच रही है। दूसरे शब्दों में कहा जा सकता है कि संयुक्त परिवारों को तोड़ कर हम सामाजिक अनुशासन से निरन्तर उछूंखलता और उद्दंडता की ओर बढ़ते चले जा रहे हैं। इन 69 वर्षों में हमने सामान्य लोकतन्त्रीय आचरण भी नहीं सीखा है। भ्रष्टाचार में लगातार वृद्धि होती गई है और इस समय वह पूरी तरह से बेकाबू हो चुका है. भ्रष्टाचार सरकार के उच्चतम स्तर से लेकर निम्नतम स्तर तक व्याप्त है. समाज का भी कोई क्षेत्र इससे अछूता नहीं बच सका है। देश में सत्ता के शीर्ष पर बैठे भ्रष्टाचारियों के काले कारनामे, सार्वजनिक धन का शर्मनाक हद तक दुरुपयोग, सार्वजनिक भवनों व अन्य सम्पत्तियों को बपौती मानकर निर्लज्यता पूर्ण उपभोग कर रहे हैं आखिर ये सब किस प्रकार का आदर्श हमारे समक्ष उपस्थित कर रहे हैं।आजादी के 69 साल बाद भी भारत अनेक ऐसी समस्याओं से जूझ रहा है जिनसे वह औपनिवेशिक शासन से छुटकारा मिलने के समय जूझ रहा था। अनेक ऐसी समस्याएं भी हैं जो आजादी के बाद पैदा हुई हैं और गंभीर से गंभीरतम होती जा रही हैं। बाजार सामाजिक और राजनीतिक जीवन का नियामक तत्व बन कर उभरा है और उपभोक्तावाद नया मंत्र बन गया है। राजनीति समाज सेवा की हो, न कि कुरसी पाने के लिए, पार्टियां भ्रष्टाचार पर भाषण देती है और भ्रष्ट को टिकट देती है। यह जनता के गले के नीचे अब नहीं उतर रहा है। राजनीति अब देशसेवा का माध्यम न होकर एक बहुत मुनाफा पैदा करने वाले उद्योग में बदल गई है. इसी के साथ राजनीतिक संवाद की जगह अब राजनीतिक संघर्ष ने ले ली है जिसके कारण लोकतांत्रिक प्रक्रियाएं अवरुद्ध होती जा रही हैं। आज राजनेता हो या अधिकारी, उद्योगपति हो या किसान, सभी अपने आदर्शो से भटक गये हैं। क्या हम गांधी, सुभाष, नेहरू व आजाद के अरमानों को पूरा कर रहे हैं? क्या भारत के सिद्धांतों को अपने दिलों के किसी कोने में भी संजो कर रखे हैं क्या हमारे देश में सीता,सावित्री, झांसी, मीरा, लक्ष्मी, सरस्वती, पार्वती व दुर्गा रूपी नारियां आज सुरक्षित और सम्मानित हैं. क्या हम अपने बच्चों को सही मायने में ध्रुव, प्रह्वाद, लव-कुश, आजाद व सुभाष बनाना चाहते हैं? क्या हमें अपने क र्तव्यों का बोध है? अगर इन प्रश्नों का उत्तर ढूंढ़ा जाये, तो पता चल जायेगा कि 1947 में जिन आदर्शो और मूल्यों के साथ स्वतंत्रता दिवस मनाया जाता था, उन मूल्यों के साथ आज के लोग स्वतंत्रता दिवस नहीं मना रहे हैं। गुजरते वक्त के साथ आजादी की बात भी पुरानी हो चली है. आज न तो पुराने तेवर बचे हैं, न पुराने भाव. हम केवल तिरंगा फहरा कर अपनी जिम्मेवारी पूरी समझ लेते हैं। अत: साथियों, लोकतंत्र की रक्षा के लिए हम सभी को व्यापक दृष्टिकोण अपनाना होगा, तभी हमारा लोकतंत्र स्थायी व मजबूत रह सकेगा। शहीदों के लिए सच्ची श्रद्धांजलि श्री कृष्ण सरल जी की कलम से -

पूजे न शहीद गए तो फिर आजादी कौन बचाएगा?

फिर कौन मौत की छाया में जीवन के रास रचाएगा?

पूजे न शहीद गए तो फिर यह बीज कहाँ से आएगा?

धरती को माँ कह कर, मिट्टी माथे से कौन लगाएगा?

आलेख - सुशील कुमार शर्मा (साहित्यकार)

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