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January 14, 2017

मकर संक्रांति और गिन्दी का मेला (Gend Mela/Kauthig)

।।मकर संक्रांति /गेंद मेला ।। 

Makar Sankranti, Gend Mela Festival

मकर संक्रान्ति हिन्दुओं का प्रमुख पर्व है। मकर संक्रान्ति पूरे भारत और नेपाल में किसी न किसी रूप में मनाया जाता है। पौष मास में जब सूर्य मकर राशि पर आता है तभी इस पर्व को मनाया जाता है। यह त्योहार जनवरी माह के चौदहवें या पन्द्रहवें दिन ही पड़ता है क्योंकि इसी दिन सूर्य धनु राशि को छोड़ मकर राशि में प्रवेश करता है। मकर संक्रान्ति के दिन से ही सूर्य की उत्तरायण गति भी प्रारम्भ होती है। इसलिये इस पर्व को कहीं-कहीं उत्तरायणी भी कहते हैं। तमिलनाडु में इसे पोंगल नामक उत्सव के रूप में मनाते हैं जबकि कर्नाटक, केरल तथा आंध्र प्रदेश में इसे केवल संक्रांति ही कहते हैं।
शास्त्रों के अनुसार, दक्षिणायण को देवताओं की रात्रि अर्थात् नकारात्मकता का प्रतीक तथा उत्तरायण को देवताओं का दिन अर्थात् सकारात्मकता का प्रतीक माना गया है। इसीलिए इस दिन जप, तप, दान, स्नान, श्राद्ध, तर्पण आदि धार्मिक क्रियाकलापों का विशेष महत्व है। ऐसी धारणा है कि इस अवसर पर दिया गया दान सौ गुना बढ़कर पुन: प्राप्त होता है। इस दिन शुद्ध घी एवं कम्बल का दान मोक्ष की प्राप्ति करवाता है। जैसा कि निम्न श्लोक से स्पष्ठ होता है-
माघे मासे महादेव: यो दास्यति घृतकम्बलम।
स भुक्त्वा सकलान भोगान अन्ते मोक्षं प्राप्यति॥
मकर संक्रान्ति के अवसर पर गंगास्नान एवं गंगातट पर दान को अत्यन्त शुभ माना गया है। इस पर्व पर तीर्थराज प्रयाग एवं गंगासागर में स्नान को महास्नान की संज्ञा दी गयी है। सामान्यत: सूर्य सभी राशियों को प्रभावित करते हैं, किन्तु कर्क व मकर राशियों में सूर्य का प्रवेश धार्मिक दृष्टि से अत्यन्त फलदायक है। यह प्रवेश अथवा संक्रमण क्रिया छ:-छ: माह के अन्तराल पर होती है। भारत देश उत्तरी गोलार्ध में स्थित है। मकर संक्रान्ति से पहले सूर्य दक्षिणी गोलार्ध में होता है अर्थात् भारत से अपेक्षाकृत अधिक दूर होता है। इसी कारण यहाँ पर रातें बड़ी एवं दिन छोटे होते हैं तथा सर्दी का मौसम होता है। किन्तु मकर संक्रान्ति से सूर्य उत्तरी गोलार्द्ध की ओर आना शुरू हो जाता है। अतएव इस दिन से रातें छोटी एवं दिन बड़े होने लगते हैं तथा गरमी का मौसम शुरू हो जाता है। दिन बड़ा होने से प्रकाश अधिक होगा तथा रात्रि छोटी होने से अन्धकार कम होगा। अत: मकर संक्रान्ति पर सूर्य की राशि में हुए परिवर्तन को अंधकार से प्रकाश की ओर अग्रसर होना माना जाता है। प्रकाश अधिक होने से प्राणियों की चेतनता एवं कार्य शक्ति में वृद्धि होगी। ऐसा जानकर सम्पूर्ण भारतवर्ष में लोगों द्वारा विविध रूपों में सूर्यदेव की उपासना, आराधना एवं पूजन कर, उनके प्रति अपनी कृतज्ञता प्रकट की जाती है। सामान्यत: भारतीय पंचांग पद्धति की समस्त तिथियाँ चन्द्रमा की गति को आधार मानकर निर्धारित की जाती हैं, किन्तु मकर संक्रान्ति को सूर्य की गति से निर्धारित किया जाता है। इसी कारण यह पर्व प्रतिवर्ष १४ जनवरी को ही पड़ता है।

