जागेश्वर धाम मंदिर, अल्मोड़ा
Jageshwar Dham Mahadev (Astham Jyotirlingas - Nagesham Darukavane)
उत्तराखंड को देवभूमि कहा जाता है। यहां कई ऐसे धार्मिक स्थल हैं जिनका वर्णन पुराणों में भी मिलता है। ऐसा ही एक धार्मिक स्थल है जागेश्वर धाम। इस धाम को भगवान शिव का पवित्र धाम माना जाता है। यहां की मान्यता के अनुसार जागेश्वर को भगवान शिव के बारह ज्योतिर्लिंगों में एक हैं। इस धाम का उल्लेख स्कंद पुराण, शिव पुराण और लिंग पुराण में भी मिलता है। मान्यता है कि यहां सप्तऋषियों ने तपस्या की थी और यहीं से लिंग के रूप में भगवान शिव की पूजा शुरू हुई थी। खास बात यह है कि यहां भगवान शिव की पूजा बाल या तरुण रूप में भी की जाती है।
उत्तराखंड के अल्मोड़ा से ३५ किलोमीटर दूर स्थित केंद्र जागेश्वर धाम के प्राचीन मंदिर प्राकृतिक सौंदर्य से भरपूर इस क्षेत्र को सदियों से आध्यात्मिक जीवंतताप्रदान कर रहे हैं। यहां लगभग २५० मंदिर हैं जिनमें से एक ही स्थान पर छोटे-बडे २२४ मंदिर स्थित हैं।उत्तर भारत में गुप्त साम्राज्य के दौरान हिमालय की पहाडियों के कुमाऊं क्षेत्र में कत्यूरीराजा थे। जागेश्वर मंदिरों का निर्माण भी उसी काल में हुआ। इसी कारण मंदिरों में गुप्त साम्राज्य की झलक भी दिखलाई पडती है। भारतीय पुरातत्व सर्वेक्षण विभाग के अनुसार इन मंदिरों के निर्माण की अवधि को तीन कालों में बांटा गया है। कत्यरीकाल, उत्तर कत्यूरीकाल एवं चंद्र काल। बर्फानी आंचल पर बसे हुए कुमाऊं के इन साहसी राजाओं ने अपनी अनूठी कृतियों से देवदार के घने जंगल के मध्य बसे जागेश्वर में ही नहीं वरन् पूरे अल्मोडा जिले में चार सौ से अधिक मंदिरों का निर्माण किया जिसमें से जागेश्वर में ही लगभग २५० छोटे-बडे मंदिर हैं। मंदिरों का निर्माण लकडी तथा सीमेंट की जगह पत्थर की बडी-बडी shilaon से किया गया है। दरवाजों की चौखटें देवी देवताओं की प्रतिमाओं से अलंकृत हैं। मंदिरों के निर्माण में तांबे की चादरों और देवदार की लकडी का भी प्रयोग किया गया है।
जागेश्वर को पुराणों में हाटकेश्वर और भू-राजस्व लेखा में पट्टी पारूणके नाम से जाना जाता है। पतित पावन जटागंगा के तट पर समुद्रतल से लगभग 6200 फुट की ऊंचाई पर स्थित पवित्र जागेश्वर की नैसर्गिक सुंदरता अतुलनीय है। कुदरत ने इस स्थल पर अपने अनमोल खजाने से खूबसूरती जी भर कर लुटाई है। लोक विश्वास और लिंग पुराण के अनुसार जागेश्वर संसार के पालनहारभगवान विष्णु द्वारा स्थापित बारह ज्योतिर्लिगोंमें से एक है।
जागेश्वर धाम मंदिर का इतिहास (History of Jageshwar Dham Temple)
पुराणों के अनुसार शिवजी तथा सप्तऋषियों ने यहां तपस्या की थी। कहा जाता है कि प्राचीन समय में जागेश्वर मंदिर में मांगी गई मन्नतें उसी रूप में स्वीकार हो जाती थीं जिसका भारी दुरुपयोग हो रहा था। आठवीं सदी में आदि शंकराचार्य जागेश्वर आए और उन्होंने महामृत्युंजय में स्थापित शिवलिंग को कीलित करके इस दुरुपयोग को रोकने की व्यवस्था की। शंकराचार्य जी द्वारा कीलित किए जाने के बाद से अब यहां दूसरों के लिए बुरी कामना करने वालों की मनोकामनाएंपूरी नहीं होती केवल यज्ञ एवं अनुष्ठान से मंगलकारी मनोकामनाएं ही पूरी हो सकती हैं।
उत्तराखंड में वास्तुकला के बेहतरीन उदाहरणों में से एक, जगेश्वर धाम भगवान शिव को समर्पित मंदिरों का एक समूह है। यहां 124 बड़े और छोटे मंदिर हैं जो हरे पहाड़ों कि पृष्ठभूमि और जटा गंगा धारा कि गड़गड़ाहट के साथ बहुत खूबसूरत व सुंदर दिखते हैं। ए एस आई (भारतीय पुरातत्व सर्वेक्षण) के अनुसार, मंदिर गुप्त और पूर्व मध्ययुगीन युग के बाद और 2500 वर्ष है। मंदिरों के पत्थरों, पत्थर की मूर्तियों और वेदों पर नक्काशी मंदिर का मुख्य आकर्षण है। मंदिर का स्थान ध्यान के लिए भी आदर्श है|
कैसे पहुंचें (How to Reach Jageshwar Dham Temple):-
वायुमार्ग से (By Air) - अल्मोड़ा के नजदीकी हवाई अड्डा, एक प्रसिद्ध कृषि विश्वविद्यालय पंतनगर में स्थित है, जो जागेश्वर से लगभग १६७ और अल्मोड़ा से लगभग 127 किलोमीटर दूर है।
ट्रेन द्वारा (By Train) - निकटतम रेलवे स्टेशन काठगोदाम करीब १३० किलोमीटर दूर स्थित है। काठगोदाम रेलवे से सीधे दिल्ली भारत की राजधानी, लखनऊ उत्तर प्रदेश राज्य की राजधानी, देहरादून उत्तराखंड राज्य की राजधानी है
सड़क के द्वारा (By Road) - जागेश्वर मंदिर सड़क नेटवर्क के माध्यम से अच्छी तरह से जुड़ा हुआ है। चूंकि उत्तराखंड में हवाई और रेल संपर्क सीमित है, सड़क नेटवर्क सबसे अच्छा और आसानी से उपलब्ध परिवहन विकल्प है। आप या तो जागेश्वर के लिए ड्राइव कर सकते हैं या एक टैक्सी / टैक्सी को किराए के लिए दिल्ली या दूसरे शहर से जागेश्वर तक पहुंच सकते हैं।
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