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July 27, 2016

मेरा पहाड़ मेरा उत्तराखंड - हमारी संस्कृति

मेरा पहाड़ मेरा उत्तराखंड - हमारी संस्कृति

Mera Pahad Mera Uttarakhand Culture


किसी प्रदेश की संस्कृति और वहाँ रहने वाले लोगों के बीच एक अटूट सम्बन्ध होता है।प्राकृतिक विविधता एवं हिमालय का अद्वितीय सौंदर्य व् पवित्रता 'उत्तराखंड की संस्कृति' में एक नया आयाम जोड़ देते हैं।यहाँ के लोग और यहाँ की संस्कृति में भी उत्तराखंड के विविध भू दृश्य की विविधता के दर्शन होते है। उत्तराखंड की प्राचीन सांस्कृतिक परंपरा की जड़े मुख्य रूप से धर्म से जुड़ी हुईं हैं। संगीत ,नृत्य एवं कला यहाँ की संस्कृति को हिमालय से जोड़ती है।
उत्तराखंड की नृत्य शैली जीवन और मानव अस्तित्व से जुडी है और असंख्य मानवीय भावनाओं को प्रदर्शित करती है। "लंगविर" यहाँ की एक पुरुष नृत्य शैली है जो शारीरिक व्यायाम से प्रेरित है। "बराड़ा" देहरादून क्षेत्र का एक प्रसिद्ध लोक नृत्य है, कुछ विशेष धार्मिक त्योहारों के दौरान किया जाता है। इनके अलावा हुरका बोल,झोरा-चांचरी,झुमैला,चौफुला और छोलिया आदि यहाँ के जाने माने नृत्य हैं।
संगीत उत्तराखण्ड की संस्कृति का एक अभिन्न अंग है। मंगल,बसन्ती ,खुदेड़ आदि यहाँ के लोकप्रिय लोकगीत है। "बेडू पाको" राज्य का अंतरराष्ट्रीय ख्याति प्राप्त एक प्राचीन लोक गीत है।
यहाँ सुन्दर चित्रकारी और भित्ति चित्र, घरों और मंदिरों दोनों को सजाने के लिए इस्तेमाल किये जाते है। पहाड़ी चित्रकला शैली 17 वीं और 19 वीं सदी के बीच इस क्षेत्र में विकसित हुई है।गुलेर राज्य कांगड़ा चित्रों का उद्गम स्थल के रूप में प्रसिद्ध था।
गढ़वाली कला ,प्रकृति के लिए अपनी निकटता के लिए जानी जाती है, जबकि कुमाऊंनी कला अक्सर प्रकृति में ज्यामितीय होती है। ऊनी शॉल, स्कार्फ, सोने के आभूषण, गढ़वाली टोकनी दस्तकारी आदि उत्तराखंड के अन्य शिल्प हैं।
उत्तराखंड का प्राथमिक खाद्य, गेहूं और सब्जियों है। हालांकि उत्तराखंड के भोजन की एक विशेषता है कि यहाँ टमाटर, दूध और दूध आधारित उत्पादों का इस्तेमाल बहुत होता है। मडुआ या झिंगोरा अनाज उत्तराखंड की एक स्थानीय फसल है जो विशेष रूप से कुमाऊं और गढ़वाल के आंतरिक क्षेत्रों में होती है। "बाल मिठाई" यहाँ का एक लोकप्रिय व्यंजन है।दुबूक ,काप,गुलगुला ,सेई आदि यहाँ के अन्य लोकप्रिय व्यंजन है।
उत्तराखंड धार्मिक और आध्यात्मिक सभी वर्गों के लिए यात्रा-विकल्प प्रदान करता है।
हिंदु पौराणिक ग्रंथो के अनुसार , समुद्र मंथन से जो अमृत निकला था , उसकी कुछ बुँदे हरिद्वार ,उज्जैन ,नासिक और प्रयाग में गिरी थीं। इसीलिए प्रत्येक 12 वर्ष बाद , हरिद्वार मे कुम्भ मेला का आयोजन किया जाता है। संध्या के समय यहाँ प्रतिदिन गंगा नदी की भव्य आरती की जाती है । उसके उपरांत गंगा नदी मे भक्तों द्वारा दीप प्रवाहित किए जाते है । सभी दीपों की ज्योति से पूरा तट जगमगाने लगता है ।
इस प्रकार उत्तराखंड की संस्कृति अपने अंदर हिमालय और गंगा नदी के अदभुत सौंदर्य को समेटे हुए, आज भी प्राचीन धार्मिक परम्पराओ को सहेजे हुए है।

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