मकर संक्रान्ति का ऐतिहासिक महत्व (History of Makar Sankranti)


ऐसी मान्यता है कि इस दिन भगवान भास्कर अपने पुत्र शनि से मिलने स्वयं उसके घर जाते हैं। चूँकि शनिदेव मकर राशि के स्वामी हैं, अत: इस दिन को मकर संक्रान्ति के नाम से जाना जाता है। महाभारत काल में भीष्म पितामह ने अपनी देह त्यागने के लिये मकर संक्रान्ति का ही चयन किया था। मकर संक्रान्ति के दिन ही गंगाजी भगीरथ के पीछे-पीछे चलकर कपिल मुनि के आश्रम से होती हुई सागर में जाकर मिली थीं।

गेंद मेला...
गिन्दी

उत्तराखंड का गेंद मेला / कौथिग (Gend Mela / Kauthig) 


उत्तराखंड राज्य के जनपद पौड़ी गढ़वाल के यमकेश्वर व दुगड्डा व द्वारीखाल ब्लाक के कुछ स्थानों में मकरसंक्रांति को एक अनोखा खेल खेला जाता ही| इस खेल का नाम ही गेंद मेला|यह एक सामूहिक शक्ति परीक्षण का मेला है|इस मेले में न तो खिलाडियों की संख्या नियत होती ही न इसमें कोई विशेष नियम होते हैं. बस दो दल बना लीजिये और चमड़ी से मढ़ी एक गेंद को छीन कर कर अपनी सीमा में ले जाइये.परन्तु जितना यह कहने सुनने में आसन है उतना है नही, क्योंकि दूसरे दल के खिलाड़ी आपको आसानी से गेंद नहीं ले जाने देंगे|बस इस बस इस गुत्थमगुत्था में गेंद वाला नीचे गिर जाता है जिसे गेन्द का पड़ना कहते है|गेन्द वाले से गेंद छीनने के प्रयास में उसके ऊपर न जाने कितने लोग चढ़ जाती हें| कुछ तो बेहोश तक हो जाते हैं| ऐसी लोगो को बाहर निकल दिया जाता है| होश आने पर वे फिर खेलने जा सकते हैं|जो दल गेन्द को अपनी सीमा में ले जाते हैं वहीं टीम विजेता मानी जाती है | इस प्रकार शक्तिपरीक्षण का यह अनोखा खेल 3 से 4 घन्टे में समाप्त हो जाता है

इस खेल का उद्भव यमकेश्वर ब्लाक व् दुगड्डा ब्लाक की सीमा थलनदी नमक स्थान पर हुआ जहाँ मुगलकाल में राजस्थान के उदयपुर अजमेर से लोग आकर बसे हें इसलिए यहाँ की पट्टियों(राजस्व क्षेत्र )के नाम भी उदेपुर वल्ला,उदेपुर मल्ला,उदेपुर तल्ला एवम उदेपुर पल्ला (यमकेश्वर ब्लाक) व अजमीर पट्टिया(दुगड्डा ब्लाक)हैं | थलनदी में यह खेल आज भी इन्हीं लोगो के बीच खेला जाता है|यमकेश्वर में यह किमसार,यमकेश्वर,त्योडों,ताल व कुनाव नामक स्थान पर खेला जाता है तथा द्वारीखाल में यह डाडामंडी व कटघर में खेला जाता है, कटघर में यह उदेपुर व ढागू के लोगो के बीच खेला जाता है| दुगड्डा में यह मवाकोट (कोटद्वार के निकट ) में खेला जाता है

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