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November 9, 2016

क्या आपको पता है कैसे मिला उत्तराखंड राज्य

उत्तराखण्ड आन्दोलन का संक्षिप्त इतिहास

क्या आपको पता है कैसे मिला उत्तराखंड राज्य

Badi Mandua Khayenge Uttarakhand Banayenge

आज 9 नवम्बर है, उत्तराखंड राज्य स्थापना दिवस। 16 साल हो गए है उत्तराखण्ड राज्य को बने हुए, उत्तराखंड को राज्य आसानी से नहीं मिला है इसके लिये कई बार बंद और चक्काजाम की मार यहां की जनता को झेलनी पड़ी. इस आन्दोलन में लगभग 50 आन्दोलनकारी शहीद हुए. उत्तराखंड के संघर्ष से राज्य के गठन तक जिन महत्वपूर्ण तिथियों ने भूमिका निभायी वे इस प्रकार हैं- आधिकारिक सूत्रों के अनुसार मई 1938 में तत्कालीन ब्रिटिश शासन मे गढ़वाल के श्रीनगर में आयोजित कांग्रेस के अधिवेशन में पंडित जवाहर लाल नेहरू ने इस पर्वतीय क्षेत्र के निवासियों को अपनी परिस्थितियों के अनुसार स्वयं निर्णय लेने तथा अपनी संस्कृति को समृद्ध करकने के आंदोलन का समर्थन किया. सन् 1940 में हल्द्वानी सम्मेलन में बद्रीदत्त पाण्डेय ने पर्वतीय क्षेत्र को विशेष दर्जा तथा अनुसूया प्रसाद बहुगुणा ने कुमांऊ गढ़वाल को पृथक इकाई के रूप में गठन की मांग रखी.1954 में विधान परिषद के सदस्य इन्द्रसिंह नयाल ने उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री गोविन्द बल्लभ पंत से पर्वतीय क्षेत्र के लिये पृथक विकास योजना बनाने का आग्रह किया तथा 1955 में फजल अली आयोग ने पर्वतीय क्षेत्र को अलग राज्य के रूप में गठित करने की संस्तुति की. वर्ष 1957 में योजना आयोग के उपाध्यक्ष टीटी कृष्णमाचारी ने पर्वतीय क्षेत्र की समस्याओं के निदान के लिये विशेष ध्यान देने का सुझाव दिया. 12 मई 1970 को प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी द्वारा पर्वतीय क्षेत्र की समस्याओं का निदान राज्य तथा केन्द्र सरकार का दायित्व होने की घोषणा की और 24 जुलाई। 1979 में पृथक राज्य के गठन के लिये मसूरी में उत्तराखंड क्रांति दल की स्थापना की गयी. जून 1987 में कर्ण प्रयाग के सर्वदलीय सम्मेलन में उत्तराखंड के गठन के लिये संघर्ष का आह्वान किया तथा नवंबर 1987 में पृथक उत्तराखंड राज्य के गठन के लिये नयी दिल्ली में प्रदर्शन और राष्ट्रपति को ज्ञापन एवं हरिद्वार को भी प्रस्तावित राज्य में शामिल करने की मांग की गयी.

1994 उत्तराखंड राज्य एवं आरक्षण को लेकर छात्रों नेसामूहिक रूप से आन्दोलन किया। मुलायम सिंह यादव के उत्तराखंड विरोधी वक्तब्य से क्षेत्र में आन्दोलन तेज हो गया। उत्तराखंड क्रांतिदल के नेताओं ने अनशन किया। उत्तराखंड में सरकारी कर्मचारी पृथक राज्य की मांग के समर्थन में लगातार तीन महीने तक हड़ताल पर रहे तथा उत्तराखंड में चक्काजाम और पुलिस फायरिंग की घटनाएं हुई उत्तराखंड आन्दोलनकारियों पर मसूरी और खटीमा में पुलिस द्वारा गोलियां चलायीं गयीं। संयुक्त मोर्चा के तत्वाधान में दो अक्टूबर 1994 को दिल्ली में भारी प्रदर्शन किया गया। इस संघर्ष में भाग लेने के लिये उत्तराखंड से हजारों लोगों की भागेदारी हुयी। प्रदर्शन में भाग लेने जा रहे आन्दोलनकारियों को मुजफ्फर नगर में काफी पेरशान किया गया और उन पर पुलिस ने फायिरिंग की और लाठिया बरसायीं तथा महिलाओं के साथ अश्लील व्यहार और अभद्रता की गयी। इसमें अनेक लोग हताहत और घायल हुये। इस घटना ने उत्तराखंड आन्दोलन की आग में घी का काम किया। अगले दिन तीन अक्टूबर को इस घटना के विरोध में उत्तराखंड बंद का आह्वान किया गया जिसमें तोड़फोड़ गोलाबारी तथा अनेक मौतें हुयीं। सात अक्टूबर 1994 को देहरादून में एक महिला आन्दोलनकारी की मृत्यु हो गयी इसके विरोध में आन्दोलनकारियों ने पुलिस चौकी पर उपद्रव किया। 


पन्द्रह अक्टूबर को देहरादून में कफ्र्यू लग गया उसी दिन एक आन्दोलनकारी शहीद हो गया। 27अक्टूबर 1994 को देश के तत्कालीन गृहमंत्री राजेश पायलट की आन्दोलनकारियों की वार्ता हुयी। इसी बीच श्रीनगर में श्रीयंत्र टापू में अनशनकारियों पर पुलिस ने बर्बरतापूर्वक प्रहार किया जिसमें अनेक आन्दोलनकारी शहीद हो गये। पन्द्रह अगस्त 1996 को तत्कालीन प्रधानमंत्री एच.डी. देवगौड़ा ने उत्तराखंड राज्य की घोषणा लालकिले से की। सन् 1998 में केन्द्र की भाजपा गठबंधन सरकार ने पहली बार राष्ट्रपति के माध्यम से उ.प्र. विधानसभा को उत्तरांचल विधेयक भेजा। उ.प्र. सरकार ने 26 संशोधनों के साथ उत्तरांचल राज्य विधेयक विधान सभा में पारित करवाकर केन्द्र सरकार को भेजा। केन्द्र सरकार ने 27 जुलाई 200 0को उत्तर प्रदेश पुनर्गठन विधेयक 200 0 को लोकसभा मेंे प्रस्तुत किया जो 01 अगस्त 2000 को लोक सभा में तथा 10 अगस्त को राज्यसभा में पारित हो गया। भारत के राष्ट्रपति ने उत्तर प्रदेश पुनर्गठन विधेयक को 28 अगस्त को अपनी स्वीकृति दे दी इसके बाद यह विधेयक अधिनियम में बदल गया और इसके साथ ही 09 नवंबर 2000 को उत्तरांचल राज्य अस्तित्व मे आया जो अब उत्तराखंड नाम से अस्तित्व में है

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